Self written on 27th March 11 in Pune
ये ज़िन्दगी की किताब है तनहा...ज़रा धीरे पढो.... हाज़ी कहता है हर छोटे हिस्से की अपनी वक़र होती है....
कुछ अनपढ़े सफहों की बड़ी आफत होती है..... माज़ी के कुछ लम्हे से ऐ ज़िन्दगी भी ज़हर होती है.....
यूँ बदलते हो रास्ते हमारी गलियों से गुज़रते हुए..... इजहारे नफ़रत में भी आपकी...... हमारी शामो की सहर होती है.....
सलाम करते है लोग अब भी हमें कि पत्थर नहीं मारते...... अब यकीं होता है........ कि हर काफ़िर पे खुदा की मजनू सी मेहर नहीं होती....
बौराए से फिरते है....अब भी शहर में आपके..... ये अलग है कि आपको अब हमारी खबर नहीं होती.......
आपके मकान का दरख़्त सूख गया अबके बरस......... कुछ ज्यादा वरक गिरे है ये मौसम में..... पहली मंजिल के दरीचे पे अब हमारी नज़र नहीं होती...
लबरेज़ है जहां भी तमाम....... रंजो ग़म के पुलिंदो से....... यकीं करें तनहा... आपकी तन्हाई के सिवा अब भी हमारे दिल में और किसी चीज कि बसर नहीं होती......
Meaning of some Urdu word used in this poem:
1. वक़र---Importance
2. सफहों---Pages, Portion
3.आफत---evils/disasters
4. माज़ी---Past
5. इजहारे नफ़रत---Malice
6. सहर---Dawn
7. काफ़िर---impious
8. मेहर---Mercy, Fortune
9. बौराए- Wandering in madness
10. शहर---City
11. खबर---Information
12. दरख़्त---Big Tree
13. बरस- Year
14. वरक---Leaf
15. दरीचे--- Window
16.लबरेज़---Full of
17. जहां---World
18. रंजो ग़म- Pain & sorrow
19. पुलिंदो---stuffs
20. बसर- Stay.......