Hindi Literature
No edit summary
No edit summary
 
(६ सदस्यों द्वारा किए गए बीच के २९ अवतरण नहीं दर्शाए गए)
पंक्ति १: पंक्ति १:
  +
{{KKGlobal}}
कवि: [[तुलसीदास]]
 
  +
{{KKRachna
[[Category:कविताएँ]]
 
[[Category:तुलसीदास]]
+
|रचनाकार=तुलसीदास
  +
}}
 
  +
{{KKPageNavigation
~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~
 
  +
|पीछे=
  +
|आगे=बाल काण्ड / भाग २ / रामचरितमानस / तुलसीदास
  +
|सारणी=रामचरितमानस / तुलसीदास
  +
}}
   
 
॥श्री गणेशाय नमः ॥
 
॥श्री गणेशाय नमः ॥
पंक्ति १०: पंक्ति १४:
 
<br>प्रथम सोपान
 
<br>प्रथम सोपान
 
<br>(बालकाण्ड)
 
<br>(बालकाण्ड)
<br>श्लोक
+
<span class="shloka"><br>श्लोक
 
<br>वर्णानामर्थसंघानां रसानां छन्दसामपि।
 
<br>वर्णानामर्थसंघानां रसानां छन्दसामपि।
 
<br>मङ्गलानां च कर्त्तारौ वन्दे वाणीविनायकौ॥१॥
 
<br>मङ्गलानां च कर्त्तारौ वन्दे वाणीविनायकौ॥१॥
पंक्ति २८: पंक्ति ३२:
 
<br>रामायणे निगदितं क्वचिदन्यतोऽपि।
 
<br>रामायणे निगदितं क्वचिदन्यतोऽपि।
 
<br>स्वान्तःसुखाय तुलसी रघुनाथगाथा-
 
<br>स्वान्तःसुखाय तुलसी रघुनाथगाथा-
<br>भाषानिबन्धमतिमञ्जुलमातनोति॥७॥
+
<br>भाषानिबन्धमतिमञ्जुलमातनोति॥७॥</span>
 
<br>
 
<br>
  +
<span class="soratha">
 
<br>सो०-जो सुमिरत सिधि होइ गन नायक करिबर बदन।
 
<br>सो०-जो सुमिरत सिधि होइ गन नायक करिबर बदन।
 
<br>करउ अनुग्रह सोइ बुद्धि रासि सुभ गुन सदन॥१॥
 
<br>करउ अनुग्रह सोइ बुद्धि रासि सुभ गुन सदन॥१॥
पंक्ति ४०: पंक्ति ४५:
 
<br>बंदउँ गुरु पद कंज कृपा सिंधु नररूप हरि।
 
<br>बंदउँ गुरु पद कंज कृपा सिंधु नररूप हरि।
 
<br>महामोह तम पुंज जासु बचन रबि कर निकर॥५॥
 
<br>महामोह तम पुंज जासु बचन रबि कर निकर॥५॥
  +
</span>
 
<br>
 
<br>
  +
<span class="chaupaai">
 
<br>चौ०-बंदउँ गुरु पद पदुम परागा। सुरुचि सुबास सरस अनुरागा॥
 
<br>चौ०-बंदउँ गुरु पद पदुम परागा। सुरुचि सुबास सरस अनुरागा॥
<br>अमिय मूरिमय चूरन चारू। समन सकल भव रुज परिवारू॥
+
<br>अमिय मूरिमय चूरन चारू। समन सकल भव रुज परिवारू॥१॥
 
<br>सुकृति संभु तन बिमल बिभूती। मंजुल मंगल मोद प्रसूती॥
 
<br>सुकृति संभु तन बिमल बिभूती। मंजुल मंगल मोद प्रसूती॥
<br>जन मन मंजु मुकुर मल हरनी। किएँ तिलक गुन गन बस करनी॥
+
<br>जन मन मंजु मुकुर मल हरनी। किएँ तिलक गुन गन बस करनी॥२॥
 
<br>श्रीगुर पद नख मनि गन जोती। सुमिरत दिब्य दृष्टि हियँ होती॥
 
<br>श्रीगुर पद नख मनि गन जोती। सुमिरत दिब्य दृष्टि हियँ होती॥
<br>दलन मोह तम सो सप्रकासू। बड़े भाग उर आवइ जासू॥
+
<br>दलन मोह तम सो सप्रकासू। बड़े भाग उर आवइ जासू॥३॥
<br>उघरहिं बिमल बिलोचन ही के। मिटहिं दोष दुख भव रजनी के॥
+
<br>उघरहिं बिमल बिलोचन हिय के। मिटहिं दोष दुख भव रजनी के॥
<br>सूझहिं राम चरित मनि मानिक। गुपुत प्रगट जहँ जो जेहि खानिक॥
+
<br>सूझहिं राम चरित मनि मानिक। गुपुत प्रगट जहँ जो जेहि खानिक॥४॥
  +
</span>
  +
<span class="doha">
 
<br>दो०-जथा सुअंजन अंजि दृग साधक सिद्ध सुजान।
 
<br>दो०-जथा सुअंजन अंजि दृग साधक सिद्ध सुजान।
 
<br>कौतुक देखत सैल बन भूतल भूरि निधान॥१॥
 
<br>कौतुक देखत सैल बन भूतल भूरि निधान॥१॥
  +
</span>
 
<br>
 
<br>
  +
<span class="chaupaai">
 
<br>चौ०-गुरु पद रज मृदु मंजुल अंजन। नयन अमिय दृग दोष बिभंजन॥
 
<br>चौ०-गुरु पद रज मृदु मंजुल अंजन। नयन अमिय दृग दोष बिभंजन॥
<br>तेहिं करि बिमल बिबेक बिलोचन। बरनउँ राम चरित भव मोचन॥
+
<br>तेहिं करि बिमल बिबेक बिलोचन। बरनउँ राम चरित भव मोचन॥१॥
 
<br>बंदउँ प्रथम महीसुर चरना। मोह जनित संसय सब हरना॥
 
<br>बंदउँ प्रथम महीसुर चरना। मोह जनित संसय सब हरना॥
<br>सुजन समाज सकल गुन खानी। करउँ प्रनाम सप्रेम सुबानी॥
+
<br>सुजन समाज सकल गुन खानी। करउँ प्रनाम सप्रेम सुबानी॥२॥
 
<br>साधु चरित सुभ चरित कपासू। निरस बिसद गुनमय फल जासू॥
 
<br>साधु चरित सुभ चरित कपासू। निरस बिसद गुनमय फल जासू॥
<br>जो सहि दुख परछिद्र दुरावा। बंदनीय जेहिं जग जस पावा॥
+
<br>जो सहि दुख परछिद्र दुरावा। बंदनीय जेहिं जग जस पावा॥३॥
 
<br>मुद मंगलमय संत समाजू। जो जग जंगम तीरथराजू॥
 
<br>मुद मंगलमय संत समाजू। जो जग जंगम तीरथराजू॥
<br>राम भक्ति जहँ सुरसरि धारा। सरसइ ब्रह्म बिचार प्रचारा॥
+
<br>राम भक्ति जहँ सुरसरि धारा। सरसइ ब्रह्म बिचार प्रचारा॥४॥
 
<br>बिधि निषेधमय कलि मल हरनी। करम कथा रबिनंदनि बरनी॥
 
<br>बिधि निषेधमय कलि मल हरनी। करम कथा रबिनंदनि बरनी॥
<br>हरि हर कथा बिराजति बेनी। सुनत सकल मुद मंगल देनी॥
+
<br>हरि हर कथा बिराजति बेनी। सुनत सकल मुद मंगल देनी॥५॥
 
<br>बटु बिस्वास अचल निज धरमा। तीरथराज समाज सुकरमा॥
 
<br>बटु बिस्वास अचल निज धरमा। तीरथराज समाज सुकरमा॥
<br>सबहिं सुलभ सब दिन सब देसा। सेवत सादर समन कलेसा॥
+
<br>सबहिं सुलभ सब दिन सब देसा। सेवत सादर समन कलेसा॥६॥
<br>अकथ अलौकिक तीरथराऊ। देइ सद्य फल प्रगट प्रभाऊ॥
+
<br>अकथ अलौकिक तीरथराऊ। देइ सद्य फल प्रगट प्रभाऊ॥७॥
  +
</span>
  +
<span class="doha">
 
<br>दो0-सुनि समुझहिं जन मुदित मन मज्जहिं अति अनुराग।
 
<br>दो0-सुनि समुझहिं जन मुदित मन मज्जहिं अति अनुराग।
 
<br>लहहिं चारि फल अछत तनु साधु समाज प्रयाग॥२॥
 
<br>लहहिं चारि फल अछत तनु साधु समाज प्रयाग॥२॥
  +
</span>
 
<br>
 
<br>
  +
<span class="chaupaai">
 
<br>चौ०-मज्जन फल पेखिअ ततकाला। काक होहिं पिक बकउ मराला॥
 
<br>चौ०-मज्जन फल पेखिअ ततकाला। काक होहिं पिक बकउ मराला॥
<br>सुनि आचरज करै जनि कोई। सतसंगति महिमा नहिं गोई॥
+
<br>सुनि आचरज करै जनि कोई। सतसंगति महिमा नहिं गोई॥१॥
 
<br>बालमीक नारद घटजोनी। निज निज मुखनि कही निज होनी॥
 
<br>बालमीक नारद घटजोनी। निज निज मुखनि कही निज होनी॥
<br>जलचर थलचर नभचर नाना। जे जड़ चेतन जीव जहाना॥
+
<br>जलचर थलचर नभचर नाना। जे जड़ चेतन जीव जहाना॥२॥
 
<br>मति कीरति गति भूति भलाई। जब जेहिं जतन जहाँ जेहिं पाई॥
 
<br>मति कीरति गति भूति भलाई। जब जेहिं जतन जहाँ जेहिं पाई॥
<br>सो जानब सतसंग प्रभाऊ। लोकहुँ बेद न आन उपाऊ॥
+
<br>सो जानब सतसंग प्रभाऊ। लोकहुँ बेद न आन उपाऊ॥ ३॥
 
<br>बिनु सतसंग बिबेक न होई। राम कृपा बिनु सुलभ न सोई॥
 
<br>बिनु सतसंग बिबेक न होई। राम कृपा बिनु सुलभ न सोई॥
<br>सतसंगत मुद मंगल मूला। सोइ फल सिधि सब साधन फूला॥
+
<br>सतसंगत मुद मंगल मूला। सोइ फल सिधि सब साधन फूला॥४॥
 
<br>सठ सुधरहिं सतसंगति पाई। पारस परस कुधात सुहाई॥
 
<br>सठ सुधरहिं सतसंगति पाई। पारस परस कुधात सुहाई॥
<br>बिधि बस सुजन कुसंगत परहीं। फनि मनि सम निज गुन अनुसरहीं॥
+
<br>बिधि बस सुजन कुसंगत परहीं। फनि मनि सम निज गुन अनुसरहीं॥५॥
 
<br>बिधि हरि हर कबि कोबिद बानी। कहत साधु महिमा सकुचानी॥
 
<br>बिधि हरि हर कबि कोबिद बानी। कहत साधु महिमा सकुचानी॥
<br>सो मो सन कहि जात न कैसें। साक बनिक मनि गुन गन जैसें॥
+
<br>सो मो सन कहि जात न कैसें। साक बनिक मनि गुन गन जैसें॥६॥
  +
</span>
  +
<span class="doha">
 
<br>दो०-बंदउँ संत समान चित हित अनहित नहिं कोइ।
 
<br>दो०-बंदउँ संत समान चित हित अनहित नहिं कोइ।
 
<br>अंजलि गत सुभ सुमन जिमि सम सुगंध कर दोइ॥३(क)॥
 
<br>अंजलि गत सुभ सुमन जिमि सम सुगंध कर दोइ॥३(क)॥
 
<br>संत सरल चित जगत हित जानि सुभाउ सनेहु।
 
<br>संत सरल चित जगत हित जानि सुभाउ सनेहु।
 
<br>बालबिनय सुनि करि कृपा राम चरन रति देहु॥३(ख)॥
 
<br>बालबिनय सुनि करि कृपा राम चरन रति देहु॥३(ख)॥
  +
</span>
 
<br>
 
<br>
  +
<span class="chaupaai">
 
<br>चौ०-बहुरि बंदि खल गन सतिभाएँ। जे बिनु काज दाहिनेहु बाएँ॥
 
<br>चौ०-बहुरि बंदि खल गन सतिभाएँ। जे बिनु काज दाहिनेहु बाएँ॥
<br>पर हित हानि लाभ जिन्ह केरें। उजरें हरष बिषाद बसेरें॥
+
<br>पर हित हानि लाभ जिन्ह केरें। उजरें हरष बिषाद बसेरें॥ १॥
 
<br>हरि हर जस राकेस राहु से। पर अकाज भट सहसबाहु से॥
 
<br>हरि हर जस राकेस राहु से। पर अकाज भट सहसबाहु से॥
<br>जे पर दोष लखहिं सहसाखी। पर हित घृत जिन्ह के मन माखी॥
+
<br>जे पर दोष लखहिं सहसाखी। पर हित घृत जिन्ह के मन माखी॥२॥
 
<br>तेज कृसानु रोष महिषेसा। अघ अवगुन धन धनी धनेसा॥
 
<br>तेज कृसानु रोष महिषेसा। अघ अवगुन धन धनी धनेसा॥
<br>उदय केत सम हित सबही के। कुंभकरन सम सोवत नीके॥
+
<br>उदय केत सम हित सबही के। कुंभकरन सम सोवत नीके॥३॥
 
<br>पर अकाजु लगि तनु परिहरहीं। जिमि हिम उपल कृषी दलि गरहीं॥
 
<br>पर अकाजु लगि तनु परिहरहीं। जिमि हिम उपल कृषी दलि गरहीं॥
<br>बंदउँ खल जस सेष सरोषा। सहस बदन बरनइ पर दोषा॥
+
<br>बंदउँ खल जस सेष सरोषा। सहस बदन बरनइ पर दोषा॥४॥
 
<br>पुनि प्रनवउँ पृथुराज समाना। पर अघ सुनइ सहस दस काना॥
 
<br>पुनि प्रनवउँ पृथुराज समाना। पर अघ सुनइ सहस दस काना॥
<br>बहुरि सक्र सम बिनवउँ तेही। संतत सुरानीक हित जेही॥
+
<br>बहुरि सक्र सम बिनवउँ तेही। संतत सुरानीक हित जेही॥५॥
<br>बचन बज्र जेहि सदा पिआरा। सहस नयन पर दोष निहारा॥
+
<br>बचन बज्र जेहि सदा पिआरा। सहस नयन पर दोष निहारा॥६॥
  +
</span>
  +
<span class="doha">
 
<br>दो०-उदासीन अरि मीत हित सुनत जरहिं खल रीति।
 
<br>दो०-उदासीन अरि मीत हित सुनत जरहिं खल रीति।
 
<br>जानि पानि जुग जोरि जन बिनती करइ सप्रीति॥४॥
 
<br>जानि पानि जुग जोरि जन बिनती करइ सप्रीति॥४॥
  +
</span>
 
<br>
 
<br>
  +
<span class="chaupaai">
 
<br>चौ०-मैं अपनी दिसि कीन्ह निहोरा। तिन्ह निज ओर न लाउब भोरा॥
 
<br>चौ०-मैं अपनी दिसि कीन्ह निहोरा। तिन्ह निज ओर न लाउब भोरा॥
<br>बायस पलिअहिं अति अनुरागा। होहिं निरामिष कबहुँ कि कागा॥
+
<br>बायस पलिअहिं अति अनुरागा। होहिं निरामिष कबहुँ कि कागा॥१॥
 
<br>बंदउँ संत असज्जन चरना। दुखप्रद उभय बीच कछु बरना॥
 
<br>बंदउँ संत असज्जन चरना। दुखप्रद उभय बीच कछु बरना॥
<br>बिछुरत एक प्रान हरि लेहीं। मिलत एक दुख दारुन देहीं॥
+
<br>बिछुरत एक प्रान हरि लेहीं। मिलत एक दुख दारुन देहीं॥२॥
 
<br>उपजहिं एक संग जग माहीं। जलज जोंक जिमि गुन बिलगाहीं॥
 
<br>उपजहिं एक संग जग माहीं। जलज जोंक जिमि गुन बिलगाहीं॥
<br>सुधा सुरा सम साधू असाधू। जनक एक जग जलधि अगाधू॥
+
<br>सुधा सुरा सम साधू असाधू। जनक एक जग जलधि अगाधू॥३॥
 
<br>भल अनभल निज निज करतूती। लहत सुजस अपलोक बिभूती॥
 
<br>भल अनभल निज निज करतूती। लहत सुजस अपलोक बिभूती॥
<br>सुधा सुधाकर सुरसरि साधू। गरल अनल कलिमल सरि ब्याधू॥
+
<br>सुधा सुधाकर सुरसरि साधू। गरल अनल कलिमल सरि ब्याधू॥४॥
<br>गुन अवगुन जानत सब कोई। जो जेहि भाव नीक तेहि सोई॥
+
<br>गुन अवगुन जानत सब कोई। जो जेहि भाव नीक तेहि सोई॥५॥
  +
</span>
  +
<span class="doha">
 
<br>दो0-भलो भलाइहि पै लहइ लहइ निचाइहि नीचु।
 
<br>दो0-भलो भलाइहि पै लहइ लहइ निचाइहि नीचु।
 
<br>सुधा सराहिअ अमरताँ गरल सराहिअ मीचु॥५॥
 
<br>सुधा सराहिअ अमरताँ गरल सराहिअ मीचु॥५॥
  +
</span>
 
<br>
 
<br>
  +
<span class="chaupaai">
 
<br>चौ०-खल अघ अगुन साधू गुन गाहा। उभय अपार उदधि अवगाहा॥
 
<br>चौ०-खल अघ अगुन साधू गुन गाहा। उभय अपार उदधि अवगाहा॥
<br>तेहि तें कछु गुन दोष बखाने। संग्रह त्याग न बिनु पहिचाने॥
+
<br>तेहि तें कछु गुन दोष बखाने। संग्रह त्याग न बिनु पहिचाने ॥१॥
 
<br>भलेउ पोच सब बिधि उपजाए। गनि गुन दोष बेद बिलगाए॥
 
<br>भलेउ पोच सब बिधि उपजाए। गनि गुन दोष बेद बिलगाए॥
<br>कहहिं बेद इतिहास पुराना। बिधि प्रपंचु गुन अवगुन साना॥
+
<br>कहहिं बेद इतिहास पुराना। बिधि प्रपंचु गुन अवगुन साना॥२॥
 
<br>दुख सुख पाप पुन्य दिन राती। साधु असाधु सुजाति कुजाती॥
 
<br>दुख सुख पाप पुन्य दिन राती। साधु असाधु सुजाति कुजाती॥
<br>दानव देव ऊँच अरु नीचू। अमिअ सुजीवनु माहुरु मीचू॥
+
<br>दानव देव ऊँच अरु नीचू। अमिअ सुजीवनु माहुरु मीचू॥३॥
 
<br>माया ब्रह्म जीव जगदीसा। लच्छि अलच्छि रंक अवनीसा॥
 
<br>माया ब्रह्म जीव जगदीसा। लच्छि अलच्छि रंक अवनीसा॥
<br>कासी मग सुरसरि क्रमनासा। मरु मारव महिदेव गवासा॥
+
<br>कासी मग सुरसरि क्रमनासा। मरु मारव महिदेव गवासा॥४॥
<br>सरग नरक अनुराग बिरागा। निगमागम गुन दोष बिभागा॥
+
<br>सरग नरक अनुराग बिरागा। निगमागम गुन दोष बिभागा ॥५॥
  +
</span>
  +
<span class="doha">
 
<br>दो०-जड़ चेतन गुन दोषमय बिस्व कीन्ह करतार।
 
<br>दो०-जड़ चेतन गुन दोषमय बिस्व कीन्ह करतार।
 
<br>संत हंस गुन गहहिं पय परिहरि बारि बिकार॥६॥
 
<br>संत हंस गुन गहहिं पय परिहरि बारि बिकार॥६॥
  +
</span>
 
<br>
 
<br>
  +
<span class="chaupaai">
 
<br>चौ०-अस बिबेक जब देइ बिधाता। तब तजि दोष गुनहिं मनु राता॥
 
<br>चौ०-अस बिबेक जब देइ बिधाता। तब तजि दोष गुनहिं मनु राता॥
<br>काल सुभाउ करम बरिआईं। भलेउ प्रकृति बस चुकइ भलाईं॥
+
<br>काल सुभाउ करम बरिआईं। भलेउ प्रकृति बस चुकइ भलाईं॥१॥
 
<br>सो सुधारि हरिजन जिमि लेहीं। दलि दुख दोष बिमल जसु देहीं॥
 
<br>सो सुधारि हरिजन जिमि लेहीं। दलि दुख दोष बिमल जसु देहीं॥
<br>खलउ करहिं भल पाइ सुसंगू। मिटइ न मलिन सुभाउ अभंगू॥
+
<br>खलउ करहिं भल पाइ सुसंगू। मिटइ न मलिन सुभाउ अभंगू॥२॥
 
<br>लखि सुबेष जग बंचक जेऊ। बेष प्रताप पूजिअहिं तेऊ॥
 
<br>लखि सुबेष जग बंचक जेऊ। बेष प्रताप पूजिअहिं तेऊ॥
<br>उधरहिं अंत न होइ निबाहू। कालनेमि जिमि रावन राहू॥
+
<br>उधरहिं अंत न होइ निबाहू। कालनेमि जिमि रावन राहू॥३॥
 
<br>किएहुँ कुबेष साधु सनमानू। जिमि जग जामवंत हनुमानू॥
 
<br>किएहुँ कुबेष साधु सनमानू। जिमि जग जामवंत हनुमानू॥
<br>हानि कुसंग सुसंगति लाहू। लोकहुँ बेद बिदित सब काहू॥
+
<br>हानि कुसंग सुसंगति लाहू। लोकहुँ बेद बिदित सब काहू॥४॥
 
<br>गगन चढ़इ रज पवन प्रसंगा। कीचहिं मिलइ नीच जल संगा॥
 
<br>गगन चढ़इ रज पवन प्रसंगा। कीचहिं मिलइ नीच जल संगा॥
<br>साधु असाधु सदन सुक सारीं। सुमिरहिं राम देहिं गनि गारी॥
+
<br>साधु असाधु सदन सुक सारीं। सुमिरहिं राम देहिं गनि गारी॥५॥
 
<br>धूम कुसंगति कारिख होई। लिखिअ पुरान मंजु मसि सोई॥
 
<br>धूम कुसंगति कारिख होई। लिखिअ पुरान मंजु मसि सोई॥
<br>सोइ जल अनल अनिल संघाता। होइ जलद जग जीवन दाता॥
+
<br>सोइ जल अनल अनिल संघाता। होइ जलद जग जीवन दाता॥६॥
  +
</span>
  +
<span class="doha">
 
<br>दो०-ग्रह भेषज जल पवन पट पाइ कुजोग सुजोग।
 
<br>दो०-ग्रह भेषज जल पवन पट पाइ कुजोग सुजोग।
 
<br>होहि कुबस्तु सुबस्तु जग लखहिं सुलच्छन लोग॥७(क)॥
 
<br>होहि कुबस्तु सुबस्तु जग लखहिं सुलच्छन लोग॥७(क)॥
पंक्ति १४३: पंक्ति १७६:
 
<br>देव दनुज नर नाग खग प्रेत पितर गंधर्ब।
 
<br>देव दनुज नर नाग खग प्रेत पितर गंधर्ब।
 
<br>बंदउँ किंनर रजनिचर कृपा करहु अब सर्ब॥७(घ)॥
 
<br>बंदउँ किंनर रजनिचर कृपा करहु अब सर्ब॥७(घ)॥
  +
</span>
 
<br>
 
<br>
  +
<span class="chaupaai">
 
<br>चौ०-आकर चारि लाख चौरासी। जाति जीव जल थल नभ बासी॥
 
<br>चौ०-आकर चारि लाख चौरासी। जाति जीव जल थल नभ बासी॥
<br>सीय राममय सब जग जानी। करउँ प्रनाम जोरि जुग पानी॥
+
<br>सीय राममय सब जग जानी। करउँ प्रनाम जोरि जुग पानी॥१॥
 
<br>जानि कृपाकर किंकर मोहू। सब मिलि करहु छाड़ि छल छोहू॥
 
<br>जानि कृपाकर किंकर मोहू। सब मिलि करहु छाड़ि छल छोहू॥
<br>निज बुधि बल भरोस मोहि नाहीं। तातें बिनय करउँ सब पाही॥
+
<br>निज बुधि बल भरोस मोहि नाहीं। तातें बिनय करउँ सब पाही॥२॥
 
<br>करन चहउँ रघुपति गुन गाहा। लघु मति मोरि चरित अवगाहा॥
 
<br>करन चहउँ रघुपति गुन गाहा। लघु मति मोरि चरित अवगाहा॥
<br>सूझ न एकउ अंग उपाऊ। मन मति रंक मनोरथ राऊ॥
+
<br>सूझ न एकउ अंग उपाऊ। मन मति रंक मनोरथ राऊ॥३॥
 
<br>मति अति नीच ऊँचि रुचि आछी। चहिअ अमिअ जग जुरइ न छाछी॥
 
<br>मति अति नीच ऊँचि रुचि आछी। चहिअ अमिअ जग जुरइ न छाछी॥
<br>छमिहहिं सज्जन मोरि ढिठाई। सुनिहहिं बालबचन मन लाई॥
+
<br>छमिहहिं सज्जन मोरि ढिठाई। सुनिहहिं बालबचन मन लाई॥४॥
 
<br>जौं बालक कह तोतरि बाता। सुनहिं मुदित मन पितु अरु माता॥
 
<br>जौं बालक कह तोतरि बाता। सुनहिं मुदित मन पितु अरु माता॥
<br>हँसिहहिं कूर कुटिल कुबिचारी। जे पर दूषन भूषनधारी॥
+
<br>हँसिहहिं कूर कुटिल कुबिचारी। जे पर दूषन भूषनधारी॥५॥
 
<br>निज कबित्त केहि लाग न नीका। सरस होउ अथवा अति फीका॥
 
<br>निज कबित्त केहि लाग न नीका। सरस होउ अथवा अति फीका॥
<br>जे पर भनिति सुनत हरषाहीं। ते बर पुरुष बहुत जग नाहीं॥
+
<br>जे पर भनिति सुनत हरषाहीं। ते बर पुरुष बहुत जग नाहीं॥६॥
 
<br>जग बहु नर सर सरि सम भाई। जे निज बाढ़ि बढ़हिं जल पाई॥
 
<br>जग बहु नर सर सरि सम भाई। जे निज बाढ़ि बढ़हिं जल पाई॥
<br>सज्जन सकृत सिंधु सम कोई। देखि पूर बिधु बाढ़इ जोई॥
+
<br>सज्जन सकृत सिंधु सम कोई। देखि पूर बिधु बाढ़इ जोई॥७॥
  +
</span>
  +
<span class="doha">
 
<br>दो०-भाग छोट अभिलाषु बड़ करउँ एक बिस्वास।
 
<br>दो०-भाग छोट अभिलाषु बड़ करउँ एक बिस्वास।
 
<br>पैहहिं सुख सुनि सुजन सब खल करिहहिं उपहास॥८॥
 
<br>पैहहिं सुख सुनि सुजन सब खल करिहहिं उपहास॥८॥
  +
</span>
 
<br>
 
<br>
  +
<span class="chaupaai">
 
<br>चौ०-खल परिहास होइ हित मोरा। काक कहहिं कलकंठ कठोरा॥
 
<br>चौ०-खल परिहास होइ हित मोरा। काक कहहिं कलकंठ कठोरा॥
<br>हंसहि बक दादुर चातकही। हँसहिं मलिन खल बिमल बतकही॥
+
<br>हंसहि बक दादुर चातकही। हँसहिं मलिन खल बिमल बतकही॥१॥
 
<br>कबित रसिक न राम पद नेहू। तिन्ह कहँ सुखद हास रस एहू॥
 
<br>कबित रसिक न राम पद नेहू। तिन्ह कहँ सुखद हास रस एहू॥
<br>भाषा भनिति भोरि मति मोरी। हँसिबे जोग हँसें नहिं खोरी॥
+
<br>भाषा भनिति भोरि मति मोरी। हँसिबे जोग हँसें नहिं खोरी॥२॥
 
<br>प्रभु पद प्रीति न सामुझि नीकी। तिन्हहि कथा सुनि लागहि फीकी॥
 
<br>प्रभु पद प्रीति न सामुझि नीकी। तिन्हहि कथा सुनि लागहि फीकी॥
<br>हरि हर पद रति मति न कुतरकी। तिन्ह कहुँ मधुर कथा रघुबर की॥
+
<br>हरि हर पद रति मति न कुतरकी। तिन्ह कहुँ मधुर कथा रघुबर की॥३॥
 
<br>राम भगति भूषित जियँ जानी। सुनिहहिं सुजन सराहि सुबानी॥
 
<br>राम भगति भूषित जियँ जानी। सुनिहहिं सुजन सराहि सुबानी॥
<br>कबि न होउँ नहिं बचन प्रबीनू। सकल कला सब बिद्या हीनू॥
+
<br>कबि न होउँ नहिं बचन प्रबीनू। सकल कला सब बिद्या हीनू॥४॥
 
<br>आखर अरथ अलंकृति नाना। छंद प्रबंध अनेक बिधाना॥
 
<br>आखर अरथ अलंकृति नाना। छंद प्रबंध अनेक बिधाना॥
<br>भाव भेद रस भेद अपारा। कबित दोष गुन बिबिध प्रकारा॥
+
<br>भाव भेद रस भेद अपारा। कबित दोष गुन बिबिध प्रकारा॥५॥
<br>कबित बिबेक एक नहिं मोरें। सत्य कहउँ लिखि कागद कोरे॥
+
<br>कबित बिबेक एक नहिं मोरें। सत्य कहउँ लिखि कागद कोरे॥६॥
  +
</span>
  +
<span class="doha">
 
<br>दो०-भनिति मोरि सब गुन रहित बिस्व बिदित गुन एक।
 
<br>दो०-भनिति मोरि सब गुन रहित बिस्व बिदित गुन एक।
 
<br>सो बिचारि सुनिहहिं सुमति जिन्ह कें बिमल बिवेक॥९॥
 
<br>सो बिचारि सुनिहहिं सुमति जिन्ह कें बिमल बिवेक॥९॥
  +
</span>
 
<br>
 
<br>
  +
<span class="chaupaai">
 
<br>चौ०-एहि महँ रघुपति नाम उदारा। अति पावन पुरान श्रुति सारा॥
 
<br>चौ०-एहि महँ रघुपति नाम उदारा। अति पावन पुरान श्रुति सारा॥
<br>मंगल भवन अमंगल हारी। उमा सहित जेहि जपत पुरारी॥
+
<br>मंगल भवन अमंगल हारी। उमा सहित जेहि जपत पुरारी॥१॥
 
<br>भनिति बिचित्र सुकबि कृत जोऊ। राम नाम बिनु सोह न सोऊ॥
 
<br>भनिति बिचित्र सुकबि कृत जोऊ। राम नाम बिनु सोह न सोऊ॥
<br>बिधुबदनी सब भाँति सँवारी। सोह न बसन बिना बर नारी॥
+
<br>बिधुबदनी सब भाँति सँवारी। सोह न बसन बिना बर नारी॥२॥
 
<br>सब गुन रहित कुकबि कृत बानी। राम नाम जस अंकित जानी॥
 
<br>सब गुन रहित कुकबि कृत बानी। राम नाम जस अंकित जानी॥
<br>सादर कहहिं सुनहिं बुध ताही। मधुकर सरिस संत गुनग्राही॥
+
<br>सादर कहहिं सुनहिं बुध ताही। मधुकर सरिस संत गुनग्राही॥३॥
 
<br>जदपि कबित रस एकउ नाहीं। राम प्रताप प्रकट एहि माहीं॥
 
<br>जदपि कबित रस एकउ नाहीं। राम प्रताप प्रकट एहि माहीं॥
<br>सोइ भरोस मोरें मन आवा। केहिं न सुसंग बड़प्पनु पावा॥
+
<br>सोइ भरोस मोरें मन आवा। केहिं न सुसंग बड़प्पनु पावा॥४॥
 
<br>धूमउ तजइ सहज करुआई। अगरु प्रसंग सुगंध बसाई॥
 
<br>धूमउ तजइ सहज करुआई। अगरु प्रसंग सुगंध बसाई॥
<br>भनिति भदेस बस्तु भलि बरनी। राम कथा जग मंगल करनी॥
+
<br>भनिति भदेस बस्तु भलि बरनी। राम कथा जग मंगल करनी॥५॥
  +
</span>
  +
<span class="chhand">
 
<br>छं०-मंगल करनि कलि मल हरनि तुलसी कथा रघुनाथ की॥
 
<br>छं०-मंगल करनि कलि मल हरनि तुलसी कथा रघुनाथ की॥
 
<br>गति कूर कबिता सरित की ज्यों सरित पावन पाथ की॥
 
<br>गति कूर कबिता सरित की ज्यों सरित पावन पाथ की॥
 
<br>प्रभु सुजस संगति भनिति भलि होइहि सुजन मन भावनी॥
 
<br>प्रभु सुजस संगति भनिति भलि होइहि सुजन मन भावनी॥
 
<br>भव अंग भूति मसान की सुमिरत सुहावनि पावनी॥
 
<br>भव अंग भूति मसान की सुमिरत सुहावनि पावनी॥
  +
</span>
  +
<span class="doha">
 
<br>दो०-प्रिय लागिहि अति सबहि मम भनिति राम जस संग।
 
<br>दो०-प्रिय लागिहि अति सबहि मम भनिति राम जस संग।
 
<br>दारु बिचारु कि करइ कोउ बंदिअ मलय प्रसंग॥१०(क)॥
 
<br>दारु बिचारु कि करइ कोउ बंदिअ मलय प्रसंग॥१०(क)॥
 
<br>स्याम सुरभि पय बिसद अति गुनद करहिं सब पान।
 
<br>स्याम सुरभि पय बिसद अति गुनद करहिं सब पान।
 
<br>गिरा ग्राम्य सिय राम जस गावहिं सुनहिं सुजान॥१०(ख)॥
 
<br>गिरा ग्राम्य सिय राम जस गावहिं सुनहिं सुजान॥१०(ख)॥
  +
</span>
 
<br>
 
<br>
  +
<span class="chaupaai">
 
<br>चौ०-मनि मानिक मुकुता छबि जैसी। अहि गिरि गज सिर सोह न तैसी॥
 
<br>चौ०-मनि मानिक मुकुता छबि जैसी। अहि गिरि गज सिर सोह न तैसी॥
<br>नृप किरीट तरुनी तनु पाई। लहहिं सकल सोभा अधिकाई॥
+
<br>नृप किरीट तरुनी तनु पाई। लहहिं सकल सोभा अधिकाई॥१॥
 
<br>तैसेहिं सुकबि कबित बुध कहहीं। उपजहिं अनत अनत छबि लहहीं॥
 
<br>तैसेहिं सुकबि कबित बुध कहहीं। उपजहिं अनत अनत छबि लहहीं॥
<br>भगति हेतु बिधि भवन बिहाई। सुमिरत सारद आवति धाई॥
+
<br>भगति हेतु बिधि भवन बिहाई। सुमिरत सारद आवति धाई॥२॥
 
<br>राम चरित सर बिनु अन्हवाएँ। सो श्रम जाइ न कोटि उपाएँ॥
 
<br>राम चरित सर बिनु अन्हवाएँ। सो श्रम जाइ न कोटि उपाएँ॥
<br>कबि कोबिद अस हृदयँ बिचारी। गावहिं हरि जस कलि मल हारी॥
+
<br>कबि कोबिद अस हृदयँ बिचारी। गावहिं हरि जस कलि मल हारी॥३॥
 
<br>कीन्हें प्राकृत जन गुन गाना। सिर धुनि गिरा लगत पछिताना॥
 
<br>कीन्हें प्राकृत जन गुन गाना। सिर धुनि गिरा लगत पछिताना॥
<br>हृदय सिंधु मति सीप समाना। स्वाति सारदा कहहिं सुजाना॥
+
<br>हृदय सिंधु मति सीप समाना। स्वाति सारदा कहहिं सुजाना॥४॥
<br>जौं बरषइ बर बारि बिचारू। होहिं कबित मुकुतामनि चारू॥
+
<br>जौं बरषइ बर बारि बिचारू। होहिं कबित मुकुतामनि चारू॥५॥
  +
</span>
  +
<span class="doha">
 
<br>दो०-जुगुति बेधि पुनि पोहिअहिं रामचरित बर ताग।
 
<br>दो०-जुगुति बेधि पुनि पोहिअहिं रामचरित बर ताग।
 
<br>पहिरहिं सज्जन बिमल उर सोभा अति अनुराग॥११॥
 
<br>पहिरहिं सज्जन बिमल उर सोभा अति अनुराग॥११॥
  +
</span>
 
<br>
 
<br>
  +
<span class="chaupaai">
 
<br>चौ०-जे जनमे कलिकाल कराला। करतब बायस बेष मराला॥
 
<br>चौ०-जे जनमे कलिकाल कराला। करतब बायस बेष मराला॥
<br>चलत कुपंथ बेद मग छाँड़े। कपट कलेवर कलि मल भाँड़े॥
+
<br>चलत कुपंथ बेद मग छाँड़े। कपट कलेवर कलि मल भाँड़े॥१॥
 
<br>बंचक भगत कहाइ राम के। किंकर कंचन कोह काम के॥
 
<br>बंचक भगत कहाइ राम के। किंकर कंचन कोह काम के॥
<br>तिन्ह महँ प्रथम रेख जग मोरी। धींग धरमध्वज धंधक धोरी॥
+
<br>तिन्ह महँ प्रथम रेख जग मोरी। धींग धरमध्वज धंधक धोरी॥२॥
 
<br>जौं अपने अवगुन सब कहऊँ। बाढ़इ कथा पार नहिं लहऊँ॥
 
<br>जौं अपने अवगुन सब कहऊँ। बाढ़इ कथा पार नहिं लहऊँ॥
<br>ताते मैं अति अलप बखाने। थोरे महुँ जानिहहिं सयाने॥
+
<br>ताते मैं अति अलप बखाने। थोरे महुँ जानिहहिं सयाने॥३॥
 
<br>समुझि बिबिधि बिधि बिनती मोरी। कोउ न कथा सुनि देइहि खोरी॥
 
<br>समुझि बिबिधि बिधि बिनती मोरी। कोउ न कथा सुनि देइहि खोरी॥
<br>एतेहु पर करिहहिं जे असंका। मोहि ते अधिक ते जड़ मति रंका॥
+
<br>एतेहु पर करिहहिं जे असंका। मोहि ते अधिक ते जड़ मति रंका॥४॥
 
<br>कबि न होउँ नहिं चतुर कहावउँ। मति अनुरूप राम गुन गावउँ॥
 
<br>कबि न होउँ नहिं चतुर कहावउँ। मति अनुरूप राम गुन गावउँ॥
<br>कहँ रघुपति के चरित अपारा। कहँ मति मोरि निरत संसारा॥
+
<br>कहँ रघुपति के चरित अपारा। कहँ मति मोरि निरत संसारा॥५॥
 
<br>जेहिं मारुत गिरि मेरु उड़ाहीं। कहहु तूल केहि लेखे माहीं॥
 
<br>जेहिं मारुत गिरि मेरु उड़ाहीं। कहहु तूल केहि लेखे माहीं॥
<br>समुझत अमित राम प्रभुताई। करत कथा मन अति कदराई॥
+
<br>समुझत अमित राम प्रभुताई। करत कथा मन अति कदराई॥६॥
  +
</span>
  +
<span class="doha">
 
<br>दो०-सारद सेस महेस बिधि आगम निगम पुरान।
 
<br>दो०-सारद सेस महेस बिधि आगम निगम पुरान।
 
<br>नेति नेति कहि जासु गुन करहिं निरंतर गान॥१२॥
 
<br>नेति नेति कहि जासु गुन करहिं निरंतर गान॥१२॥
  +
</span>
 
<br>
 
<br>
  +
<span class="chaupaai">
 
<br>चौ०-सब जानत प्रभु प्रभुता सोई। तदपि कहें बिनु रहा न कोई॥
 
<br>चौ०-सब जानत प्रभु प्रभुता सोई। तदपि कहें बिनु रहा न कोई॥
<br>तहाँ बेद अस कारन राखा। भजन प्रभाउ भाँति बहु भाषा॥
+
<br>तहाँ बेद अस कारन राखा। भजन प्रभाउ भाँति बहु भाषा॥१॥
 
<br>एक अनीह अरूप अनामा। अज सच्चिदानंद पर धामा॥
 
<br>एक अनीह अरूप अनामा। अज सच्चिदानंद पर धामा॥
<br>ब्यापक बिस्वरूप भगवाना। तेहिं धरि देह चरित कृत नाना॥
+
<br>ब्यापक बिस्वरूप भगवाना। तेहिं धरि देह चरित कृत नाना॥२॥
 
<br>सो केवल भगतन हित लागी। परम कृपाल प्रनत अनुरागी॥
 
<br>सो केवल भगतन हित लागी। परम कृपाल प्रनत अनुरागी॥
<br>जेहि जन पर ममता अति छोहू। जेहिं करुना करि कीन्ह न कोहू॥
+
<br>जेहि जन पर ममता अति छोहू। जेहिं करुना करि कीन्ह न कोहू॥३॥
 
<br>गई बहोर गरीब नेवाजू। सरल सबल साहिब रघुराजू॥
 
<br>गई बहोर गरीब नेवाजू। सरल सबल साहिब रघुराजू॥
<br>बुध बरनहिं हरि जस अस जानी। करहि पुनीत सुफल निज बानी॥
+
<br>बुध बरनहिं हरि जस अस जानी। करहि पुनीत सुफल निज बानी॥४॥
 
<br>तेहिं बल मैं रघुपति गुन गाथा। कहिहउँ नाइ राम पद माथा॥
 
<br>तेहिं बल मैं रघुपति गुन गाथा। कहिहउँ नाइ राम पद माथा॥
<br>मुनिन्ह प्रथम हरि कीरति गाई। तेहिं मग चलत सुगम मोहि भाई॥
+
<br>मुनिन्ह प्रथम हरि कीरति गाई। तेहिं मग चलत सुगम मोहि भाई॥५॥
<br>
+
</span>
  +
<span class="doha">
 
<br>दो०-अति अपार जे सरित बर जौं नृप सेतु कराहिं।
 
<br>दो०-अति अपार जे सरित बर जौं नृप सेतु कराहिं।
 
<br>चढि पिपीलिकउ परम लघु बिनु श्रम पारहि जाहिं॥१३॥
 
<br>चढि पिपीलिकउ परम लघु बिनु श्रम पारहि जाहिं॥१३॥
  +
</span>
 
<br>
 
<br>
  +
<span class="chaupaai">
 
<br>चौ०-एहि प्रकार बल मनहि देखाई। करिहउँ रघुपति कथा सुहाई॥
 
<br>चौ०-एहि प्रकार बल मनहि देखाई। करिहउँ रघुपति कथा सुहाई॥
<br>ब्यास आदि कबि पुंगव नाना। जिन्ह सादर हरि सुजस बखाना॥
+
<br>ब्यास आदि कबि पुंगव नाना। जिन्ह सादर हरि सुजस बखाना॥१॥
 
<br>चरन कमल बंदउँ तिन्ह केरे। पुरवहुँ सकल मनोरथ मेरे॥
 
<br>चरन कमल बंदउँ तिन्ह केरे। पुरवहुँ सकल मनोरथ मेरे॥
<br>कलि के कबिन्ह करउँ परनामा। जिन्ह बरने रघुपति गुन ग्रामा॥
+
<br>कलि के कबिन्ह करउँ परनामा। जिन्ह बरने रघुपति गुन ग्रामा॥२॥
 
<br>जे प्राकृत कबि परम सयाने। भाषाँ जिन्ह हरि चरित बखाने॥
 
<br>जे प्राकृत कबि परम सयाने। भाषाँ जिन्ह हरि चरित बखाने॥
<br>भए जे अहहिं जे होइहहिं आगें। प्रनवउँ सबहिं कपट सब त्यागें॥
+
<br>भए जे अहहिं जे होइहहिं आगें। प्रनवउँ सबहिं कपट सब त्यागें॥३॥
 
<br>होहु प्रसन्न देहु बरदानू। साधु समाज भनिति सनमानू॥
 
<br>होहु प्रसन्न देहु बरदानू। साधु समाज भनिति सनमानू॥
<br>जो प्रबंध बुध नहिं आदरहीं। सो श्रम बादि बाल कबि करहीं॥
+
<br>जो प्रबंध बुध नहिं आदरहीं। सो श्रम बादि बाल कबि करहीं॥४॥
 
<br>कीरति भनिति भूति भलि सोई। सुरसरि सम सब कहँ हित होई॥
 
<br>कीरति भनिति भूति भलि सोई। सुरसरि सम सब कहँ हित होई॥
<br>राम सुकीरति भनिति भदेसा। असमंजस अस मोहि अँदेसा॥
+
<br>राम सुकीरति भनिति भदेसा। असमंजस अस मोहि अँदेसा॥५॥
<br>तुम्हरी कृपाँ सुलभ सोउ मोरे। सिअनि सुहावनि टाट पटोरे॥
+
<br>तुम्हरी कृपाँ सुलभ सोउ मोरे। सिअनि सुहावनि टाट पटोरे॥६॥
  +
</span>
  +
<span class="doha">
 
<br>दो०-सरल कबित कीरति बिमल सोइ आदरहिं सुजान।
 
<br>दो०-सरल कबित कीरति बिमल सोइ आदरहिं सुजान।
 
<br>सहज बयर बिसराइ रिपु जो सुनि करहिं बखान॥१४(क)॥
 
<br>सहज बयर बिसराइ रिपु जो सुनि करहिं बखान॥१४(क)॥
पंक्ति २५१: पंक्ति ३१३:
 
<br>करहु कृपा हरि जस कहउँ पुनि पुनि करउँ निहोर॥१४(ख)॥
 
<br>करहु कृपा हरि जस कहउँ पुनि पुनि करउँ निहोर॥१४(ख)॥
 
<br>कबि कोबिद रघुबर चरित मानस मंजु मराल।
 
<br>कबि कोबिद रघुबर चरित मानस मंजु मराल।
<br>बाल बिनय सुनि सुरुचि लखि मोपर होहु कृपाल॥१४(ग)॥
+
<br>बाल बिनय सुनि सुरुचि लखि मो पर होहु कृपाल॥१४(ग)॥
  +
</span>
  +
<span class="soratha">
 
<br>सो०-बंदउँ मुनि पद कंजु रामायन जेहिं निरमयउ।
 
<br>सो०-बंदउँ मुनि पद कंजु रामायन जेहिं निरमयउ।
 
<br>सखर सुकोमल मंजु दोष रहित दूषन सहित॥१४(घ)॥
 
<br>सखर सुकोमल मंजु दोष रहित दूषन सहित॥१४(घ)॥
पंक्ति २५८: पंक्ति ३२२:
 
<br>बंदउँ बिधि पद रेनु भव सागर जेहि कीन्ह जहँ।
 
<br>बंदउँ बिधि पद रेनु भव सागर जेहि कीन्ह जहँ।
 
<br>संत सुधा ससि धेनु प्रगटे खल बिष बारुनी॥१४(च)॥
 
<br>संत सुधा ससि धेनु प्रगटे खल बिष बारुनी॥१४(च)॥
  +
</span>
  +
<span class="doha">
 
<br>दो०-बिबुध बिप्र बुध ग्रह चरन बंदि कहउँ कर जोरि।
 
<br>दो०-बिबुध बिप्र बुध ग्रह चरन बंदि कहउँ कर जोरि।
 
<br>होइ प्रसन्न पुरवहु सकल मंजु मनोरथ मोरि॥१४(छ)॥
 
<br>होइ प्रसन्न पुरवहु सकल मंजु मनोरथ मोरि॥१४(छ)॥
  +
</span>
 
<br>
 
<br>
  +
<span class="chaupaai">
 
<br>चौ०-पुनि बंदउँ सारद सुरसरिता। जुगल पुनीत मनोहर चरिता॥
 
<br>चौ०-पुनि बंदउँ सारद सुरसरिता। जुगल पुनीत मनोहर चरिता॥
<br>मज्जन पान पाप हर एका। कहत सुनत एक हर अबिबेका॥
+
<br>मज्जन पान पाप हर एका। कहत सुनत एक हर अबिबेका॥१॥
 
<br>गुर पितु मातु महेस भवानी। प्रनवउँ दीनबंधु दिन दानी॥
 
<br>गुर पितु मातु महेस भवानी। प्रनवउँ दीनबंधु दिन दानी॥
<br>सेवक स्वामि सखा सिय पी के। हित निरुपधि सब बिधि तुलसी के॥
+
<br>सेवक स्वामि सखा सिय पी के। हित निरुपधि सब बिधि तुलसी के॥२॥
 
<br>कलि बिलोकि जग हित हर गिरिजा। साबर मंत्र जाल जिन्ह सिरिजा॥
 
<br>कलि बिलोकि जग हित हर गिरिजा। साबर मंत्र जाल जिन्ह सिरिजा॥
<br>अनमिल आखर अरथ न जापू। प्रगट प्रभाउ महेस प्रतापू॥
+
<br>अनमिल आखर अरथ न जापू। प्रगट प्रभाउ महेस प्रतापू॥३॥
 
<br>सो उमेस मोहि पर अनुकूला। करिहिं कथा मुद मंगल मूला॥
 
<br>सो उमेस मोहि पर अनुकूला। करिहिं कथा मुद मंगल मूला॥
<br>सुमिरि सिवा सिव पाइ पसाऊ। बरनउँ रामचरित चित चाऊ॥
+
<br>सुमिरि सिवा सिव पाइ पसाऊ। बरनउँ रामचरित चित चाऊ॥४॥
 
<br>भनिति मोरि सिव कृपाँ बिभाती। ससि समाज मिलि मनहुँ सुराती॥
 
<br>भनिति मोरि सिव कृपाँ बिभाती। ससि समाज मिलि मनहुँ सुराती॥
<br>जे एहि कथहि सनेह समेता। कहिहहिं सुनिहहिं समुझि सचेता॥
+
<br>जे एहि कथहि सनेह समेता। कहिहहिं सुनिहहिं समुझि सचेता॥५॥
<br>होइहहिं राम चरन अनुरागी। कलि मल रहित सुमंगल भागी॥
+
<br>होइहहिं राम चरन अनुरागी। कलि मल रहित सुमंगल भागी॥६॥
  +
</span>
  +
<span class="doha">
 
<br>दो०-सपनेहुँ साचेहुँ मोहि पर जौं हर गौरि पसाउ।
 
<br>दो०-सपनेहुँ साचेहुँ मोहि पर जौं हर गौरि पसाउ।
 
<br>तौ फुर होउ जो कहेउँ सब भाषा भनिति प्रभाउ॥१५॥
 
<br>तौ फुर होउ जो कहेउँ सब भाषा भनिति प्रभाउ॥१५॥
  +
</span>
 
<br>
 
<br>
  +
<span class="chaupaai">
 
<br>चौ०-बंदउँ अवध पुरी अति पावनि। सरजू सरि कलि कलुष नसावनि॥
 
<br>चौ०-बंदउँ अवध पुरी अति पावनि। सरजू सरि कलि कलुष नसावनि॥
<br>प्रनवउँ पुर नर नारि बहोरी। ममता जिन्ह पर प्रभुहि न थोरी॥
+
<br>प्रनवउँ पुर नर नारि बहोरी। ममता जिन्ह पर प्रभुहि न थोरी॥१॥
 
<br>सिय निंदक अघ ओघ नसाए। लोक बिसोक बनाइ बसाए॥
 
<br>सिय निंदक अघ ओघ नसाए। लोक बिसोक बनाइ बसाए॥
<br>बंदउँ कौसल्या दिसि प्राची। कीरति जासु सकल जग माची॥
+
<br>बंदउँ कौसल्या दिसि प्राची। कीरति जासु सकल जग माची॥२॥
 
<br>प्रगटेउ जहँ रघुपति ससि चारू। बिस्व सुखद खल कमल तुसारू॥
 
<br>प्रगटेउ जहँ रघुपति ससि चारू। बिस्व सुखद खल कमल तुसारू॥
<br>दसरथ राउ सहित सब रानी। सुकृत सुमंगल मूरति मानी॥
+
<br>दसरथ राउ सहित सब रानी। सुकृत सुमंगल मूरति मानी॥३॥
 
<br>करउँ प्रनाम करम मन बानी। करहु कृपा सुत सेवक जानी॥
 
<br>करउँ प्रनाम करम मन बानी। करहु कृपा सुत सेवक जानी॥
<br>जिन्हहि बिरचि बड़ भयउ बिधाता। महिमा अवधि राम पितु माता॥
+
<br>जिन्हहि बिरचि बड़ भयउ बिधाता। महिमा अवधि राम पितु माता॥४॥
  +
</span>
  +
<span class="soratha">
 
<br>सो०-बंदउँ अवध भुआल सत्य प्रेम जेहि राम पद।
 
<br>सो०-बंदउँ अवध भुआल सत्य प्रेम जेहि राम पद।
 
<br>बिछुरत दीनदयाल प्रिय तनु तृन इव परिहरेउ॥१६॥
 
<br>बिछुरत दीनदयाल प्रिय तनु तृन इव परिहरेउ॥१६॥
  +
</span>
 
<br>
 
<br>
  +
<span class="chaupaai">
 
<br>चौ०-प्रनवउँ परिजन सहित बिदेहू। जाहि राम पद गूढ़ सनेहू॥
 
<br>चौ०-प्रनवउँ परिजन सहित बिदेहू। जाहि राम पद गूढ़ सनेहू॥
<br>जोग भोग महँ राखेउ गोई। राम बिलोकत प्रगटेउ सोई॥
+
<br>जोग भोग महँ राखेउ गोई। राम बिलोकत प्रगटेउ सोई॥१॥
 
<br>प्रनवउँ प्रथम भरत के चरना। जासु नेम ब्रत जाइ न बरना॥
 
<br>प्रनवउँ प्रथम भरत के चरना। जासु नेम ब्रत जाइ न बरना॥
<br>राम चरन पंकज मन जासू। लुबुध मधुप इव तजइ न पासू॥
+
<br>राम चरन पंकज मन जासू। लुबुध मधुप इव तजइ न पासू॥२॥
 
<br>बंदउँ लछिमन पद जलजाता। सीतल सुभग भगत सुख दाता॥
 
<br>बंदउँ लछिमन पद जलजाता। सीतल सुभग भगत सुख दाता॥
<br>रघुपति कीरति बिमल पताका। दंड समान भयउ जस जाका॥
+
<br>रघुपति कीरति बिमल पताका। दंड समान भयउ जस जाका॥३॥
 
<br>सेष सहस्त्रसीस जग कारन। जो अवतरेउ भूमि भय टारन॥
 
<br>सेष सहस्त्रसीस जग कारन। जो अवतरेउ भूमि भय टारन॥
<br>सदा सो सानुकूल रह मो पर। कृपासिंधु सौमित्रि गुनाकर॥
+
<br>सदा सो सानुकूल रह मो पर। कृपासिंधु सौमित्रि गुनाकर॥४॥
 
<br>रिपुसूदन पद कमल नमामी। सूर सुसील भरत अनुगामी॥
 
<br>रिपुसूदन पद कमल नमामी। सूर सुसील भरत अनुगामी॥
<br>महाबीर बिनवउँ हनुमाना। राम जासु जस आप बखाना॥
+
<br>महाबीर बिनवउँ हनुमाना। राम जासु जस आप बखाना॥५॥
  +
</span>
  +
<span class="soratha">
 
<br>सो०-प्रनवउँ पवनकुमार खल बन पावक ग्यानघन।
 
<br>सो०-प्रनवउँ पवनकुमार खल बन पावक ग्यानघन।
 
<br>जासु हृदय आगार बसहिं राम सर चाप धर॥१७॥
 
<br>जासु हृदय आगार बसहिं राम सर चाप धर॥१७॥
  +
</span>
 
<br>
 
<br>
  +
<span class="chaupaai">
 
<br>चौ०-कपिपति रीछ निसाचर राजा। अंगदादि जे कीस समाजा॥
 
<br>चौ०-कपिपति रीछ निसाचर राजा। अंगदादि जे कीस समाजा॥
<br>बंदउँ सब के चरन सुहाए। अधम सरीर राम जिन्ह पाए॥
+
<br>बंदउँ सब के चरन सुहाए। अधम सरीर राम जिन्ह पाए॥१॥
 
<br>रघुपति चरन उपासक जेते। खग मृग सुर नर असुर समेते॥
 
<br>रघुपति चरन उपासक जेते। खग मृग सुर नर असुर समेते॥
<br>बंदउँ पद सरोज सब केरे। जे बिनु काम राम के चेरे॥
+
<br>बंदउँ पद सरोज सब केरे। जे बिनु काम राम के चेरे॥२॥
 
<br>सुक सनकादि भगत मुनि नारद। जे मुनिबर बिग्यान बिसारद॥
 
<br>सुक सनकादि भगत मुनि नारद। जे मुनिबर बिग्यान बिसारद॥
<br>प्रनवउँ सबहिं धरनि धरि सीसा। करहु कृपा जन जानि मुनीसा॥
+
<br>प्रनवउँ सबहिं धरनि धरि सीसा। करहु कृपा जन जानि मुनीसा॥३॥
<br>जनकसुता जग जननि जानकी। अतिसय प्रिय करुना निधान की॥
+
<br>जनकसुता जग जननि जानकी। अतिसय प्रिय करुनानिधान की॥
<br>ताके जुग पद कमल मनावउँ। जासु कृपाँ निरमल मति पावउँ॥
+
<br>ताके जुग पद कमल मनावउँ। जासु कृपाँ निरमल मति पावउँ॥४॥
 
<br>पुनि मन बचन कर्म रघुनायक। चरन कमल बंदउँ सब लायक॥
 
<br>पुनि मन बचन कर्म रघुनायक। चरन कमल बंदउँ सब लायक॥
<br>राजिवनयन धरें धनु सायक। भगत बिपति भंजन सुख दायक॥
+
<br>राजिवनयन धरें धनु सायक। भगत बिपति भंजन सुख दायक॥५॥
  +
</span>
  +
<span class="doha">
 
<br>दो०-गिरा अरथ जल बीचि सम कहिअत भिन्न न भिन्न।
 
<br>दो०-गिरा अरथ जल बीचि सम कहिअत भिन्न न भिन्न।
 
<br>बंदउँ सीता राम पद जिन्हहि परम प्रिय खिन्न॥१८॥
 
<br>बंदउँ सीता राम पद जिन्हहि परम प्रिय खिन्न॥१८॥
  +
</span>
 
<br>
 
<br>
  +
<span class="chaupaai">
<br>बंदउँ नाम राम रघुवर को। हेतु कृसानु भानु हिमकर को॥
 
  +
<br>चौ०-बंदउँ नाम राम रघुवर को। हेतु कृसानु भानु हिमकर को॥
<br>बिधि हरि हरमय बेद प्रान सो। अगुन अनूपम गुन निधान सो॥
 
  +
<br>बिधि हरि हरमय बेद प्रान सो। अगुन अनूपम गुन निधान सो॥१॥
 
<br>महामंत्र जोइ जपत महेसू। कासीं मुकुति हेतु उपदेसू॥
 
<br>महामंत्र जोइ जपत महेसू। कासीं मुकुति हेतु उपदेसू॥
<br>महिमा जासु जान गनराउ। प्रथम पूजिअत नाम प्रभाऊ॥
+
<br>महिमा जासु जान गनराउ। प्रथम पूजिअत नाम प्रभाऊ॥२॥
 
<br>जान आदिकबि नाम प्रतापू। भयउ सुद्ध करि उलटा जापू॥
 
<br>जान आदिकबि नाम प्रतापू। भयउ सुद्ध करि उलटा जापू॥
<br>सहस नाम सम सुनि सिव बानी। जपि जेईं पिय संग भवानी॥
+
<br>सहस नाम सम सुनि सिव बानी। जपि जेईं पिय संग भवानी॥३॥
 
<br>हरषे हेतु हेरि हर ही को। किय भूषन तिय भूषन ती को॥
 
<br>हरषे हेतु हेरि हर ही को। किय भूषन तिय भूषन ती को॥
<br>नाम प्रभाउ जान सिव नीको। कालकूट फलु दीन्ह अमी को॥
+
<br>नाम प्रभाउ जान सिव नीको। कालकूट फलु दीन्ह अमी को॥४॥
  +
</span>
  +
<span class="doha">
 
<br>दो०-बरषा रितु रघुपति भगति तुलसी सालि सुदास॥
 
<br>दो०-बरषा रितु रघुपति भगति तुलसी सालि सुदास॥
 
<br>राम नाम बर बरन जुग सावन भादव मास॥१९॥
 
<br>राम नाम बर बरन जुग सावन भादव मास॥१९॥
  +
</span>
 
<br>
 
<br>
  +
<span class="chaupaai">
 
<br>चौ०-आखर मधुर मनोहर दोऊ। बरन बिलोचन जन जिय जोऊ॥
 
<br>चौ०-आखर मधुर मनोहर दोऊ। बरन बिलोचन जन जिय जोऊ॥
<br>सुमिरत सुलभ सुखद सब काहू। लोक लाहु परलोक निबाहू॥
+
<br>सुमिरत सुलभ सुखद सब काहू। लोक लाहु परलोक निबाहू॥१॥
 
<br>कहत सुनत सुमिरत सुठि नीके। राम लखन सम प्रिय तुलसी के॥
 
<br>कहत सुनत सुमिरत सुठि नीके। राम लखन सम प्रिय तुलसी के॥
<br>बरनत बरन प्रीति बिलगाती। ब्रह्म जीव सम सहज सँघाती॥
+
<br>बरनत बरन प्रीति बिलगाती। ब्रह्म जीव सम सहज सँघाती॥२॥
 
<br>नर नारायन सरिस सुभ्राता। जग पालक बिसेषि जन त्राता॥
 
<br>नर नारायन सरिस सुभ्राता। जग पालक बिसेषि जन त्राता॥
<br>भगति सुतिय कल करन बिभूषन। जग हित हेतु बिमल बिधु पूषन
+
<br>भगति सुतिय कल करन बिभूषन। जग हित हेतु बिमल बिधु पूषन॥३॥
 
<br>स्वाद तोष सम सुगति सुधा के। कमठ सेष सम धर बसुधा के॥
 
<br>स्वाद तोष सम सुगति सुधा के। कमठ सेष सम धर बसुधा के॥
<br>जन मन मंजु कंज मधुकर से। जीह जसोमति हरि हलधर से॥
+
<br>जन मन मंजु कंज मधुकर से। जीह जसोमति हरि हलधर से॥४॥
  +
</span>
  +
<span class="doha">
 
<br>दो०--एकु छत्रु एकु मुकुटमनि सब बरननि पर जोउ।
 
<br>दो०--एकु छत्रु एकु मुकुटमनि सब बरननि पर जोउ।
 
<br>तुलसी रघुबर नाम के बरन बिराजत दोउ॥२०॥
 
<br>तुलसी रघुबर नाम के बरन बिराजत दोउ॥२०॥
  +
</span>
 
<br>
 
<br>
  +
<span class="chaupaai">
 
<br>चौ०-समुझत सरिस नाम अरु नामी। प्रीति परसपर प्रभु अनुगामी॥
 
<br>चौ०-समुझत सरिस नाम अरु नामी। प्रीति परसपर प्रभु अनुगामी॥
<br>नाम रूप दुइ ईस उपाधी। अकथ अनादि सुसामुझि साधी॥
+
<br>नाम रूप दुइ ईस उपाधी। अकथ अनादि सुसामुझि साधी॥१॥
 
<br>को बड़ छोट कहत अपराधू। सुनि गुन भेद समुझिहहिं साधू॥
 
<br>को बड़ छोट कहत अपराधू। सुनि गुन भेद समुझिहहिं साधू॥
<br>देखिअहिं रूप नाम आधीना। रूप ग्यान नहिं नाम बिहीना॥
+
<br>देखिअहिं रूप नाम आधीना। रूप ग्यान नहिं नाम बिहीना॥२॥
 
<br>रूप बिसेष नाम बिनु जानें। करतल गत न परहिं पहिचानें॥
 
<br>रूप बिसेष नाम बिनु जानें। करतल गत न परहिं पहिचानें॥
<br>सुमिरिअ नाम रूप बिनु देखें। आवत हृदयँ सनेह बिसेषें॥
+
<br>सुमिरिअ नाम रूप बिनु देखें। आवत हृदयँ सनेह बिसेषें॥३॥
 
<br>नाम रूप गति अकथ कहानी। समुझत सुखद न परति बखानी॥
 
<br>नाम रूप गति अकथ कहानी। समुझत सुखद न परति बखानी॥
<br>अगुन सगुन बिच नाम सुसाखी। उभय प्रबोधक चतुर दुभाषी॥
+
<br>अगुन सगुन बिच नाम सुसाखी। उभय प्रबोधक चतुर दुभाषी॥४॥
  +
</span>
  +
<span class="doha">
 
<br>दो०-राम नाम मनिदीप धरु जीह देहरी द्वार।
 
<br>दो०-राम नाम मनिदीप धरु जीह देहरी द्वार।
 
<br>तुलसी भीतर बाहेरहुँ जौं चाहसि उजिआर॥२१॥
 
<br>तुलसी भीतर बाहेरहुँ जौं चाहसि उजिआर॥२१॥
  +
</span>
 
<br>
 
<br>
  +
<span class="chaupaai">
 
<br>चौ०-नाम जीहँ जपि जागहिं जोगी। बिरति बिरंचि प्रपंच बियोगी॥
 
<br>चौ०-नाम जीहँ जपि जागहिं जोगी। बिरति बिरंचि प्रपंच बियोगी॥
<br>ब्रह्मसुखहि अनुभवहिं अनूपा। अकथ अनामय नाम न रूपा॥
+
<br>ब्रह्मसुखहि अनुभवहिं अनूपा। अकथ अनामय नाम न रूपा॥१॥
 
<br>जाना चहहिं गूढ़ गति जेऊ। नाम जीहँ जपि जानहिं तेऊ॥
 
<br>जाना चहहिं गूढ़ गति जेऊ। नाम जीहँ जपि जानहिं तेऊ॥
<br>साधक नाम जपहिं लय लाएँ। होहिं सिद्ध अनिमादिक पाएँ॥
+
<br>साधक नाम जपहिं लय लाएँ। होहिं सिद्ध अनिमादिक पाएँ॥२॥
 
<br>जपहिं नामु जन आरत भारी। मिटहिं कुसंकट होहिं सुखारी॥
 
<br>जपहिं नामु जन आरत भारी। मिटहिं कुसंकट होहिं सुखारी॥
<br>राम भगत जग चारि प्रकारा। सुकृती चारिउ अनघ उदारा॥
+
<br>राम भगत जग चारि प्रकारा। सुकृती चारिउ अनघ उदारा॥३॥
 
<br>चहू चतुर कहुँ नाम अधारा। ग्यानी प्रभुहि बिसेषि पिआरा॥
 
<br>चहू चतुर कहुँ नाम अधारा। ग्यानी प्रभुहि बिसेषि पिआरा॥
<br>चहुँ जुग चहुँ श्रुति ना प्रभाऊ। कलि बिसेषि नहिं आन उपाऊ॥
+
<br>चहुँ जुग चहुँ श्रुति नाम प्रभाऊ। कलि बिसेषि नहिं आन उपाऊ॥४॥
  +
</span>
  +
<span class="doha">
 
<br>दो०-सकल कामना हीन जे राम भगति रस लीन।
 
<br>दो०-सकल कामना हीन जे राम भगति रस लीन।
 
<br>नाम सुप्रेम पियूष हद तिन्हहुँ किए मन मीन॥२२॥
 
<br>नाम सुप्रेम पियूष हद तिन्हहुँ किए मन मीन॥२२॥
  +
</span>
 
<br>
 
<br>
  +
<span class="chaupaai">
 
<br>चौ०-अगुन सगुन दुइ ब्रह्म सरूपा। अकथ अगाध अनादि अनूपा॥
 
<br>चौ०-अगुन सगुन दुइ ब्रह्म सरूपा। अकथ अगाध अनादि अनूपा॥
<br>मोरें मत बड़ नामु दुहू तें। किए जेहिं जुग निज बस निज बूतें॥
+
<br>मोरें मत बड़ नामु दुहू तें। किए जेहिं जुग निज बस निज बूतें॥१॥
<br>प्रोढ़ि सुजन जनि जानहिं जन की। कहउँ प्रतीति प्रीति रुचि मन की॥
+
<br>प्रौढ़ि सुजन जनि जानहिं जन की। कहउँ प्रतीति प्रीति रुचि मन की॥
<br>एकु दारुगत देखिअ एकू। पावक सम जुग ब्रह्म बिबेकू॥
+
<br>एकु दारुगत देखिअ एकू। पावक सम जुग ब्रह्म बिबेकू॥२॥
 
<br>उभय अगम जुग सुगम नाम तें। कहेउँ नामु बड़ ब्रह्म राम तें॥
 
<br>उभय अगम जुग सुगम नाम तें। कहेउँ नामु बड़ ब्रह्म राम तें॥
<br>ब्यापकु एकु ब्रह्म अबिनासी। सत चेतन घन आनँद रासी॥
+
<br>ब्यापकु एकु ब्रह्म अबिनासी। सत चेतन घन आनँद रासी॥३॥
 
<br>अस प्रभु हृदयँ अछत अबिकारी। सकल जीव जग दीन दुखारी॥
 
<br>अस प्रभु हृदयँ अछत अबिकारी। सकल जीव जग दीन दुखारी॥
<br>नाम निरूपन नाम जतन तें। सोउ प्रगटत जिमि मोल रतन तें॥
+
<br>नाम निरूपन नाम जतन तें। सोउ प्रगटत जिमि मोल रतन तें॥४॥
  +
</span>
  +
<span class="doha">
 
<br>दो०-निरगुन तें एहि भाँति बड़ नाम प्रभाउ अपार।
 
<br>दो०-निरगुन तें एहि भाँति बड़ नाम प्रभाउ अपार।
 
<br>कहउँ नामु बड़ राम तें निज बिचार अनुसार॥२३॥
 
<br>कहउँ नामु बड़ राम तें निज बिचार अनुसार॥२३॥
  +
</span>
 
<br>
 
<br>
  +
<span class="chaupaai">
 
<br>चौ०-राम भगत हित नर तनु धारी। सहि संकट किए साधु सुखारी॥
 
<br>चौ०-राम भगत हित नर तनु धारी। सहि संकट किए साधु सुखारी॥
<br>नामु सप्रेम जपत अनयासा। भगत होहिं मुद मंगल बासा॥
+
<br>नामु सप्रेम जपत अनयासा। भगत होहिं मुद मंगल बासा॥१॥
 
<br>राम एक तापस तिय तारी। नाम कोटि खल कुमति सुधारी॥
 
<br>राम एक तापस तिय तारी। नाम कोटि खल कुमति सुधारी॥
<br>रिषि हित राम सुकेतुसुता की। सहित सेन सुत कीन्ह बिबाकी॥
+
<br>रिषि हित राम सुकेतुसुता की। सहित सेन सुत कीन्ह बिबाकी॥२॥
 
<br>सहित दोष दुख दास दुरासा। दलइ नामु जिमि रबि निसि नासा॥
 
<br>सहित दोष दुख दास दुरासा। दलइ नामु जिमि रबि निसि नासा॥
<br>भंजेउ राम आपु भव चापू। भव भय भंजन नाम प्रतापू॥
+
<br>भंजेउ राम आपु भव चापू। भव भय भंजन नाम प्रतापू॥३॥
 
<br>दंडक बनु प्रभु कीन्ह सुहावन। जन मन अमित नाम किए पावन॥।
 
<br>दंडक बनु प्रभु कीन्ह सुहावन। जन मन अमित नाम किए पावन॥।
<br>निसिचर निकर दले रघुनंदन। नामु सकल कलि कलुष निकंदन॥
+
<br>निसिचर निकर दले रघुनंदन। नामु सकल कलि कलुष निकंदन॥४॥
  +
</span>
  +
<span class="doha">
 
<br>दो०-सबरी गीध सुसेवकनि सुगति दीन्हि रघुनाथ।
 
<br>दो०-सबरी गीध सुसेवकनि सुगति दीन्हि रघुनाथ।
 
<br>नाम उधारे अमित खल बेद बिदित गुन गाथ॥२४॥
 
<br>नाम उधारे अमित खल बेद बिदित गुन गाथ॥२४॥
  +
</span>
 
<br>
 
<br>
  +
<span class="chaupaai">
 
<br>चौ०-राम सुकंठ बिभीषन दोऊ। राखे सरन जान सबु कोऊ॥
 
<br>चौ०-राम सुकंठ बिभीषन दोऊ। राखे सरन जान सबु कोऊ॥
<br>नाम गरीब अनेक नेवाजे। लोक बेद बर बिरिद बिराजे॥
+
<br>नाम गरीब अनेक नेवाजे। लोक बेद बर बिरिद बिराजे॥१॥
 
<br>राम भालु कपि कटकु बटोरा। सेतु हेतु श्रमु कीन्ह न थोरा॥
 
<br>राम भालु कपि कटकु बटोरा। सेतु हेतु श्रमु कीन्ह न थोरा॥
<br>नामु लेत भवसिंधु सुखाहीं। करहु बिचारु सुजन मन माहीं॥
+
<br>नामु लेत भवसिंधु सुखाहीं। करहु बिचारु सुजन मन माहीं॥२॥
 
<br>राम सकुल रन रावनु मारा। सीय सहित निज पुर पगु धारा॥
 
<br>राम सकुल रन रावनु मारा। सीय सहित निज पुर पगु धारा॥
<br>राजा रामु अवध रजधानी। गावत गुन सुर मुनि बर बानी॥
+
<br>राजा रामु अवध रजधानी। गावत गुन सुर मुनि बर बानी॥३॥
 
<br>सेवक सुमिरत नामु सप्रीती। बिनु श्रम प्रबल मोह दलु जीती॥
 
<br>सेवक सुमिरत नामु सप्रीती। बिनु श्रम प्रबल मोह दलु जीती॥
<br>फिरत सनेहँ मगन सुख अपनें। नाम प्रसाद सोच नहिं सपनें॥
+
<br>फिरत सनेहँ मगन सुख अपनें। नाम प्रसाद सोच नहिं सपनें॥४॥
  +
</span>
  +
<span class="doha">
 
<br>दो०-ब्रह्म राम तें नामु बड़ बर दायक बर दानि।
 
<br>दो०-ब्रह्म राम तें नामु बड़ बर दायक बर दानि।
 
<br>रामचरित सत कोटि महँ लिय महेस जियँ जानि॥२५॥
 
<br>रामचरित सत कोटि महँ लिय महेस जियँ जानि॥२५॥
  +
</span>
<br>मासपारायण, पहला विश्राम
 
  +
<br><span class="vishraam">मासपारायण, पहला विश्राम</span>
 
<br>
 
<br>
  +
<span class="chaupaai">
 
<br>चौ०-नाम प्रसाद संभु अबिनासी। साजु अमंगल मंगल रासी॥
 
<br>चौ०-नाम प्रसाद संभु अबिनासी। साजु अमंगल मंगल रासी॥
<br>सुक सनकादि सिद्ध मुनि जोगी। नाम प्रसाद ब्रह्मसुख भोगी॥
+
<br>सुक सनकादि सिद्ध मुनि जोगी। नाम प्रसाद ब्रह्मसुख भोगी॥१॥
 
<br>नारद जानेउ नाम प्रतापू। जग प्रिय हरि हरि हर प्रिय आपू॥
 
<br>नारद जानेउ नाम प्रतापू। जग प्रिय हरि हरि हर प्रिय आपू॥
<br>नामु जपत प्रभु कीन्ह प्रसादू। भगत सिरोमनि भे प्रहलादू॥
+
<br>नामु जपत प्रभु कीन्ह प्रसादू। भगत सिरोमनि भे प्रहलादू॥२॥
 
<br>ध्रुवँ सगलानि जपेउ हरि नाऊँ। पायउ अचल अनूपम ठाऊँ॥
 
<br>ध्रुवँ सगलानि जपेउ हरि नाऊँ। पायउ अचल अनूपम ठाऊँ॥
<br>सुमिरि पवनसुत पावन नामू। अपने बस करि राखे रामू॥
+
<br>सुमिरि पवनसुत पावन नामू। अपने बस करि राखे रामू॥३॥
 
<br>अपतु अजामिलु गजु गनिकाऊ। भए मुकुत हरि नाम प्रभाऊ॥
 
<br>अपतु अजामिलु गजु गनिकाऊ। भए मुकुत हरि नाम प्रभाऊ॥
<br>कहौं कहाँ लगि नाम बड़ाई। रामु न सकहिं नाम गुन गाई॥
+
<br>कहौं कहाँ लगि नाम बड़ाई। रामु न सकहिं नाम गुन गाई॥४॥
  +
</span>
  +
<span class="doha">
 
<br>दो०-नामु राम को कलपतरु कलि कल्यान निवासु।
 
<br>दो०-नामु राम को कलपतरु कलि कल्यान निवासु।
 
<br>जो सुमिरत भयो भाँग तें तुलसी तुलसीदासु॥२६॥
 
<br>जो सुमिरत भयो भाँग तें तुलसी तुलसीदासु॥२६॥
  +
</span>
 
<br>
 
<br>
  +
<span class="chaupaai">
 
<br>चौ०-चहुँ जुग तीनि काल तिहुँ लोका। भए नाम जपि जीव बिसोका॥
 
<br>चौ०-चहुँ जुग तीनि काल तिहुँ लोका। भए नाम जपि जीव बिसोका॥
<br>बेद पुरान संत मत एहू। सकल सुकृत फल राम सनेहू॥
+
<br>बेद पुरान संत मत एहू। सकल सुकृत फल राम सनेहू॥१॥
<br>ध्यानु प्रथम जुग मखबिधि दूजें। द्वापर परितोषत प्रभु पूजें॥
+
<br>ध्यानु प्रथम जुग मख बिधि दूजें। द्वापर परितोषत प्रभु पूजें॥
<br>कलि केवल मल मूल मलीना। पाप पयोनिधि जन मन मीना॥
+
<br>कलि केवल मल मूल मलीना। पाप पयोनिधि जन मन मीना॥२॥
 
<br>नाम कामतरु काल कराला। सुमिरत समन सकल जग जाला॥
 
<br>नाम कामतरु काल कराला। सुमिरत समन सकल जग जाला॥
<br>राम नाम कलि अभिमत दाता। हित परलोक लोक पितु माता॥
+
<br>राम नाम कलि अभिमत दाता। हित परलोक लोक पितु माता॥३॥
 
<br>नहिं कलि करम न भगति बिबेकू। राम नाम अवलंबन एकू॥
 
<br>नहिं कलि करम न भगति बिबेकू। राम नाम अवलंबन एकू॥
<br>कालनेमि कलि कपट निधानू। नाम सुमति समरथ हनुमानू॥
+
<br>कालनेमि कलि कपट निधानू। नाम सुमति समरथ हनुमानू॥४॥
  +
</span>
  +
<span class="doha">
 
<br>दो०-राम नाम नरकेसरी कनककसिपु कलिकाल।
 
<br>दो०-राम नाम नरकेसरी कनककसिपु कलिकाल।
 
<br>जापक जन प्रहलाद जिमि पालिहि दलि सुरसाल॥२७॥
 
<br>जापक जन प्रहलाद जिमि पालिहि दलि सुरसाल॥२७॥
  +
</span>
 
<br>
 
<br>
  +
<span class="chaupaai">
 
<br>चौ०-भायँ कुभायँ अनख आलसहूँ। नाम जपत मंगल दिसि दसहूँ॥
 
<br>चौ०-भायँ कुभायँ अनख आलसहूँ। नाम जपत मंगल दिसि दसहूँ॥
<br>सुमिरि सो नाम राम गुन गाथा। करउँ नाइ रघुनाथहि माथा॥
+
<br>सुमिरि सो नाम राम गुन गाथा। करउँ नाइ रघुनाथहि माथा॥१॥
 
<br>मोरि सुधारिहि सो सब भाँती। जासु कृपा नहिं कृपाँ अघाती॥
 
<br>मोरि सुधारिहि सो सब भाँती। जासु कृपा नहिं कृपाँ अघाती॥
<br>राम सुस्वामि कुसेवकु मोसो। निज दिसि देखि दयानिधि पोसो॥
+
<br>राम सुस्वामि कुसेवकु मोसो। निज दिसि देखि दयानिधि पोसो॥२॥
 
<br>लोकहुँ बेद सुसाहिब रीतीं। बिनय सुनत पहिचानत प्रीती॥
 
<br>लोकहुँ बेद सुसाहिब रीतीं। बिनय सुनत पहिचानत प्रीती॥
<br>गनी गरीब ग्रामनर नागर। पंडित मूढ़ मलीन उजागर॥
+
<br>गनी गरीब ग्राम नर नागर। पंडित मूढ़ मलीन उजागर॥३॥
 
<br>सुकबि कुकबि निज मति अनुहारी। नृपहि सराहत सब नर नारी॥
 
<br>सुकबि कुकबि निज मति अनुहारी। नृपहि सराहत सब नर नारी॥
<br>साधु सुजान सुसील नृपाला। ईस अंस भव परम कृपाला॥
+
<br>साधु सुजान सुसील नृपाला। ईस अंस भव परम कृपाला॥४॥
 
<br>सुनि सनमानहिं सबहि सुबानी। भनिति भगति नति गति पहिचानी॥
 
<br>सुनि सनमानहिं सबहि सुबानी। भनिति भगति नति गति पहिचानी॥
<br>यह प्राकृत महिपाल सुभाऊ। जान सिरोमनि कोसलराऊ॥
+
<br>यह प्राकृत महिपाल सुभाऊ। जान सिरोमनि कोसलराऊ॥५॥
<br>रीझत राम सनेह निसोतें। को जग मंद मलिनमति मोतें॥
+
<br>रीझत राम सनेह निसोतें। को जग मंद मलिनमति मोतें॥६॥
  +
</span>
  +
<span class="doha">
 
<br>दो०-सठ सेवक की प्रीति रुचि रखिहहिं राम कृपालु।
 
<br>दो०-सठ सेवक की प्रीति रुचि रखिहहिं राम कृपालु।
 
<br>उपल किए जलजान जेहिं सचिव सुमति कपि भालु॥२८(क)॥
 
<br>उपल किए जलजान जेहिं सचिव सुमति कपि भालु॥२८(क)॥
 
<br>हौंहु कहावत सबु कहत राम सहत उपहास।
 
<br>हौंहु कहावत सबु कहत राम सहत उपहास।
 
<br>साहिब सीतानाथ सो सेवक तुलसीदास॥२८(ख)॥
 
<br>साहिब सीतानाथ सो सेवक तुलसीदास॥२८(ख)॥
  +
</span>
 
<br>
 
<br>
  +
<span class="chaupaai">
 
<br>चौ०-अति बड़ि मोरि ढिठाई खोरी। सुनि अघ नरकहुँ नाक सकोरी॥
 
<br>चौ०-अति बड़ि मोरि ढिठाई खोरी। सुनि अघ नरकहुँ नाक सकोरी॥
<br>समुझि सहम मोहि अपडर अपनें। सो सुधि राम कीन्हि नहिं सपनें॥
+
<br>समुझि सहम मोहि अपडर अपनें। सो सुधि राम कीन्हि नहिं सपनें॥१॥
 
<br>सुनि अवलोकि सुचित चख चाही। भगति मोरि मति स्वामि सराही॥
 
<br>सुनि अवलोकि सुचित चख चाही। भगति मोरि मति स्वामि सराही॥
<br>कहत नसाइ होइ हियँ नीकी। रीझत राम जानि जन जी की॥
+
<br>कहत नसाइ होइ हियँ नीकी। रीझत राम जानि जन जी की॥२॥
 
<br>रहति न प्रभु चित चूक किए की। करत सुरति सय बार हिए की॥
 
<br>रहति न प्रभु चित चूक किए की। करत सुरति सय बार हिए की॥
<br>जेहिं अघ बधेउ ब्याध जिमि बाली। फिरि सुकंठ सोइ कीन्ह कुचाली॥
+
<br>जेहिं अघ बधेउ ब्याध जिमि बाली। फिरि सुकंठ सोइ कीन्ह कुचाली॥३॥
 
<br>सोइ करतूति बिभीषन केरी। सपनेहुँ सो न राम हियँ हेरी॥
 
<br>सोइ करतूति बिभीषन केरी। सपनेहुँ सो न राम हियँ हेरी॥
<br>ते भरतहि भेंटत सनमाने। राजसभाँ रघुबीर बखाने॥
+
<br>ते भरतहि भेंटत सनमाने। राजसभाँ रघुबीर बखाने॥४॥
  +
</span>
  +
<span class="doha">
 
<br>दो0-प्रभु तरु तर कपि डार पर ते किए आपु समान॥
 
<br>दो0-प्रभु तरु तर कपि डार पर ते किए आपु समान॥
 
<br>तुलसी कहूँ न राम से साहिब सीलनिधान॥२९(क)॥
 
<br>तुलसी कहूँ न राम से साहिब सीलनिधान॥२९(क)॥
पंक्ति ४४२: पंक्ति ५६८:
 
<br>एहि बिधि निज गुन दोष कहि सबहि बहुरि सिरु नाइ।
 
<br>एहि बिधि निज गुन दोष कहि सबहि बहुरि सिरु नाइ।
 
<br>बरनउँ रघुबर बिसद जसु सुनि कलि कलुष नसाइ॥२९(ग)॥
 
<br>बरनउँ रघुबर बिसद जसु सुनि कलि कलुष नसाइ॥२९(ग)॥
  +
</span>
 
<br>
 
<br>
  +
<span class="chaupaai">
 
<br>चौ०-जागबलिक जो कथा सुहाई। भरद्वाज मुनिबरहि सुनाई॥
 
<br>चौ०-जागबलिक जो कथा सुहाई। भरद्वाज मुनिबरहि सुनाई॥
<br>कहिहउँ सोइ संबाद बखानी। सुनहुँ सकल सज्जन सुखु मानी॥
+
<br>कहिहउँ सोइ संबाद बखानी। सुनहुँ सकल सज्जन सुखु मानी॥१॥
 
<br>संभु कीन्ह यह चरित सुहावा। बहुरि कृपा करि उमहि सुनावा॥
 
<br>संभु कीन्ह यह चरित सुहावा। बहुरि कृपा करि उमहि सुनावा॥
<br>सोइ सिव कागभुसुंडिहि दीन्हा। राम भगत अधिकारी चीन्हा॥
+
<br>सोइ सिव कागभुसुंडिहि दीन्हा। राम भगत अधिकारी चीन्हा॥२॥
 
<br>तेहि सन जागबलिक पुनि पावा। तिन्ह पुनि भरद्वाज प्रति गावा॥
 
<br>तेहि सन जागबलिक पुनि पावा। तिन्ह पुनि भरद्वाज प्रति गावा॥
<br>ते श्रोता बकता समसीला। सवँदरसी जानहिं हरिलीला॥
+
<br>ते श्रोता बकता समसीला। सवँदरसी जानहिं हरिलीला॥३॥
 
<br>जानहिं तीनि काल निज ग्याना। करतल गत आमलक समाना॥
 
<br>जानहिं तीनि काल निज ग्याना। करतल गत आमलक समाना॥
<br>औरउ जे हरिभगत सुजाना। कहहिं सुनहिं समुझहिं बिधि नाना॥
+
<br>औरउ जे हरिभगत सुजाना। कहहिं सुनहिं समुझहिं बिधि नाना॥४॥
  +
</span>
  +
<span class="doha">
 
<br>दो०-मैं पुनि निज गुर सन सुनी कथा सो सूकरखेत।
 
<br>दो०-मैं पुनि निज गुर सन सुनी कथा सो सूकरखेत।
 
<br>समुझी नहिं तसि बालपन तब अति रहेउँ अचेत॥३०(क)॥
 
<br>समुझी नहिं तसि बालपन तब अति रहेउँ अचेत॥३०(क)॥
 
<br>श्रोता बकता ग्याननिधि कथा राम कै गूढ़।
 
<br>श्रोता बकता ग्याननिधि कथा राम कै गूढ़।
 
<br>किमि समुझौं मैं जीव जड़ कलि मल ग्रसित बिमूढ़॥३०(ख)॥
 
<br>किमि समुझौं मैं जीव जड़ कलि मल ग्रसित बिमूढ़॥३०(ख)॥
  +
</span>
 
<br>
 
<br>
  +
<span class="chaupaai">
 
<br>चौ०-तदपि कही गुर बारहिं बारा। समुझि परी कछु मति अनुसारा॥
 
<br>चौ०-तदपि कही गुर बारहिं बारा। समुझि परी कछु मति अनुसारा॥
<br>भाषाबद्ध करबि मैं सोई। मोरें मन प्रबोध जेहिं होई॥
+
<br>भाषाबद्ध करबि मैं सोई। मोरें मन प्रबोध जेहिं होई॥१॥
 
<br>जस कछु बुधि बिबेक बल मेरें। तस कहिहउँ हियँ हरि के प्रेरें॥
 
<br>जस कछु बुधि बिबेक बल मेरें। तस कहिहउँ हियँ हरि के प्रेरें॥
<br>निज संदेह मोह भ्रम हरनी। करउँ कथा भव सरिता तरनी॥
+
<br>निज संदेह मोह भ्रम हरनी। करउँ कथा भव सरिता तरनी॥२॥
 
<br>बुध बिश्राम सकल जन रंजनि। रामकथा कलि कलुष बिभंजनि॥
 
<br>बुध बिश्राम सकल जन रंजनि। रामकथा कलि कलुष बिभंजनि॥
<br>रामकथा कलि पंनग भरनी। पुनि बिबेक पावक कहुँ अरनी॥
+
<br>रामकथा कलि पंनग भरनी। पुनि बिबेक पावक कहुँ अरनी॥३॥
 
<br>रामकथा कलि कामद गाई। सुजन सजीवनि मूरि सुहाई॥
 
<br>रामकथा कलि कामद गाई। सुजन सजीवनि मूरि सुहाई॥
<br>सोइ बसुधातल सुधा तरंगिनि। भय भंजनि भ्रम भेक भुअंगिनि॥
+
<br>सोइ बसुधातल सुधा तरंगिनि। भय भंजनि भ्रम भेक भुअंगिनि॥४॥
 
<br>असुर सेन सम नरक निकंदिनि। साधु बिबुध कुल हित गिरिनंदिनि॥
 
<br>असुर सेन सम नरक निकंदिनि। साधु बिबुध कुल हित गिरिनंदिनि॥
<br>संत समाज पयोधि रमा सी। बिस्व भार भर अचल छमा सी॥
+
<br>संत समाज पयोधि रमा सी। बिस्व भार भर अचल छमा सी॥५॥
 
<br>जम गन मुहँ मसि जग जमुना सी। जीवन मुकुति हेतु जनु कासी॥
 
<br>जम गन मुहँ मसि जग जमुना सी। जीवन मुकुति हेतु जनु कासी॥
<br>रामहि प्रिय पावनि तुलसी सी। तुलसिदास हित हियँ हुलसी सी॥
+
<br>रामहि प्रिय पावनि तुलसी सी। तुलसिदास हित हियँ हुलसी सी॥६॥
 
<br>सिवप्रिय मेकल सैल सुता सी। सकल सिद्धि सुख संपति रासी॥
 
<br>सिवप्रिय मेकल सैल सुता सी। सकल सिद्धि सुख संपति रासी॥
<br>सदगुन सुरगन अंब अदिति सी। रघुबर भगति प्रेम परमिति सी॥
+
<br>सदगुन सुरगन अंब अदिति सी। रघुबर भगति प्रेम परमिति सी॥७॥
  +
</span>
  +
<span class="doha">
 
<br>दो०- राम कथा मंदाकिनी चित्रकूट चित चारु।
 
<br>दो०- राम कथा मंदाकिनी चित्रकूट चित चारु।
 
<br>तुलसी सुभग सनेह बन सिय रघुबीर बिहारु॥३१॥
 
<br>तुलसी सुभग सनेह बन सिय रघुबीर बिहारु॥३१॥
  +
</span>
 
<br>
 
<br>
  +
<span class="chaupaai">
 
<br>चौ०-राम चरित चिंतामनि चारू। संत सुमति तिय सुभग सिंगारू॥
 
<br>चौ०-राम चरित चिंतामनि चारू। संत सुमति तिय सुभग सिंगारू॥
<br>जग मंगल गुन ग्राम राम के। दानि मुकुति धन धरम धाम के॥
+
<br>जग मंगल गुनग्राम राम के। दानि मुकुति धन धरम धाम के॥१॥
 
<br>सदगुर ग्यान बिराग जोग के। बिबुध बैद भव भीम रोग के॥
 
<br>सदगुर ग्यान बिराग जोग के। बिबुध बैद भव भीम रोग के॥
<br>जननि जनक सिय राम प्रेम के। बीज सकल ब्रत धरम नेम के॥
+
<br>जननि जनक सिय राम प्रेम के। बीज सकल ब्रत धरम नेम के॥२॥
 
<br>समन पाप संताप सोक के। प्रिय पालक परलोक लोक के॥
 
<br>समन पाप संताप सोक के। प्रिय पालक परलोक लोक के॥
<br>सचिव सुभट भूपति बिचार के। कुंभज लोभ उदधि अपार के॥
+
<br>सचिव सुभट भूपति बिचार के। कुंभज लोभ उदधि अपार के॥३॥
 
<br>काम कोह कलिमल करिगन के। केहरि सावक जन मन बन के॥
 
<br>काम कोह कलिमल करिगन के। केहरि सावक जन मन बन के॥
<br>अतिथि पूज्य प्रियतम पुरारि के। कामद घन दारिद दवारि के॥
+
<br>अतिथि पूज्य प्रियतम पुरारि के। कामद घन दारिद दवारि के॥४॥
 
<br>मंत्र महामनि बिषय ब्याल के। मेटत कठिन कुअंक भाल के॥
 
<br>मंत्र महामनि बिषय ब्याल के। मेटत कठिन कुअंक भाल के॥
<br>हरन मोह तम दिनकर कर से। सेवक सालि पाल जलधर से॥
+
<br>हरन मोह तम दिनकर कर से। सेवक सालि पाल जलधर से॥५॥
 
<br>अभिमत दानि देवतरु बर से। सेवत सुलभ सुखद हरि हर से॥
 
<br>अभिमत दानि देवतरु बर से। सेवत सुलभ सुखद हरि हर से॥
<br>सुकबि सरद नभ मन उडगन से। रामभगत जन जीवन धन से॥
+
<br>सुकबि सरद नभ मन उडगन से। रामभगत जन जीवन धन से॥६॥
 
<br>सकल सुकृत फल भूरि भोग से। जग हित निरुपधि साधु लोग से॥
 
<br>सकल सुकृत फल भूरि भोग से। जग हित निरुपधि साधु लोग से॥
<br>सेवक मन मानस मराल से। पावक गंग तंरग माल से॥
+
<br>सेवक मन मानस मराल से। पावन गंग तंरग माल से॥७॥
  +
</span>
  +
<span class="doha">
 
<br>दो०-कुपथ कुतरक कुचालि कलि कपट दंभ पाषंड।
 
<br>दो०-कुपथ कुतरक कुचालि कलि कपट दंभ पाषंड।
 
<br>दहन राम गुन ग्राम जिमि इंधन अनल प्रचंड॥३२(क)॥
 
<br>दहन राम गुन ग्राम जिमि इंधन अनल प्रचंड॥३२(क)॥
 
<br>रामचरित राकेस कर सरिस सुखद सब काहु।
 
<br>रामचरित राकेस कर सरिस सुखद सब काहु।
 
<br>सज्जन कुमुद चकोर चित हित बिसेषि बड़ लाहु॥३२(ख)॥
 
<br>सज्जन कुमुद चकोर चित हित बिसेषि बड़ लाहु॥३२(ख)॥
  +
</span>
 
<br>
 
<br>
  +
<span class="chaupaai">
 
<br>चौ०-कीन्हि प्रस्न जेहि भाँति भवानी। जेहि बिधि संकर कहा बखानी॥
 
<br>चौ०-कीन्हि प्रस्न जेहि भाँति भवानी। जेहि बिधि संकर कहा बखानी॥
<br>सो सब हेतु कहब मैं गाई। कथाप्रबंध बिचित्र बनाई॥
+
<br>सो सब हेतु कहब मैं गाई। कथा प्रबंध बिचित्र बनाई॥१॥
 
<br>जेहि यह कथा सुनी नहिं होई। जनि आचरजु करैं सुनि सोई॥
 
<br>जेहि यह कथा सुनी नहिं होई। जनि आचरजु करैं सुनि सोई॥
<br>कथा अलौकिक सुनहिं जे ग्यानी। नहिं आचरजु करहिं अस जानी॥
+
<br>कथा अलौकिक सुनहिं जे ग्यानी। नहिं आचरजु करहिं अस जानी॥२॥
 
<br>रामकथा कै मिति जग नाहीं। असि प्रतीति तिन्ह के मन माहीं॥
 
<br>रामकथा कै मिति जग नाहीं। असि प्रतीति तिन्ह के मन माहीं॥
<br>नाना भाँति राम अवतारा। रामायन सत कोटि अपारा॥
+
<br>नाना भाँति राम अवतारा। रामायन सत कोटि अपारा॥३॥
 
<br>कलप भेद हरिचरित सुहाए। भाँति अनेक मुनीसन्ह गाए॥
 
<br>कलप भेद हरिचरित सुहाए। भाँति अनेक मुनीसन्ह गाए॥
<br>करिअ न संसय अस उर आनी। सुनिअ कथा सारद रति मानी॥
+
<br>करिअ न संसय अस उर आनी। सुनिअ कथा सादर रति मानी॥४॥
  +
</span>
  +
<span class="doha">
 
<br>दो०-राम अनंत अनंत गुन अमित कथा बिस्तार।
 
<br>दो०-राम अनंत अनंत गुन अमित कथा बिस्तार।
 
<br>सुनि आचरजु न मानिहहिं जिन्ह कें बिमल बिचार॥३३॥
 
<br>सुनि आचरजु न मानिहहिं जिन्ह कें बिमल बिचार॥३३॥
  +
</span>
 
<br>
 
<br>
  +
<span class="chaupaai">
 
<br>चौ०-एहि बिधि सब संसय करि दूरी। सिर धरि गुर पद पंकज धूरी॥
 
<br>चौ०-एहि बिधि सब संसय करि दूरी। सिर धरि गुर पद पंकज धूरी॥
<br>पुनि सबही बिनवउँ कर जोरी। करत कथा जेहिं लाग न खोरी॥
+
<br>पुनि सबही बिनवउँ कर जोरी। करत कथा जेहिं लाग न खोरी॥१॥
 
<br>सादर सिवहि नाइ अब माथा। बरनउँ बिसद राम गुन गाथा॥
 
<br>सादर सिवहि नाइ अब माथा। बरनउँ बिसद राम गुन गाथा॥
<br>संबत सोरह सै एकतीसा। करउँ कथा हरि पद धरि सीसा॥
+
<br>संबत सोरह सै एकतीसा। करउँ कथा हरि पद धरि सीसा॥२॥
 
<br>नौमी भौम बार मधु मासा। अवधपुरीं यह चरित प्रकासा॥
 
<br>नौमी भौम बार मधु मासा। अवधपुरीं यह चरित प्रकासा॥
<br>जेहि दिन राम जनम श्रुति गावहिं। तीरथ सकल तहाँ चलि आवहिं॥
+
<br>जेहि दिन राम जनम श्रुति गावहिं। तीरथ सकल तहाँ चलि आवहिं॥३॥
 
<br>असुर नाग खग नर मुनि देवा। आइ करहिं रघुनायक सेवा॥
 
<br>असुर नाग खग नर मुनि देवा। आइ करहिं रघुनायक सेवा॥
<br>जन्म महोत्सव रचहिं सुजाना। करहिं राम कल कीरति गाना॥
+
<br>जन्म महोत्सव रचहिं सुजाना। करहिं राम कल कीरति गाना॥४॥
  +
</span>
  +
<span class="doha">
 
<br>दो०-मज्जहिं सज्जन बृंद बहु पावन सरजू नीर।
 
<br>दो०-मज्जहिं सज्जन बृंद बहु पावन सरजू नीर।
 
<br>जपहिं राम धरि ध्यान उर सुंदर स्याम सरीर॥३४॥
 
<br>जपहिं राम धरि ध्यान उर सुंदर स्याम सरीर॥३४॥
  +
</span>
 
<br>
 
<br>
  +
<span class="chaupaai">
 
<br>चौ०-दरस परस मज्जन अरु पाना। हरइ पाप कह बेद पुराना॥
 
<br>चौ०-दरस परस मज्जन अरु पाना। हरइ पाप कह बेद पुराना॥
<br>नदी पुनीत अमित महिमा अति। कहि न सकइ सारद बिमलमति॥
+
<br>नदी पुनीत अमित महिमा अति। कहि न सकइ सारद बिमल मति॥१॥
 
<br>राम धामदा पुरी सुहावनि। लोक समस्त बिदित अति पावनि॥
 
<br>राम धामदा पुरी सुहावनि। लोक समस्त बिदित अति पावनि॥
<br>चारि खानि जग जीव अपारा। अवध तजें तनु नहिं संसारा॥
+
<br>चारि खानि जग जीव अपारा। अवध तजें तनु नहिं संसारा॥२॥
 
<br>सब बिधि पुरी मनोहर जानी। सकल सिद्धिप्रद मंगल खानी॥
 
<br>सब बिधि पुरी मनोहर जानी। सकल सिद्धिप्रद मंगल खानी॥
<br>बिमल कथा कर कीन्ह अरंभा। सुनत नसाहिं काम मद दंभा॥
+
<br>बिमल कथा कर कीन्ह अरंभा। सुनत नसाहिं काम मद दंभा॥३॥
 
<br>रामचरितमानस एहि नामा। सुनत श्रवन पाइअ बिश्रामा॥
 
<br>रामचरितमानस एहि नामा। सुनत श्रवन पाइअ बिश्रामा॥
<br>मन करि विषय अनल बन जरई। होइ सुखी जौ एहिं सर परई॥
+
<br>मन करि विषय अनल बन जरई। होइ सुखी जौ एहिं सर परई॥४॥
 
<br>रामचरितमानस मुनि भावन। बिरचेउ संभु सुहावन पावन॥
 
<br>रामचरितमानस मुनि भावन। बिरचेउ संभु सुहावन पावन॥
<br>त्रिबिध दोष दुख दारिद दावन। कलि कुचालि कुलि कलुष नसावन॥
+
<br>त्रिबिध दोष दुख दारिद दावन। कलि कुचालि कुलि कलुष नसावन॥५॥
 
<br>रचि महेस निज मानस राखा। पाइ सुसमउ सिवा सन भाषा॥
 
<br>रचि महेस निज मानस राखा। पाइ सुसमउ सिवा सन भाषा॥
<br>तातें रामचरितमानस बर। धरेउ नाम हियँ हेरि हरषि हर॥
+
<br>तातें रामचरितमानस बर। धरेउ नाम हियँ हेरि हरषि हर॥६॥
<br>कहउँ कथा सोइ सुखद सुहाई। सादर सुनहु सुजन मन लाई॥
+
<br>कहउँ कथा सोइ सुखद सुहाई। सादर सुनहु सुजन मन लाई॥७॥
  +
</span>
  +
<span class="doha">
 
<br>दो०-जस मानस जेहि बिधि भयउ जग प्रचार जेहि हेतु।
 
<br>दो०-जस मानस जेहि बिधि भयउ जग प्रचार जेहि हेतु।
 
<br>अब सोइ कहउँ प्रसंग सब सुमिरि उमा बृषकेतु॥३५॥
 
<br>अब सोइ कहउँ प्रसंग सब सुमिरि उमा बृषकेतु॥३५॥
  +
</span>
 
<br>
 
<br>
  +
<span class="chaupaai">
 
<br>चौ०-संभु प्रसाद सुमति हियँ हुलसी। रामचरितमानस कबि तुलसी॥
 
<br>चौ०-संभु प्रसाद सुमति हियँ हुलसी। रामचरितमानस कबि तुलसी॥
<br>करइ मनोहर मति अनुहारी। सुजन सुचित सुनि लेहु सुधारी॥
+
<br>करइ मनोहर मति अनुहारी। सुजन सुचित सुनि लेहु सुधारी॥१॥
 
<br>सुमति भूमि थल हृदय अगाधू। बेद पुरान उदधि घन साधू॥
 
<br>सुमति भूमि थल हृदय अगाधू। बेद पुरान उदधि घन साधू॥
<br>बरषहिं राम सुजस बर बारी। मधुर मनोहर मंगलकारी॥
+
<br>बरषहिं राम सुजस बर बारी। मधुर मनोहर मंगलकारी॥२॥
 
<br>लीला सगुन जो कहहिं बखानी। सोइ स्वच्छता करइ मल हानी॥
 
<br>लीला सगुन जो कहहिं बखानी। सोइ स्वच्छता करइ मल हानी॥
<br>प्रेम भगति जो बरनि न जाई। सोइ मधुरता सुसीतलताई॥
+
<br>प्रेम भगति जो बरनि न जाई। सोइ मधुरता सुसीतलताई॥३॥
 
<br>सो जल सुकृत सालि हित होई। राम भगत जन जीवन सोई॥
 
<br>सो जल सुकृत सालि हित होई। राम भगत जन जीवन सोई॥
<br>मेधा महि गत सो जल पावन। सकिलि श्रवन मग चलेउ सुहावन॥
+
<br>मेधा महि गत सो जल पावन। सकिलि श्रवन मग चलेउ सुहावन॥४॥
<br>भरेउ सुमानस सुथल थिराना। सुखद सीत रुचि चारु चिराना॥
+
<br>भरेउ सुमानस सुथल थिराना। सुखद सीत रुचि चारु चिराना॥५॥
  +
</span>
  +
<span class="doha">
 
<br>दो०-सुठि सुंदर संबाद बर बिरचे बुद्धि बिचारि।
 
<br>दो०-सुठि सुंदर संबाद बर बिरचे बुद्धि बिचारि।
 
<br>तेइ एहि पावन सुभग सर घाट मनोहर चारि॥३६॥
 
<br>तेइ एहि पावन सुभग सर घाट मनोहर चारि॥३६॥
  +
</span>
 
<br>
 
<br>
  +
<span class="chaupaai">
 
<br>चौ०-सप्त प्रबन्ध सुभग सोपाना। ग्यान नयन निरखत मन माना॥
 
<br>चौ०-सप्त प्रबन्ध सुभग सोपाना। ग्यान नयन निरखत मन माना॥
<br>रघुपति महिमा अगुन अबाधा। बरनब सोइ बर बारि अगाधा॥
+
<br>रघुपति महिमा अगुन अबाधा। बरनब सोइ बर बारि अगाधा॥१॥
 
<br>राम सीय जस सलिल सुधासम। उपमा बीचि बिलास मनोरम॥
 
<br>राम सीय जस सलिल सुधासम। उपमा बीचि बिलास मनोरम॥
<br>पुरइनि सघन चारु चौपाई। जुगुति मंजु मनि सीप सुहाई॥
+
<br>पुरइनि सघन चारु चौपाई। जुगुति मंजु मनि सीप सुहाई॥२॥
 
<br>छंद सोरठा सुंदर दोहा। सोइ बहुरंग कमल कुल सोहा॥
 
<br>छंद सोरठा सुंदर दोहा। सोइ बहुरंग कमल कुल सोहा॥
<br>अरथ अनूप सुमाव सुभासा। सोइ पराग मकरंद सुबासा॥
+
<br>अरथ अनूप सुभाव सुभासा। सोइ पराग मकरंद सुबासा॥३॥
 
<br>सुकृत पुंज मंजुल अलि माला। ग्यान बिराग बिचार मराला॥
 
<br>सुकृत पुंज मंजुल अलि माला। ग्यान बिराग बिचार मराला॥
<br>धुनि अवरेब कबित गुन जाती। मीन मनोहर ते बहुभाँती॥
+
<br>धुनि अवरेब कबित गुन जाती। मीन मनोहर ते बहुभाँती॥४॥
 
<br>अरथ धरम कामादिक चारी। कहब ग्यान बिग्यान बिचारी॥
 
<br>अरथ धरम कामादिक चारी। कहब ग्यान बिग्यान बिचारी॥
<br>नव रस जप तप जोग बिरागा। ते सब जलचर चारु तड़ागा॥
+
<br>नव रस जप तप जोग बिरागा। ते सब जलचर चारु तड़ागा॥५॥
 
<br>सुकृती साधु नाम गुन गाना। ते बिचित्र जल बिहग समाना॥
 
<br>सुकृती साधु नाम गुन गाना। ते बिचित्र जल बिहग समाना॥
<br>संतसभा चहुँ दिसि अवँराई। श्रद्धा रितु बसंत सम गाई॥
+
<br>संतसभा चहुँ दिसि अवँराई। श्रद्धा रितु बसंत सम गाई॥६॥
 
<br>भगति निरुपन बिबिध बिधाना। छमा दया दम लता बिताना॥
 
<br>भगति निरुपन बिबिध बिधाना। छमा दया दम लता बिताना॥
<br>सम जम नियम फूल फल ग्याना। हरि पत रति रस बेद बखाना॥
+
<br>सम जम नियम फूल फल ग्याना। हरि पत रति रस बेद बखाना॥७॥
<br>औरउ कथा अनेक प्रसंगा। तेइ सुक पिक बहुबरन बिहंगा॥
+
<br>औरउ कथा अनेक प्रसंगा। तेइ सुक पिक बहुबरन बिहंगा॥८॥
  +
</span>
  +
<span class="doha">
 
<br>दो०-पुलक बाटिका बाग बन सुख सुबिहंग बिहारु।
 
<br>दो०-पुलक बाटिका बाग बन सुख सुबिहंग बिहारु।
 
<br>माली सुमन सनेह जल सींचत लोचन चारु॥३७॥
 
<br>माली सुमन सनेह जल सींचत लोचन चारु॥३७॥
  +
</span>
 
<br>
 
<br>
  +
<span class="chaupaai">
 
<br>चौ०-जे गावहिं यह चरित सँभारे। तेइ एहि ताल चतुर रखवारे॥
 
<br>चौ०-जे गावहिं यह चरित सँभारे। तेइ एहि ताल चतुर रखवारे॥
<br>सदा सुनहिं सादर नर नारी। तेइ सुरबर मानस अधिकारी॥
+
<br>सदा सुनहिं सादर नर नारी। तेइ सुरबर मानस अधिकारी॥१॥
 
<br>अति खल जे बिषई बग कागा। एहिं सर निकट न जाहिं अभागा॥
 
<br>अति खल जे बिषई बग कागा। एहिं सर निकट न जाहिं अभागा॥
<br>संबुक भेक सेवार समाना। इहाँ न बिषय कथा रस नाना॥
+
<br>संबुक भेक सेवार समाना। इहाँ न बिषय कथा रस नाना॥२॥
 
<br>तेहि कारन आवत हियँ हारे। कामी काक बलाक बिचारे॥
 
<br>तेहि कारन आवत हियँ हारे। कामी काक बलाक बिचारे॥
<br>आवत एहिं सर अति कठिनाई। राम कृपा बिनु आइ न जाई॥
+
<br>आवत एहिं सर अति कठिनाई। राम कृपा बिनु आइ न जाई॥३॥
 
<br>कठिन कुसंग कुपंथ कराला। तिन्ह के बचन बाघ हरि ब्याला॥
 
<br>कठिन कुसंग कुपंथ कराला। तिन्ह के बचन बाघ हरि ब्याला॥
<br>गृह कारज नाना जंजाला। ते अति दुर्गम सैल बिसाला॥
+
<br>गृह कारज नाना जंजाला। ते अति दुर्गम सैल बिसाला॥४॥
<br>बन बहु बिषम मोह मद माना। नदीं कुतर्क भयंकर नाना॥
+
<br>बन बहु बिषम मोह मद माना। नदीं कुतर्क भयंकर नाना॥५॥
  +
</span>
  +
<span class="doha">
 
<br>दो०-जे श्रद्धा संबल रहित नहि संतन्ह कर साथ।
 
<br>दो०-जे श्रद्धा संबल रहित नहि संतन्ह कर साथ।
 
<br>तिन्ह कहुँ मानस अगम अति जिन्हहि न प्रिय रघुनाथ॥३८॥
 
<br>तिन्ह कहुँ मानस अगम अति जिन्हहि न प्रिय रघुनाथ॥३८॥
  +
</span>
 
<br>
 
<br>
  +
<span class="chaupaai">
 
<br>चौ०-जौं करि कष्ट जाइ पुनि कोई। जातहिं नींद जुड़ाई होई॥
 
<br>चौ०-जौं करि कष्ट जाइ पुनि कोई। जातहिं नींद जुड़ाई होई॥
<br>जड़ता जाड़ बिषम उर लागा। गएहुँ न मज्जन पाव अभागा॥
+
<br>जड़ता जाड़ बिषम उर लागा। गएहुँ न मज्जन पाव अभागा॥१॥
 
<br>करि न जाइ सर मज्जन पाना। फिरि आवइ समेत अभिमाना॥
 
<br>करि न जाइ सर मज्जन पाना। फिरि आवइ समेत अभिमाना॥
<br>जौं बहोरि कोउ पूछन आवा। सर निंदा करि ताहि बुझावा॥
+
<br>जौं बहोरि कोउ पूछन आवा। सर निंदा करि ताहि बुझावा॥२॥
 
<br>सकल बिघ्न ब्यापहि नहिं तेही। राम सुकृपाँ बिलोकहिं जेही॥
 
<br>सकल बिघ्न ब्यापहि नहिं तेही। राम सुकृपाँ बिलोकहिं जेही॥
<br>सोइ सादर सर मज्जनु करई। महा घोर त्रयताप न जरई॥
+
<br>सोइ सादर सर मज्जनु करई। महा घोर त्रयताप न जरई॥३॥
 
<br>ते नर यह सर तजहिं न काऊ। जिन्ह के राम चरन भल भाऊ॥
 
<br>ते नर यह सर तजहिं न काऊ। जिन्ह के राम चरन भल भाऊ॥
<br>जो नहाइ चह एहिं सर भाई। सो सतसंग करउ मन लाई॥
+
<br>जो नहाइ चह एहिं सर भाई। सो सतसंग करउ मन लाई॥४॥
 
<br>अस मानस मानस चख चाही। भइ कबि बुद्धि बिमल अवगाही॥
 
<br>अस मानस मानस चख चाही। भइ कबि बुद्धि बिमल अवगाही॥
<br>भयउ हृदयँ आनंद उछाहू। उमगेउ प्रेम प्रमोद प्रबाहू॥
+
<br>भयउ हृदयँ आनंद उछाहू। उमगेउ प्रेम प्रमोद प्रबाहू॥५॥
 
<br>चली सुभग कबिता सरिता सो। राम बिमल जस जल भरिता सो॥
 
<br>चली सुभग कबिता सरिता सो। राम बिमल जस जल भरिता सो॥
<br>सरजू नाम सुमंगल मूला। लोक बेद मत मंजुल कूला॥
+
<br>सरजू नाम सुमंगल मूला। लोक बेद मत मंजुल कूला॥६॥
<br>नदी पुनीत सुमानस नंदिनि। कलिमल तृन तरु मूल निकंदिनि॥
+
<br>नदी पुनीत सुमानस नंदिनि। कलिमल तृन तरु मूल निकंदिनि॥७॥
  +
</span>
  +
<span class="doha">
 
<br>दो०-श्रोता त्रिबिध समाज पुर ग्राम नगर दुहुँ कूल।
 
<br>दो०-श्रोता त्रिबिध समाज पुर ग्राम नगर दुहुँ कूल।
 
<br>संतसभा अनुपम अवध सकल सुमंगल मूल॥३९॥
 
<br>संतसभा अनुपम अवध सकल सुमंगल मूल॥३९॥
  +
</span>
 
<br>
 
<br>
  +
<span class="chaupaai">
 
<br>चौ०-रामभगति सुरसरितहि जाई। मिली सुकीरति सरजु सुहाई॥
 
<br>चौ०-रामभगति सुरसरितहि जाई। मिली सुकीरति सरजु सुहाई॥
<br>सानुज राम समर जसु पावन। मिलेउ महानदु सोन सुहावन॥
+
<br>सानुज राम समर जसु पावन। मिलेउ महानदु सोन सुहावन॥१॥
 
<br>जुग बिच भगति देवधुनि धारा। सोहति सहित सुबिरति बिचारा॥
 
<br>जुग बिच भगति देवधुनि धारा। सोहति सहित सुबिरति बिचारा॥
<br>त्रिबिध ताप त्रासक तिमुहानी। राम सरुप सिंधु समुहानी॥
+
<br>त्रिबिध ताप त्रासक तिमुहानी। राम सरुप सिंधु समुहानी॥२॥
 
<br>मानस मूल मिली सुरसरिही। सुनत सुजन मन पावन करिही॥
 
<br>मानस मूल मिली सुरसरिही। सुनत सुजन मन पावन करिही॥
<br>बिच बिच कथा बिचित्र बिभागा। जनु सरि तीर तीर बन बागा॥
+
<br>बिच बिच कथा बिचित्र बिभागा। जनु सरि तीर तीर बन बागा॥३॥
 
<br>उमा महेस बिबाह बराती। ते जलचर अगनित बहुभाँती॥
 
<br>उमा महेस बिबाह बराती। ते जलचर अगनित बहुभाँती॥
<br>रघुबर जनम अनंद बधाई। भवँर तरंग मनोहरताई॥
+
<br>रघुबर जनम अनंद बधाई। भवँर तरंग मनोहरताई॥४॥
  +
</span>
  +
<span class="doha">
 
<br>दो०-बालचरित चहु बंधु के बनज बिपुल बहुरंग।
 
<br>दो०-बालचरित चहु बंधु के बनज बिपुल बहुरंग।
 
<br>नृप रानी परिजन सुकृत मधुकर बारिबिहंग॥४०॥
 
<br>नृप रानी परिजन सुकृत मधुकर बारिबिहंग॥४०॥
  +
</span>
 
<br>
 
<br>
  +
<span class="chaupaai">
 
<br>चौ०-सीय स्वयंबर कथा सुहाई। सरित सुहावनि सो छबि छाई॥
 
<br>चौ०-सीय स्वयंबर कथा सुहाई। सरित सुहावनि सो छबि छाई॥
<br>नदी नाव पटु प्रस्न अनेका। केवट कुसल उतर सबिबेका॥
+
<br>नदी नाव पटु प्रस्न अनेका। केवट कुसल उतर सबिबेका॥१॥
 
<br>सुनि अनुकथन परस्पर होई। पथिक समाज सोह सरि सोई॥
 
<br>सुनि अनुकथन परस्पर होई। पथिक समाज सोह सरि सोई॥
<br>घोर धार भृगुनाथ रिसानी। घाट सुबद्ध राम बर बानी॥
+
<br>घोर धार भृगुनाथ रिसानी। घाट सुबद्ध राम बर बानी॥२॥
 
<br>सानुज राम बिबाह उछाहू। सो सुभ उमग सुखद सब काहू॥
 
<br>सानुज राम बिबाह उछाहू। सो सुभ उमग सुखद सब काहू॥
<br>कहत सुनत हरषहिं पुलकाहीं। ते सुकृती मन मुदित नहाहीं॥
+
<br>कहत सुनत हरषहिं पुलकाहीं। ते सुकृती मन मुदित नहाहीं॥३॥
 
<br>राम तिलक हित मंगल साजा। परब जोग जनु जुरे समाजा॥
 
<br>राम तिलक हित मंगल साजा। परब जोग जनु जुरे समाजा॥
<br>काई कुमति केकई केरी। परी जासु फल बिपति घनेरी॥
+
<br>काई कुमति केकई केरी। परी जासु फल बिपति घनेरी॥४॥
  +
</span>
  +
<span class="doha">
 
<br>दो०-समन अमित उतपात सब भरतचरित जपजाग।
 
<br>दो०-समन अमित उतपात सब भरतचरित जपजाग।
 
<br>कलि अघ खल अवगुन कथन ते जलमल बग काग॥४१॥
 
<br>कलि अघ खल अवगुन कथन ते जलमल बग काग॥४१॥
  +
</span>
 
<br>
 
<br>
  +
<span class="chaupaai">
 
<br>चौ०-कीरति सरित छहूँ रितु रूरी। समय सुहावनि पावनि भूरी॥
 
<br>चौ०-कीरति सरित छहूँ रितु रूरी। समय सुहावनि पावनि भूरी॥
<br>हिम हिमसैलसुता सिव ब्याहू। सिसिर सुखद प्रभु जनम उछाहू॥
+
<br>हिम हिमसैलसुता सिव ब्याहू। सिसिर सुखद प्रभु जनम उछाहू॥१॥
 
<br>बरनब राम बिबाह समाजू। सो मुद मंगलमय रितुराजू॥
 
<br>बरनब राम बिबाह समाजू। सो मुद मंगलमय रितुराजू॥
<br>ग्रीषम दुसह राम बनगवनू। पंथकथा खर आतप पवनू॥
+
<br>ग्रीषम दुसह राम बनगवनू। पंथकथा खर आतप पवनू॥२॥
 
<br>बरषा घोर निसाचर रारी। सुरकुल सालि सुमंगलकारी॥
 
<br>बरषा घोर निसाचर रारी। सुरकुल सालि सुमंगलकारी॥
<br>राम राज सुख बिनय बड़ाई। बिसद सुखद सोइ सरद सुहाई॥
+
<br>राम राज सुख बिनय बड़ाई। बिसद सुखद सोइ सरद सुहाई॥३॥
 
<br>सती सिरोमनि सिय गुनगाथा। सोइ गुन अमल अनूपम पाथा॥
 
<br>सती सिरोमनि सिय गुनगाथा। सोइ गुन अमल अनूपम पाथा॥
<br>भरत सुभाउ सुसीतलताई। सदा एकरस बरनि न जाई॥
+
<br>भरत सुभाउ सुसीतलताई। सदा एकरस बरनि न जाई॥४॥
  +
</span>
  +
<span class="doha">
 
<br>दो०- अवलोकनि बोलनि मिलनि प्रीति परसपर हास।
 
<br>दो०- अवलोकनि बोलनि मिलनि प्रीति परसपर हास।
 
<br>भायप भलि चहु बंधु की जल माधुरी सुबास॥४२॥
 
<br>भायप भलि चहु बंधु की जल माधुरी सुबास॥४२॥
  +
</span>
 
<br>
 
<br>
  +
<span class="chaupaai">
 
<br>चौ०-आरति बिनय दीनता मोरी। लघुता ललित सुबारि न थोरी॥
 
<br>चौ०-आरति बिनय दीनता मोरी। लघुता ललित सुबारि न थोरी॥
<br>अदभुत सलिल सुनत गुनकारी। आस पिआस मनोमल हारी॥
+
<br>अदभुत सलिल सुनत गुनकारी। आस पिआस मनोमल हारी॥१॥
 
<br>राम सुप्रेमहि पोषत पानी। हरत सकल कलि कलुष गलानी॥
 
<br>राम सुप्रेमहि पोषत पानी। हरत सकल कलि कलुष गलानी॥
<br>भव श्रम सोषक तोषक तोषा। समन दुरित दुख दारिद दोषा॥
+
<br>भव श्रम सोषक तोषक तोषा। समन दुरित दुख दारिद दोषा॥२॥
 
<br>काम कोह मद मोह नसावन। बिमल बिबेक बिराग बढ़ावन॥
 
<br>काम कोह मद मोह नसावन। बिमल बिबेक बिराग बढ़ावन॥
<br>सादर मज्जन पान किए तें। मिटहिं पाप परिताप हिए तें॥
+
<br>सादर मज्जन पान किए तें। मिटहिं पाप परिताप हिए तें॥३॥
 
<br>जिन्ह एहिं बारि न मानस धोए। ते कायर कलिकाल बिगोए॥
 
<br>जिन्ह एहिं बारि न मानस धोए। ते कायर कलिकाल बिगोए॥
<br>तृषित निरखि रबि कर भव बारी। फिरिहहि मृग जिमि जीव दुखारी॥
+
<br>तृषित निरखि रबि कर भव बारी। फिरिहहि मृग जिमि जीव दुखारी॥४॥
  +
</span>
  +
<span class="doha">
 
<br>दो०-मति अनुहारि सुबारि गुन गनि मन अन्हवाइ।
 
<br>दो०-मति अनुहारि सुबारि गुन गनि मन अन्हवाइ।
 
<br>सुमिरि भवानी संकरहि कह कबि कथा सुहाइ॥४३(क)॥
 
<br>सुमिरि भवानी संकरहि कह कबि कथा सुहाइ॥४३(क)॥
 
<br>अब रघुपति पद पंकरुह हियँ धरि पाइ प्रसाद ।
 
<br>अब रघुपति पद पंकरुह हियँ धरि पाइ प्रसाद ।
 
<br>कहउँ जुगल मुनिबर्ज कर मिलन सुभग संबाद॥४३(ख)॥
 
<br>कहउँ जुगल मुनिबर्ज कर मिलन सुभग संबाद॥४३(ख)॥
  +
</span>
 
<br>
 
<br>
  +
<span class="chaupaai">
 
<br>चौ०-भरद्वाज मुनि बसहिं प्रयागा। तिन्हहि राम पद अति अनुरागा॥
 
<br>चौ०-भरद्वाज मुनि बसहिं प्रयागा। तिन्हहि राम पद अति अनुरागा॥
<br>तापस सम दम दया निधाना। परमारथ पथ परम सुजाना॥
+
<br>तापस सम दम दया निधाना। परमारथ पथ परम सुजाना॥१॥
 
<br>माघ मकरगत रबि जब होई। तीरथपतिहिं आव सब कोई॥
 
<br>माघ मकरगत रबि जब होई। तीरथपतिहिं आव सब कोई॥
<br>देव दनुज किंनर नर श्रेनीं। सादर मज्जहिं सकल त्रिबेनीं॥
+
<br>देव दनुज किंनर नर श्रेनीं। सादर मज्जहिं सकल त्रिबेनीं॥२॥
 
<br>पूजहि माधव पद जलजाता। परसि अखय बटु हरषहिं गाता॥
 
<br>पूजहि माधव पद जलजाता। परसि अखय बटु हरषहिं गाता॥
<br>भरद्वाज आश्रम अति पावन। परम रम्य मुनिबर मन भावन॥
+
<br>भरद्वाज आश्रम अति पावन। परम रम्य मुनिबर मन भावन॥३॥
 
<br>तहाँ होइ मुनि रिषय समाजा। जाहिं जे मज्जन तीरथराजा॥
 
<br>तहाँ होइ मुनि रिषय समाजा। जाहिं जे मज्जन तीरथराजा॥
<br>मज्जहिं प्रात समेत उछाहा। कहहिं परसपर हरि गुन गाहा॥
+
<br>मज्जहिं प्रात समेत उछाहा। कहहिं परसपर हरि गुन गाहा॥४॥
  +
</span>
  +
<span class="doha">
 
<br>दो०-ब्रह्म निरूपम धरम बिधि बरनहिं तत्त्व बिभाग।
 
<br>दो०-ब्रह्म निरूपम धरम बिधि बरनहिं तत्त्व बिभाग।
 
<br>कहहिं भगति भगवंत कै संजुत ग्यान बिराग॥४४॥
 
<br>कहहिं भगति भगवंत कै संजुत ग्यान बिराग॥४४॥
  +
</span>
 
<br>
 
<br>
  +
<span class="chaupaai">
 
<br>चौ०-एहि प्रकार भरि माघ नहाहीं। पुनि सब निज निज आश्रम जाहीं॥
 
<br>चौ०-एहि प्रकार भरि माघ नहाहीं। पुनि सब निज निज आश्रम जाहीं॥
<br>प्रति संबत अति होइ अनंदा। मकर मज्जि गवनहिं मुनिबृंदा॥
+
<br>प्रति संबत अति होइ अनंदा। मकर मज्जि गवनहिं मुनिबृंदा॥१॥
 
<br>एक बार भरि मकर नहाए। सब मुनीस आश्रमन्ह सिधाए॥
 
<br>एक बार भरि मकर नहाए। सब मुनीस आश्रमन्ह सिधाए॥
<br>जागबलिक मुनि परम बिबेकी। भरव्दाज राखे पद टेकी॥
+
<br>जागबलिक मुनि परम बिबेकी। भरव्दाज राखे पद टेकी॥२॥
 
<br>सादर चरन सरोज पखारे। अति पुनीत आसन बैठारे॥
 
<br>सादर चरन सरोज पखारे। अति पुनीत आसन बैठारे॥
<br>करि पूजा मुनि सुजस बखानी। बोले अति पुनीत मृदु बानी॥
+
<br>करि पूजा मुनि सुजस बखानी। बोले अति पुनीत मृदु बानी॥३॥
 
<br>नाथ एक संसउ बड़ मोरें। करगत बेदतत्त्व सबु तोरें॥
 
<br>नाथ एक संसउ बड़ मोरें। करगत बेदतत्त्व सबु तोरें॥
<br>कहत सो मोहि लागत भय लाजा। जौ न कहउँ बड़ होइ अकाजा॥
+
<br>कहत सो मोहि लागत भय लाजा। जौ न कहउँ बड़ होइ अकाजा॥४॥
  +
</span>
  +
<span class="doha">
 
<br>दो०-संत कहहि असि नीति प्रभु श्रुति पुरान मुनि गाव।
 
<br>दो०-संत कहहि असि नीति प्रभु श्रुति पुरान मुनि गाव।
 
<br>होइ न बिमल बिबेक उर गुर सन किएँ दुराव॥४५॥
 
<br>होइ न बिमल बिबेक उर गुर सन किएँ दुराव॥४५॥
  +
</span>
 
<br>
 
<br>
  +
<span class="chaupaai">
 
<br>चौ०-अस बिचारि प्रगटउँ निज मोहू। हरहु नाथ करि जन पर छोहू॥
 
<br>चौ०-अस बिचारि प्रगटउँ निज मोहू। हरहु नाथ करि जन पर छोहू॥
<br>रास नाम कर अमित प्रभावा। संत पुरान उपनिषद गावा॥
+
<br>राम नाम कर अमित प्रभावा। संत पुरान उपनिषद गावा॥१॥
 
<br>संतत जपत संभु अबिनासी। सिव भगवान ग्यान गुन रासी॥
 
<br>संतत जपत संभु अबिनासी। सिव भगवान ग्यान गुन रासी॥
<br>आकर चारि जीव जग अहहीं। कासीं मरत परम पद लहहीं॥
+
<br>आकर चारि जीव जग अहहीं। कासीं मरत परम पद लहहीं॥२॥
 
<br>सोपि राम महिमा मुनिराया। सिव उपदेसु करत करि दाया॥
 
<br>सोपि राम महिमा मुनिराया। सिव उपदेसु करत करि दाया॥
<br>रामु कवन प्रभु पूछउँ तोही। कहिअ बुझाइ कृपानिधि मोही॥
+
<br>रामु कवन प्रभु पूछउँ तोही । कहिअ बुझाइ कृपानिधि मोही॥३॥
 
<br>एक राम अवधेस कुमारा। तिन्ह कर चरित बिदित संसारा॥
 
<br>एक राम अवधेस कुमारा। तिन्ह कर चरित बिदित संसारा॥
<br>नारि बिरहँ दुखु लहेउ अपारा। भयहु रोषु रन रावनु मारा॥
+
<br>नारि बिरहँ दुखु लहेउ अपारा। भयहु रोषु रन रावनु मारा॥४॥
  +
</span>
  +
<span class="doha">
 
<br>दो०-प्रभु सोइ राम कि अपर कोउ जाहि जपत त्रिपुरारि।
 
<br>दो०-प्रभु सोइ राम कि अपर कोउ जाहि जपत त्रिपुरारि।
 
<br>सत्यधाम सर्बग्य तुम्ह कहहु बिबेकु बिचारि॥४६॥
 
<br>सत्यधाम सर्बग्य तुम्ह कहहु बिबेकु बिचारि॥४६॥
  +
</span>
 
<br>
 
<br>
  +
<span class="chaupaai">
 
<br>चौ०-जैसे मिटै मोर भ्रम भारी। कहहु सो कथा नाथ बिस्तारी॥
 
<br>चौ०-जैसे मिटै मोर भ्रम भारी। कहहु सो कथा नाथ बिस्तारी॥
<br>जागबलिक बोले मुसुकाई। तुम्हहि बिदित रघुपति प्रभुताई॥
+
<br>जागबलिक बोले मुसुकाई। तुम्हहि बिदित रघुपति प्रभुताई॥१॥
<br>राममगत तुम्ह मन क्रम बानी। चतुराई तुम्हारी मैं जानी॥
+
<br>राममगत तुम्ह मन क्रम बानी। चतुराई तुम्हारि मैं जानी॥
<br>चाहहु सुनै राम गुन गूढ़ा। कीन्हिहु प्रस्न मनहुँ अति मूढ़ा॥
+
<br>चाहहु सुनै राम गुन गूढ़ा। कीन्हिहु प्रस्न मनहुँ अति मूढ़ा॥२॥
 
<br>तात सुनहु सादर मनु लाई। कहउँ राम कै कथा सुहाई॥
 
<br>तात सुनहु सादर मनु लाई। कहउँ राम कै कथा सुहाई॥
<br>महामोहु महिषेसु बिसाला। रामकथा कालिका कराला॥
+
<br>महामोहु महिषेसु बिसाला। रामकथा कालिका कराला॥३॥
 
<br>रामकथा ससि किरन समाना। संत चकोर करहिं जेहि पाना॥
 
<br>रामकथा ससि किरन समाना। संत चकोर करहिं जेहि पाना॥
<br>ऐसेइ संसय कीन्ह भवानी। महादेव तब कहा बखानी॥
+
<br>ऐसेइ संसय कीन्ह भवानी। महादेव तब कहा बखानी॥४॥
  +
</span>
  +
<span class="doha">
 
<br>दो०-कहउँ सो मति अनुहारि अब उमा संभु संबाद।
 
<br>दो०-कहउँ सो मति अनुहारि अब उमा संभु संबाद।
 
<br>भयउ समय जेहि हेतु जेहि सुनु मुनि मिटिहि बिषाद॥४७॥
 
<br>भयउ समय जेहि हेतु जेहि सुनु मुनि मिटिहि बिषाद॥४७॥
  +
</span>
 
<br>
 
<br>
  +
<span class="chaupaai">
 
<br>चौ०-एक बार त्रेता जुग माहीं। संभु गए कुंभज रिषि पाहीं॥
 
<br>चौ०-एक बार त्रेता जुग माहीं। संभु गए कुंभज रिषि पाहीं॥
<br>संग सती जगजननि भवानी। पूजे रिषि अखिलेस्वर जानी॥
+
<br>संग सती जगजननि भवानी। पूजे रिषि अखिलेस्वर जानी॥१॥
 
<br>रामकथा मुनिबर्ज बखानी। सुनी महेस परम सुखु मानी॥
 
<br>रामकथा मुनिबर्ज बखानी। सुनी महेस परम सुखु मानी॥
<br>रिषि पूछी हरिभगति सुहाई। कहा संभु अधिकारी पाई॥
+
<br>रिषि पूछी हरिभगति सुहाई। कही संभु अधिकारी पाई॥२॥
 
<br>कहत सुनत रघुपति गुन गाथा। कछु दिन तहाँ रहे गिरिनाथा॥
 
<br>कहत सुनत रघुपति गुन गाथा। कछु दिन तहाँ रहे गिरिनाथा॥
<br>मुनि सन बिदा मागि त्रिपुरारी। चले भवन सँग दच्छकुमारी॥
+
<br>मुनि सन बिदा मागि त्रिपुरारी। चले भवन सँग दच्छकुमारी॥३॥
 
<br>तेहि अवसर भंजन महिभारा। हरि रघुबंस लीन्ह अवतारा॥
 
<br>तेहि अवसर भंजन महिभारा। हरि रघुबंस लीन्ह अवतारा॥
<br>पिता बचन तजि राजु उदासी। दंडक बन बिचरत अबिनासी॥
+
<br>पिता बचन तजि राजु उदासी। दंडक बन बिचरत अबिनासी॥४॥
  +
</span>
  +
<span class="doha">
 
<br>दो०-ह्दयँ बिचारत जात हर केहि बिधि दरसनु होइ।
 
<br>दो०-ह्दयँ बिचारत जात हर केहि बिधि दरसनु होइ।
 
<br>गुप्त रुप अवतरेउ प्रभु गएँ जान सबु कोइ॥४८(क)॥
 
<br>गुप्त रुप अवतरेउ प्रभु गएँ जान सबु कोइ॥४८(क)॥
  +
</span>
 
<br>
 
<br>
  +
<span class="soratha">
 
<br>सो०-संकर उर अति छोभु सती न जानहिं मरमु सोइ॥
 
<br>सो०-संकर उर अति छोभु सती न जानहिं मरमु सोइ॥
 
<br>तुलसी दरसन लोभु मन डरु लोचन लालची॥४८(ख)॥
 
<br>तुलसी दरसन लोभु मन डरु लोचन लालची॥४८(ख)॥
  +
</span>
 
<br>
 
<br>
  +
<span class="chaupaai">
 
<br>चौ०-रावन मरन मनुज कर जाचा। प्रभु बिधि बचनु कीन्ह चह साचा॥
 
<br>चौ०-रावन मरन मनुज कर जाचा। प्रभु बिधि बचनु कीन्ह चह साचा॥
<br>जौं नहिं जाउँ रहइ पछितावा। करत बिचारु न बनत बनावा॥
+
<br>जौं नहिं जाउँ रहइ पछितावा। करत बिचारु न बनत बनावा॥१॥
 
<br>एहि बिधि भए सोचबस ईसा। तेहि समय जाइ दससीसा॥
 
<br>एहि बिधि भए सोचबस ईसा। तेहि समय जाइ दससीसा॥
<br>लीन्ह नीच मारीचहि संगा। भयउ तुरत सोइ कपट कुरंगा॥
+
<br>लीन्ह नीच मारीचहि संगा। भयउ तुरत सोइ कपट कुरंगा॥२॥
 
<br>करि छलु मूढ़ हरी बैदेही। प्रभु प्रभाउ तस बिदित न तेही॥
 
<br>करि छलु मूढ़ हरी बैदेही। प्रभु प्रभाउ तस बिदित न तेही॥
<br>मृग बधि बन्धु सहित हरि आए। आश्रमु देखि नयन जल छाए॥
+
<br>मृग बधि बन्धु सहित हरि आए। आश्रमु देखि नयन जल छाए॥३॥
 
<br>बिरह बिकल नर इव रघुराई। खोजत बिपिन फिरत दोउ भाई॥
 
<br>बिरह बिकल नर इव रघुराई। खोजत बिपिन फिरत दोउ भाई॥
<br>कबहूँ जोग बियोग न जाकें। देखा प्रगट बिरह दुख ताकें॥
+
<br>कबहूँ जोग बियोग न जाकें। देखा प्रगट बिरह दुख ताकें॥४॥
  +
</span>
  +
<span class="doha">
 
<br>दो०-अति विचित्र रघुपति चरित जानहिं परम सुजान।
 
<br>दो०-अति विचित्र रघुपति चरित जानहिं परम सुजान।
 
<br>जे मतिमंद बिमोह बस हृदयँ धरहिं कछु आन॥४९॥
 
<br>जे मतिमंद बिमोह बस हृदयँ धरहिं कछु आन॥४९॥
  +
</span>
 
<br>
 
<br>
  +
<span class="chaupaai">
 
<br>चौ०-संभु समय तेहि रामहि देखा। उपजा हियँ अति हरषु बिसेषा॥
 
<br>चौ०-संभु समय तेहि रामहि देखा। उपजा हियँ अति हरषु बिसेषा॥
<br>भरि लोचन छबिसिंधु निहारी। कुसमय जानि न कीन्हि चिन्हारी॥
+
<br>भरि लोचन छबिसिंधु निहारी। कुसमय जानि न कीन्हि चिन्हारी॥१॥
 
<br>जय सच्चिदानंद जग पावन। अस कहि चलेउ मनोज नसावन॥
 
<br>जय सच्चिदानंद जग पावन। अस कहि चलेउ मनोज नसावन॥
<br>चले जात सिव सती समेता। पुनि पुनि पुलकत कृपानिकेता॥
+
<br>चले जात सिव सती समेता। पुनि पुनि पुलकत कृपानिकेता॥२॥
 
<br>सतीं सो दसा संभु कै देखी। उर उपजा संदेहु बिसेषी॥
 
<br>सतीं सो दसा संभु कै देखी। उर उपजा संदेहु बिसेषी॥
<br>संकरु जगतबंद्य जगदीसा। सुर नर मुनि सब नावत सीसा॥
+
<br>संकरु जगतबंद्य जगदीसा। सुर नर मुनि सब नावत सीसा॥३॥
 
<br>तिन्ह नृपसुतहि कीन्ह परनामा। कहि सच्चिदानंद परधामा॥
 
<br>तिन्ह नृपसुतहि कीन्ह परनामा। कहि सच्चिदानंद परधामा॥
<br>भए मगन छबि तासु बिलोकी। अजहुँ प्रीति उर रहति न रोकी॥
+
<br>भए मगन छबि तासु बिलोकी। अजहुँ प्रीति उर रहति न रोकी॥४॥
  +
</span>
  +
<span class="doha">
 
<br>दो०-ब्रह्म जो व्यापक बिरज अज अकल अनीह अभेद।
 
<br>दो०-ब्रह्म जो व्यापक बिरज अज अकल अनीह अभेद।
 
<br>सो कि देह धरि होइ नर जाहि न जानत बेद॥५०॥
 
<br>सो कि देह धरि होइ नर जाहि न जानत बेद॥५०॥
  +
</span>
<br>–*–*–
 
  +
<br><br><br>
<br>चौ०-बिष्नु जो सुर हित नरतनु धारी। सोउ सर्बग्य जथा त्रिपुरारी॥
 
<br>खोजइ सो कि अग्य इव नारी। ग्यानधाम श्रीपति असुरारी॥
 
<br>संभुगिरा पुनि मृषा न होई। सिव सर्बग्य जान सबु कोई॥
 
<br>अस संसय मन भयउ अपारा। होई न हृदयँ प्रबोध प्रचारा॥
 
<br>जद्यपि प्रगट न कहेउ भवानी। हर अंतरजामी सब जानी॥
 
<br>सुनहि सती तव नारि सुभाऊ। संसय अस न धरिअ उर काऊ॥
 
<br>जासु कथा कुभंज रिषि गाई। भगति जासु मैं मुनिहि सुनाई॥
 
<br>सोउ मम इष्टदेव रघुबीरा। सेवत जाहि सदा मुनि धीरा॥
 
<br>छं०-मुनि धीर जोगी सिद्ध संतत बिमल मन जेहि ध्यावहीं।
 
<br>कहि नेति निगम पुरान आगम जासु कीरति गावहीं॥
 
<br>सोइ रामु ब्यापक ब्रह्म भुवन निकाय पति माया धनी।
 
<br>अवतरेउ अपने भगत हित निजतंत्र नित रघुकुलमनि॥
 
<br>सो०-लाग न उर उपदेसु जदपि कहेउ सिवँ बार बहु।
 
<br>बोले बिहसि महेसु हरिमाया बलु जानि जियँ॥५१॥
 
<br>
 
<br>चौ०-जौं तुम्हरें मन अति संदेहू। तौ किन जाइ परीछा लेहू॥
 
<br>तब लगि बैठ अहउँ बटछाहिं। जब लगि तुम्ह ऐहहु मोहि पाहीं॥
 
<br>जैसें जाइ मोह भ्रम भारी। करेहु सो जतनु बिबेक बिचारी॥
 
<br>चलीं सती सिव आयसु पाई। करहिं बिचारु करौं का भाई॥
 
<br>इहाँ संभु अस मन अनुमाना। दच्छसुता कहुँ नहिं कल्याना॥
 
<br>मोरेहु कहें न संसय जाहीं। बिधि बिपरीत भलाई नाहीं॥
 
<br>होइहि सोइ जो राम रचि राखा। को करि तर्क बढ़ावै साखा॥
 
<br>अस कहि लगे जपन हरिनामा। गई सती जहँ प्रभु सुखधामा॥
 
<br>दो०-पुनि पुनि हृदयँ विचारु करि धरि सीता कर रुप।
 
<br>आगें होइ चलि पंथ तेहि जेहिं आवत नरभूप॥५२॥
 
<br>
 
<br>चौ०-लछिमन दीख उमाकृत बेषा। चकित भए भ्रम हृदयँ बिसेषा॥
 
<br>कहि न सकत कछु अति गंभीरा। प्रभु प्रभाउ जानत मतिधीरा॥
 
<br>सती कपटु जानेउ सुरस्वामी। सबदरसी सब अंतरजामी॥
 
<br>सुमिरत जाहि मिटइ अग्याना। सोइ सरबग्य रामु भगवाना॥
 
<br>सती कीन्ह चह तहँहुँ दुराऊ। देखहु नारि सुभाव प्रभाऊ॥
 
<br>निज माया बलु हृदयँ बखानी। बोले बिहसि रामु मृदु बानी॥
 
<br>जोरि पानि प्रभु कीन्ह प्रनामू। पिता समेत लीन्ह निज नामू॥
 
<br>कहेउ बहोरि कहाँ बृषकेतू। बिपिन अकेलि फिरहु केहि हेतू॥
 
<br>दो०-राम बचन मृदु गूढ़ सुनि उपजा अति संकोचु।
 
<br>सती सभीत महेस पहिं चलीं हृदयँ बड़ सोचु॥५३॥
 
<br>
 
<br>चौ०-मैं संकर कर कहा न माना। निज अग्यानु राम पर आना॥
 
<br>जाइ उतरु अब देहउँ काहा। उर उपजा अति दारुन दाहा॥
 
<br>जाना राम सतीं दुखु पावा। निज प्रभाउ कछु प्रगटि जनावा॥
 
<br>सतीं दीख कौतुकु मग जाता। आगें रामु सहित श्री भ्राता॥
 
<br>फिरि चितवा पाछें प्रभु देखा। सहित बंधु सिय सुंदर वेषा॥
 
<br>जहँ चितवहिं तहँ प्रभु आसीना। सेवहिं सिद्ध मुनीस प्रबीना॥
 
<br>देखे सिव बिधि बिष्नु अनेका। अमित प्रभाउ एक तें एका॥
 
<br>बंदत चरन करत प्रभु सेवा। बिबिध बेष देखे सब देवा॥
 
<br>दो०-सती बिधात्री इंदिरा देखीं अमित अनूप।
 
<br>जेहिं जेहिं बेष अजादि सुर तेहि तेहि तन अनुरूप॥५४॥
 
<br>
 
<br>चौ०-देखे जहँ तहँ रघुपति जेते। सक्तिन्ह सहित सकल सुर तेते॥
 
<br>जीव चराचर जो संसारा। देखे सकल अनेक प्रकारा॥
 
<br>पूजहिं प्रभुहि देव बहु बेषा। राम रूप दूसर नहिं देखा॥
 
<br>अवलोके रघुपति बहुतेरे। सीता सहित न बेष घनेरे॥
 
<br>सोइ रघुबर सोइ लछिमनु सीता। देखि सती अति भई सभीता॥
 
<br>हृदय कंप तन सुधि कछु नाहीं। नयन मूदि बैठीं मग माहीं॥
 
<br>बहुरि बिलोकेउ नयन उघारी। कछु न दीख तहँ दच्छकुमारी॥
 
<br>पुनि पुनि नाइ राम पद सीसा। चलीं तहाँ जहँ रहे गिरीसा॥
 
<br>दो०-गई समीप महेस तब हँसि पूछी कुसलात।
 
<br>लीन्हि परीछा कवन बिधि कहहु सत्य सब बात॥५५॥
 
<br>मासपारायण, दूसरा विश्राम
 
<br>
 
<br>चौ०-सतीं समुझि रघुबीर प्रभाऊ। भय बस सिव सन कीन्ह दुराऊ॥
 
<br>कछु न परीछा लीन्हि गोसाई। कीन्ह प्रनामु तुम्हारिहि नाई॥
 
<br>जो तुम्ह कहा सो मृषा न होई। मोरें मन प्रतीति अति सोई॥
 
<br>तब संकर देखेउ धरि ध्याना। सतीं जो कीन्ह चरित सब जाना॥
 
<br>बहुरि राममायहि सिरु नावा। प्रेरि सतिहि जेहिं झूँठ कहावा॥
 
<br>हरि इच्छा भावी बलवाना। हृदयँ बिचारत संभु सुजाना॥
 
<br>सतीं कीन्ह सीता कर बेषा। सिव उर भयउ बिषाद बिसेषा॥
 
<br>जौं अब करउँ सती सन प्रीती। मिटइ भगति पथु होइ अनीती॥
 
<br>दो0-परम पुनीत न जाइ तजि किएँ प्रेम बड़ पापु।
 
<br>प्रगटि न कहत महेसु कछु हृदयँ अधिक संतापु॥56॥
 
<br>–*–*–
 
<br>तब संकर प्रभु पद सिरु नावा। सुमिरत रामु हृदयँ अस आवा॥
 
<br>एहिं तन सतिहि भेट मोहि नाहीं। सिव संकल्पु कीन्ह मन माहीं॥
 
<br>अस बिचारि संकरु मतिधीरा। चले भवन सुमिरत रघुबीरा॥
 
<br>चलत गगन भै गिरा सुहाई। जय महेस भलि भगति दृढ़ाई॥
 
<br>अस पन तुम्ह बिनु करइ को आना। रामभगत समरथ भगवाना॥
 
<br>सुनि नभगिरा सती उर सोचा। पूछा सिवहि समेत सकोचा॥
 
<br>कीन्ह कवन पन कहहु कृपाला। सत्यधाम प्रभु दीनदयाला॥
 
<br>जदपि सतीं पूछा बहु भाँती। तदपि न कहेउ त्रिपुर आराती॥
 
<br>दो0-सतीं हृदय अनुमान किय सबु जानेउ सर्बग्य।
 
<br>कीन्ह कपटु मैं संभु सन नारि सहज जड़ अग्य॥57क॥
 
<br>–*–*–
 
<br>हृदयँ सोचु समुझत निज करनी। चिंता अमित जाइ नहि बरनी॥
 
<br>कृपासिंधु सिव परम अगाधा। प्रगट न कहेउ मोर अपराधा॥
 
<br>संकर रुख अवलोकि भवानी। प्रभु मोहि तजेउ हृदयँ अकुलानी॥
 
<br>निज अघ समुझि न कछु कहि जाई। तपइ अवाँ इव उर अधिकाई॥
 
<br>सतिहि ससोच जानि बृषकेतू। कहीं कथा सुंदर सुख हेतू॥
 
<br>बरनत पंथ बिबिध इतिहासा। बिस्वनाथ पहुँचे कैलासा॥
 
<br>तहँ पुनि संभु समुझि पन आपन। बैठे बट तर करि कमलासन॥
 
<br>संकर सहज सरुप सम्हारा। लागि समाधि अखंड अपारा॥
 
<br>दो0-सती बसहि कैलास तब अधिक सोचु मन माहिं।
 
<br>मरमु न कोऊ जान कछु जुग सम दिवस सिराहिं॥58॥
 
<br>–*–*–
 
<br>नित नव सोचु सतीं उर भारा। कब जैहउँ दुख सागर पारा॥
 
<br>मैं जो कीन्ह रघुपति अपमाना। पुनिपति बचनु मृषा करि जाना॥
 
<br>सो फलु मोहि बिधाताँ दीन्हा। जो कछु उचित रहा सोइ कीन्हा॥
 
<br>अब बिधि अस बूझिअ नहि तोही। संकर बिमुख जिआवसि मोही॥
 
<br>कहि न जाई कछु हृदय गलानी। मन महुँ रामाहि सुमिर सयानी॥
 
<br>जौ प्रभु दीनदयालु कहावा। आरती हरन बेद जसु गावा॥
 
<br>तौ मैं बिनय करउँ कर जोरी। छूटउ बेगि देह यह मोरी॥
 
<br>जौं मोरे सिव चरन सनेहू। मन क्रम बचन सत्य ब्रतु एहू॥
 
<br>दो0- तौ सबदरसी सुनिअ प्रभु करउ सो बेगि उपाइ।
 
<br>होइ मरनु जेही बिनहिं श्रम दुसह बिपत्ति बिहाइ॥59॥
 
<br>सो0-जलु पय सरिस बिकाइ देखहु प्रीति कि रीति भलि।
 
<br>बिलग होइ रसु जाइ कपट खटाई परत पुनि॥57ख॥
 
<br>–*–*–
 
<br>एहि बिधि दुखित प्रजेसकुमारी। अकथनीय दारुन दुखु भारी॥
 
<br>बीतें संबत सहस सतासी। तजी समाधि संभु अबिनासी॥
 
<br>राम नाम सिव सुमिरन लागे। जानेउ सतीं जगतपति जागे॥
 
<br>जाइ संभु पद बंदनु कीन्ही। सनमुख संकर आसनु दीन्हा॥
 
<br>लगे कहन हरिकथा रसाला। दच्छ प्रजेस भए तेहि काला॥
 
<br>देखा बिधि बिचारि सब लायक। दच्छहि कीन्ह प्रजापति नायक॥
 
<br>बड़ अधिकार दच्छ जब पावा। अति अभिमानु हृदयँ तब आवा॥
 
<br>नहिं कोउ अस जनमा जग माहीं। प्रभुता पाइ जाहि मद नाहीं॥
 
<br>दो0- दच्छ लिए मुनि बोलि सब करन लगे बड़ जाग।
 
<br>नेवते सादर सकल सुर जे पावत मख भाग॥60॥
 
<br>–*–*–
 
<br>
 
<br>किंनर नाग सिद्ध गंधर्बा। बधुन्ह समेत चले सुर सर्बा॥
 
<br>बिष्नु बिरंचि महेसु बिहाई। चले सकल सुर जान बनाई॥
 
<br>सतीं बिलोके ब्योम बिमाना। जात चले सुंदर बिधि नाना॥
 
<br>सुर सुंदरी करहिं कल गाना। सुनत श्रवन छूटहिं मुनि ध्याना॥
 
<br>पूछेउ तब सिवँ कहेउ बखानी। पिता जग्य सुनि कछु हरषानी॥
 
<br>जौं महेसु मोहि आयसु देहीं। कुछ दिन जाइ रहौं मिस एहीं॥
 
<br>पति परित्याग हृदय दुखु भारी। कहइ न निज अपराध बिचारी॥
 
<br>बोली सती मनोहर बानी। भय संकोच प्रेम रस सानी॥
 
<br>दो0-पिता भवन उत्सव परम जौं प्रभु आयसु होइ।
 
<br>तौ मै जाउँ कृपायतन सादर देखन सोइ॥61॥
 
<br>–*–*–
 
<br>कहेहु नीक मोरेहुँ मन भावा। यह अनुचित नहिं नेवत पठावा॥
 
<br>दच्छ सकल निज सुता बोलाई। हमरें बयर तुम्हउ बिसराई॥
 
<br>ब्रह्मसभाँ हम सन दुखु माना। तेहि तें अजहुँ करहिं अपमाना॥
 
<br>जौं बिनु बोलें जाहु भवानी। रहइ न सीलु सनेहु न कानी॥
 
<br>जदपि मित्र प्रभु पितु गुर गेहा। जाइअ बिनु बोलेहुँ न सँदेहा॥
 
<br>तदपि बिरोध मान जहँ कोई। तहाँ गएँ कल्यानु न होई॥
 
<br>भाँति अनेक संभु समुझावा। भावी बस न ग्यानु उर आवा॥
 
<br>कह प्रभु जाहु जो बिनहिं बोलाएँ। नहिं भलि बात हमारे भाएँ॥
 
<br>दो0-कहि देखा हर जतन बहु रहइ न दच्छकुमारि।
 
<br>दिए मुख्य गन संग तब बिदा कीन्ह त्रिपुरारि॥62॥
 
<br>–*–*–
 
<br>पिता भवन जब गई भवानी। दच्छ त्रास काहुँ न सनमानी॥
 
<br>सादर भलेहिं मिली एक माता। भगिनीं मिलीं बहुत मुसुकाता॥
 
<br>दच्छ न कछु पूछी कुसलाता। सतिहि बिलोकि जरे सब गाता॥
 
<br>सतीं जाइ देखेउ तब जागा। कतहुँ न दीख संभु कर भागा॥
 
<br>तब चित चढ़ेउ जो संकर कहेऊ। प्रभु अपमानु समुझि उर दहेऊ॥
 
<br>पाछिल दुखु न हृदयँ अस ब्यापा। जस यह भयउ महा परितापा॥
 
<br>जद्यपि जग दारुन दुख नाना। सब तें कठिन जाति अवमाना॥
 
<br>समुझि सो सतिहि भयउ अति क्रोधा। बहु बिधि जननीं कीन्ह प्रबोधा॥
 
<br>दो0-सिव अपमानु न जाइ सहि हृदयँ न होइ प्रबोध।
 
<br>सकल सभहि हठि हटकि तब बोलीं बचन सक्रोध॥63॥
 
<br>–*–*–
 
<br>सुनहु सभासद सकल मुनिंदा। कही सुनी जिन्ह संकर निंदा॥
 
<br>सो फलु तुरत लहब सब काहूँ। भली भाँति पछिताब पिताहूँ॥
 
<br>संत संभु श्रीपति अपबादा। सुनिअ जहाँ तहँ असि मरजादा॥
 
<br>काटिअ तासु जीभ जो बसाई। श्रवन मूदि न त चलिअ पराई॥
 
<br>जगदातमा महेसु पुरारी। जगत जनक सब के हितकारी॥
 
<br>पिता मंदमति निंदत तेही। दच्छ सुक्र संभव यह देही॥
 
<br>तजिहउँ तुरत देह तेहि हेतू। उर धरि चंद्रमौलि बृषकेतू॥
 
<br>अस कहि जोग अगिनि तनु जारा। भयउ सकल मख हाहाकारा॥
 
<br>दो0-सती मरनु सुनि संभु गन लगे करन मख खीस।
 
<br>जग्य बिधंस बिलोकि भृगु रच्छा कीन्हि मुनीस॥64॥
 
<br>–*–*–
 
<br>समाचार सब संकर पाए। बीरभद्रु करि कोप पठाए॥
 
<br>जग्य बिधंस जाइ तिन्ह कीन्हा। सकल सुरन्ह बिधिवत फलु दीन्हा॥
 
<br>भे जगबिदित दच्छ गति सोई। जसि कछु संभु बिमुख कै होई॥
 
<br>यह इतिहास सकल जग जानी। ताते मैं संछेप बखानी॥
 
<br>सतीं मरत हरि सन बरु मागा। जनम जनम सिव पद अनुरागा॥
 
<br>तेहि कारन हिमगिरि गृह जाई। जनमीं पारबती तनु पाई॥
 
<br>जब तें उमा सैल गृह जाईं। सकल सिद्धि संपति तहँ छाई॥
 
<br>जहँ तहँ मुनिन्ह सुआश्रम कीन्हे। उचित बास हिम भूधर दीन्हे॥
 
<br>दो0-सदा सुमन फल सहित सब द्रुम नव नाना जाति।
 
<br>
 
<br>प्रगटीं सुंदर सैल पर मनि आकर बहु भाँति॥65॥
 
<br>–*–*–
 
<br>सरिता सब पुनित जलु बहहीं। खग मृग मधुप सुखी सब रहहीं॥
 
<br>सहज बयरु सब जीवन्ह त्यागा। गिरि पर सकल करहिं अनुरागा॥
 
<br>सोह सैल गिरिजा गृह आएँ। जिमि जनु रामभगति के पाएँ॥
 
<br>नित नूतन मंगल गृह तासू। ब्रह्मादिक गावहिं जसु जासू॥
 
<br>नारद समाचार सब पाए। कौतुकहीं गिरि गेह सिधाए॥
 
<br>सैलराज बड़ आदर कीन्हा। पद पखारि बर आसनु दीन्हा॥
 
<br>नारि सहित मुनि पद सिरु नावा। चरन सलिल सबु भवनु सिंचावा॥
 
<br>निज सौभाग्य बहुत गिरि बरना। सुता बोलि मेली मुनि चरना॥
 
<br>दो0-त्रिकालग्य सर्बग्य तुम्ह गति सर्बत्र तुम्हारि॥
 
<br>कहहु सुता के दोष गुन मुनिबर हृदयँ बिचारि॥66॥
 
<br>–*–*–
 
<br>कह मुनि बिहसि गूढ़ मृदु बानी। सुता तुम्हारि सकल गुन खानी॥
 
<br>सुंदर सहज सुसील सयानी। नाम उमा अंबिका भवानी॥
 
<br>सब लच्छन संपन्न कुमारी। होइहि संतत पियहि पिआरी॥
 
<br>सदा अचल एहि कर अहिवाता। एहि तें जसु पैहहिं पितु माता॥
 
<br>होइहि पूज्य सकल जग माहीं। एहि सेवत कछु दुर्लभ नाहीं॥
 
<br>एहि कर नामु सुमिरि संसारा। त्रिय चढ़हहिँ पतिब्रत असिधारा॥
 
<br>सैल सुलच्छन सुता तुम्हारी। सुनहु जे अब अवगुन दुइ चारी॥
 
<br>अगुन अमान मातु पितु हीना। उदासीन सब संसय छीना॥
 
<br>दो0-जोगी जटिल अकाम मन नगन अमंगल बेष॥
 
<br>अस स्वामी एहि कहँ मिलिहि परी हस्त असि रेख॥67॥
 
<br>–*–*–
 
<br>सुनि मुनि गिरा सत्य जियँ जानी। दुख दंपतिहि उमा हरषानी॥
 
<br>नारदहुँ यह भेदु न जाना। दसा एक समुझब बिलगाना॥
 
<br>सकल सखीं गिरिजा गिरि मैना। पुलक सरीर भरे जल नैना॥
 
<br>होइ न मृषा देवरिषि भाषा। उमा सो बचनु हृदयँ धरि राखा॥
 
<br>उपजेउ सिव पद कमल सनेहू। मिलन कठिन मन भा संदेहू॥
 
<br>जानि कुअवसरु प्रीति दुराई। सखी उछँग बैठी पुनि जाई॥
 
<br>झूठि न होइ देवरिषि बानी। सोचहि दंपति सखीं सयानी॥
 
<br>उर धरि धीर कहइ गिरिराऊ। कहहु नाथ का करिअ उपाऊ॥
 
<br>दो0-कह मुनीस हिमवंत सुनु जो बिधि लिखा लिलार।
 
<br>देव दनुज नर नाग मुनि कोउ न मेटनिहार॥68॥
 
<br>–*–*–
 
<br>तदपि एक मैं कहउँ उपाई। होइ करै जौं दैउ सहाई॥
 
<br>जस बरु मैं बरनेउँ तुम्ह पाहीं। मिलहि उमहि तस संसय नाहीं॥
 
<br>जे जे बर के दोष बखाने। ते सब सिव पहि मैं अनुमाने॥
 
<br>जौं बिबाहु संकर सन होई। दोषउ गुन सम कह सबु कोई॥
 
<br>जौं अहि सेज सयन हरि करहीं। बुध कछु तिन्ह कर दोषु न धरहीं॥
 
<br>भानु कृसानु सर्ब रस खाहीं। तिन्ह कहँ मंद कहत कोउ नाहीं॥
 
<br>सुभ अरु असुभ सलिल सब बहई। सुरसरि कोउ अपुनीत न कहई॥
 
<br>समरथ कहुँ नहिं दोषु गोसाई। रबि पावक सुरसरि की नाई॥
 
<br>दो0-जौं अस हिसिषा करहिं नर जड़ि बिबेक अभिमान।
 
<br>परहिं कलप भरि नरक महुँ जीव कि ईस समान॥69॥
 
<br>–*–*–
 
<br>सुरसरि जल कृत बारुनि जाना। कबहुँ न संत करहिं तेहि पाना॥
 
<br>सुरसरि मिलें सो पावन जैसें। ईस अनीसहि अंतरु तैसें॥
 
<br>संभु सहज समरथ भगवाना। एहि बिबाहँ सब बिधि कल्याना॥
 
<br>दुराराध्य पै अहहिं महेसू। आसुतोष पुनि किएँ कलेसू॥
 
<br>जौं तपु करै कुमारि तुम्हारी। भाविउ मेटि सकहिं त्रिपुरारी॥
 
<br>जद्यपि बर अनेक जग माहीं। एहि कहँ सिव तजि दूसर नाहीं॥
 
<br>बर दायक प्रनतारति भंजन। कृपासिंधु सेवक मन रंजन॥
 
<br>इच्छित फल बिनु सिव अवराधे। लहिअ न कोटि जोग जप साधें॥
 
<br>दो0-अस कहि नारद सुमिरि हरि गिरिजहि दीन्हि असीस।
 
<br>होइहि यह कल्यान अब संसय तजहु गिरीस॥70॥
 
<br>–*–*–
 
<br>कहि अस ब्रह्मभवन मुनि गयऊ। आगिल चरित सुनहु जस भयऊ॥
 
<br>पतिहि एकांत पाइ कह मैना। नाथ न मैं समुझे मुनि बैना॥
 
<br>जौं घरु बरु कुलु होइ अनूपा। करिअ बिबाहु सुता अनुरुपा॥
 
<br>न त कन्या बरु रहउ कुआरी। कंत उमा मम प्रानपिआरी॥
 
<br>जौं न मिलहि बरु गिरिजहि जोगू। गिरि जड़ सहज कहिहि सबु लोगू॥
 
<br>सोइ बिचारि पति करेहु बिबाहू। जेहिं न बहोरि होइ उर दाहू॥
 
<br>अस कहि परि चरन धरि सीसा। बोले सहित सनेह गिरीसा॥
 
<br>बरु पावक प्रगटै ससि माहीं। नारद बचनु अन्यथा नाहीं॥
 
<br>दो0-प्रिया सोचु परिहरहु सबु सुमिरहु श्रीभगवान।
 
<br>पारबतिहि निरमयउ जेहिं सोइ करिहि कल्यान॥71॥
 
<br>–*–*–
 
<br>अब जौ तुम्हहि सुता पर नेहू। तौ अस जाइ सिखावन देहू॥
 
<br>करै सो तपु जेहिं मिलहिं महेसू। आन उपायँ न मिटहि कलेसू॥
 
<br>नारद बचन सगर्भ सहेतू। सुंदर सब गुन निधि बृषकेतू॥
 
<br>अस बिचारि तुम्ह तजहु असंका। सबहि भाँति संकरु अकलंका॥
 
<br>सुनि पति बचन हरषि मन माहीं। गई तुरत उठि गिरिजा पाहीं॥
 
<br>उमहि बिलोकि नयन भरे बारी। सहित सनेह गोद बैठारी॥
 
<br>बारहिं बार लेति उर लाई। गदगद कंठ न कछु कहि जाई॥
 
<br>जगत मातु सर्बग्य भवानी। मातु सुखद बोलीं मृदु बानी॥
 
<br>दो0-सुनहि मातु मैं दीख अस सपन सुनावउँ तोहि।
 
<br>सुंदर गौर सुबिप्रबर अस उपदेसेउ मोहि॥72॥
 
<br>–*–*–
 
<br>करहि जाइ तपु सैलकुमारी। नारद कहा सो सत्य बिचारी॥
 
<br>मातु पितहि पुनि यह मत भावा। तपु सुखप्रद दुख दोष नसावा॥
 
<br>तपबल रचइ प्रपंच बिधाता। तपबल बिष्नु सकल जग त्राता॥
 
<br>तपबल संभु करहिं संघारा। तपबल सेषु धरइ महिभारा॥
 
<br>तप अधार सब सृष्टि भवानी। करहि जाइ तपु अस जियँ जानी॥
 
<br>सुनत बचन बिसमित महतारी। सपन सुनायउ गिरिहि हँकारी॥
 
<br>मातु पितुहि बहुबिधि समुझाई। चलीं उमा तप हित हरषाई॥
 
<br>प्रिय परिवार पिता अरु माता। भए बिकल मुख आव न बाता॥
 
<br>दो0-बेदसिरा मुनि आइ तब सबहि कहा समुझाइ॥
 
<br>पारबती महिमा सुनत रहे प्रबोधहि पाइ॥73॥
 
<br>–*–*–
 
<br>उर धरि उमा प्रानपति चरना। जाइ बिपिन लागीं तपु करना॥
 
<br>अति सुकुमार न तनु तप जोगू। पति पद सुमिरि तजेउ सबु भोगू॥
 
<br>नित नव चरन उपज अनुरागा। बिसरी देह तपहिं मनु लागा॥
 
<br>संबत सहस मूल फल खाए। सागु खाइ सत बरष गवाँए॥
 
<br>कछु दिन भोजनु बारि बतासा। किए कठिन कछु दिन उपबासा॥
 
<br>बेल पाती महि परइ सुखाई। तीनि सहस संबत सोई खाई॥
 
<br>पुनि परिहरे सुखानेउ परना। उमहि नाम तब भयउ अपरना॥
 
<br>देखि उमहि तप खीन सरीरा। ब्रह्मगिरा भै गगन गभीरा॥
 
<br>दो0-भयउ मनोरथ सुफल तव सुनु गिरिजाकुमारि।
 
<br>परिहरु दुसह कलेस सब अब मिलिहहिं त्रिपुरारि॥74॥
 
<br>–*–*–
 
<br>अस तपु काहुँ न कीन्ह भवानी। भउ अनेक धीर मुनि ग्यानी॥
 
<br>अब उर धरहु ब्रह्म बर बानी। सत्य सदा संतत सुचि जानी॥
 
<br>आवै पिता बोलावन जबहीं। हठ परिहरि घर जाएहु तबहीं॥
 
<br>मिलहिं तुम्हहि जब सप्त रिषीसा। जानेहु तब प्रमान बागीसा॥
 
<br>सुनत गिरा बिधि गगन बखानी। पुलक गात गिरिजा हरषानी॥
 
<br>उमा चरित सुंदर मैं गावा। सुनहु संभु कर चरित सुहावा॥
 
<br>जब तें सती जाइ तनु त्यागा। तब सें सिव मन भयउ बिरागा॥
 
<br>जपहिं सदा रघुनायक नामा। जहँ तहँ सुनहिं राम गुन ग्रामा॥
 
<br>दो0-चिदानन्द सुखधाम सिव बिगत मोह मद काम।
 
<br>बिचरहिं महि धरि हृदयँ हरि सकल लोक अभिराम॥75॥
 
<br>–*–*–
 
<br>कतहुँ मुनिन्ह उपदेसहिं ग्याना। कतहुँ राम गुन करहिं बखाना॥
 
<br>जदपि अकाम तदपि भगवाना। भगत बिरह दुख दुखित सुजाना॥
 
<br>एहि बिधि गयउ कालु बहु बीती। नित नै होइ राम पद प्रीती॥
 
<br>नैमु प्रेमु संकर कर देखा। अबिचल हृदयँ भगति कै रेखा॥
 
<br>प्रगटै रामु कृतग्य कृपाला। रूप सील निधि तेज बिसाला॥
 
<br>बहु प्रकार संकरहि सराहा। तुम्ह बिनु अस ब्रतु को निरबाहा॥
 
<br>बहुबिधि राम सिवहि समुझावा। पारबती कर जन्मु सुनावा॥
 
<br>अति पुनीत गिरिजा कै करनी। बिस्तर सहित कृपानिधि बरनी॥
 
<br>दो0-अब बिनती मम सुनेहु सिव जौं मो पर निज नेहु।
 
<br>जाइ बिबाहहु सैलजहि यह मोहि मागें देहु॥76॥
 
<br>–*–*–
 
<br>
 
<br>कह सिव जदपि उचित अस नाहीं। नाथ बचन पुनि मेटि न जाहीं॥
 
<br>सिर धरि आयसु करिअ तुम्हारा। परम धरमु यह नाथ हमारा॥
 
<br>मातु पिता गुर प्रभु कै बानी। बिनहिं बिचार करिअ सुभ जानी॥
 
<br>तुम्ह सब भाँति परम हितकारी। अग्या सिर पर नाथ तुम्हारी॥
 
<br>प्रभु तोषेउ सुनि संकर बचना। भक्ति बिबेक धर्म जुत रचना॥
 
<br>कह प्रभु हर तुम्हार पन रहेऊ। अब उर राखेहु जो हम कहेऊ॥
 
<br>अंतरधान भए अस भाषी। संकर सोइ मूरति उर राखी॥
 
<br>तबहिं सप्तरिषि सिव पहिं आए। बोले प्रभु अति बचन सुहाए॥
 
<br>दो0-पारबती पहिं जाइ तुम्ह प्रेम परिच्छा लेहु।
 
<br>गिरिहि प्रेरि पठएहु भवन दूरि करेहु संदेहु॥77॥
 
<br>–*–*–
 
<br>रिषिन्ह गौरि देखी तहँ कैसी। मूरतिमंत तपस्या जैसी॥
 
<br>बोले मुनि सुनु सैलकुमारी। करहु कवन कारन तपु भारी॥
 
<br>केहि अवराधहु का तुम्ह चहहू। हम सन सत्य मरमु किन कहहू॥
 
<br>कहत बचत मनु अति सकुचाई। हँसिहहु सुनि हमारि जड़ताई॥
 
<br>मनु हठ परा न सुनइ सिखावा। चहत बारि पर भीति उठावा॥
 
<br>नारद कहा सत्य सोइ जाना। बिनु पंखन्ह हम चहहिं उड़ाना॥
 
<br>देखहु मुनि अबिबेकु हमारा। चाहिअ सदा सिवहि भरतारा॥
 
<br>दो0-सुनत बचन बिहसे रिषय गिरिसंभव तब देह।
 
<br>नारद कर उपदेसु सुनि कहहु बसेउ किसु गेह॥78॥
 
<br>–*–*–
 
<br>दच्छसुतन्ह उपदेसेन्हि जाई। तिन्ह फिरि भवनु न देखा आई॥
 
<br>चित्रकेतु कर घरु उन घाला। कनककसिपु कर पुनि अस हाला॥
 
<br>नारद सिख जे सुनहिं नर नारी। अवसि होहिं तजि भवनु भिखारी॥
 
<br>मन कपटी तन सज्जन चीन्हा। आपु सरिस सबही चह कीन्हा॥
 
<br>तेहि कें बचन मानि बिस्वासा। तुम्ह चाहहु पति सहज उदासा॥
 
<br>निर्गुन निलज कुबेष कपाली। अकुल अगेह दिगंबर ब्याली॥
 
<br>कहहु कवन सुखु अस बरु पाएँ। भल भूलिहु ठग के बौराएँ॥
 
<br>पंच कहें सिवँ सती बिबाही। पुनि अवडेरि मराएन्हि ताही॥
 
<br>दो0-अब सुख सोवत सोचु नहि भीख मागि भव खाहिं।
 
<br>सहज एकाकिन्ह के भवन कबहुँ कि नारि खटाहिं॥79॥
 
<br>–*–*–
 
<br>अजहूँ मानहु कहा हमारा। हम तुम्ह कहुँ बरु नीक बिचारा॥
 
<br>अति सुंदर सुचि सुखद सुसीला। गावहिं बेद जासु जस लीला॥
 
<br>दूषन रहित सकल गुन रासी। श्रीपति पुर बैकुंठ निवासी॥
 
<br>अस बरु तुम्हहि मिलाउब आनी। सुनत बिहसि कह बचन भवानी॥
 
<br>सत्य कहेहु गिरिभव तनु एहा। हठ न छूट छूटै बरु देहा॥
 
<br>कनकउ पुनि पषान तें होई। जारेहुँ सहजु न परिहर सोई॥
 
<br>नारद बचन न मैं परिहरऊँ। बसउ भवनु उजरउ नहिं डरऊँ॥
 
<br>गुर कें बचन प्रतीति न जेही। सपनेहुँ सुगम न सुख सिधि तेही॥
 
<br>दो0-महादेव अवगुन भवन बिष्नु सकल गुन धाम।
 
<br>जेहि कर मनु रम जाहि सन तेहि तेही सन काम॥80॥
 
<br>–*–*–
 
<br>जौं तुम्ह मिलतेहु प्रथम मुनीसा। सुनतिउँ सिख तुम्हारि धरि सीसा॥
 
<br>अब मैं जन्मु संभु हित हारा। को गुन दूषन करै बिचारा॥
 
<br>जौं तुम्हरे हठ हृदयँ बिसेषी। रहि न जाइ बिनु किएँ बरेषी॥
 
<br>तौ कौतुकिअन्ह आलसु नाहीं। बर कन्या अनेक जग माहीं॥
 
<br>जन्म कोटि लगि रगर हमारी। बरउँ संभु न त रहउँ कुआरी॥
 
<br>तजउँ न नारद कर उपदेसू। आपु कहहि सत बार महेसू॥
 
<br>मैं पा परउँ कहइ जगदंबा। तुम्ह गृह गवनहु भयउ बिलंबा॥
 
<br>देखि प्रेमु बोले मुनि ग्यानी। जय जय जगदंबिके भवानी॥
 
<br>दो0-तुम्ह माया भगवान सिव सकल जगत पितु मातु।
 
<br>नाइ चरन सिर मुनि चले पुनि पुनि हरषत गातु॥81॥
 
<br>–*–*–
 
<br>जाइ मुनिन्ह हिमवंतु पठाए। करि बिनती गिरजहिं गृह ल्याए॥
 
<br>बहुरि सप्तरिषि सिव पहिं जाई। कथा उमा कै सकल सुनाई॥
 
<br>भए मगन सिव सुनत सनेहा। हरषि सप्तरिषि गवने गेहा॥
 
<br>मनु थिर करि तब संभु सुजाना। लगे करन रघुनायक ध्याना॥
 
<br>तारकु असुर भयउ तेहि काला। भुज प्रताप बल तेज बिसाला॥
 
<br>तेंहि सब लोक लोकपति जीते। भए देव सुख संपति रीते॥
 
<br>अजर अमर सो जीति न जाई। हारे सुर करि बिबिध लराई॥
 
<br>तब बिरंचि सन जाइ पुकारे। देखे बिधि सब देव दुखारे॥
 
<br>दो0-सब सन कहा बुझाइ बिधि दनुज निधन तब होइ।
 
<br>संभु सुक्र संभूत सुत एहि जीतइ रन सोइ॥82॥
 
<br>–*–*–
 
<br>मोर कहा सुनि करहु उपाई। होइहि ईस्वर करिहि सहाई॥
 
<br>सतीं जो तजी दच्छ मख देहा। जनमी जाइ हिमाचल गेहा॥
 
<br>तेहिं तपु कीन्ह संभु पति लागी। सिव समाधि बैठे सबु त्यागी॥
 
<br>जदपि अहइ असमंजस भारी। तदपि बात एक सुनहु हमारी॥
 
<br>पठवहु कामु जाइ सिव पाहीं। करै छोभु संकर मन माहीं॥
 
<br>तब हम जाइ सिवहि सिर नाई। करवाउब बिबाहु बरिआई॥
 
<br>एहि बिधि भलेहि देवहित होई। मर अति नीक कहइ सबु कोई॥
 
<br>अस्तुति सुरन्ह कीन्हि अति हेतू। प्रगटेउ बिषमबान झषकेतू॥
 
<br>दो0-सुरन्ह कहीं निज बिपति सब सुनि मन कीन्ह बिचार।
 
<br>संभु बिरोध न कुसल मोहि बिहसि कहेउ अस मार॥83॥
 
<br>–*–*–
 
<br>तदपि करब मैं काजु तुम्हारा। श्रुति कह परम धरम उपकारा॥
 
<br>पर हित लागि तजइ जो देही। संतत संत प्रसंसहिं तेही॥
 
<br>अस कहि चलेउ सबहि सिरु नाई। सुमन धनुष कर सहित सहाई॥
 
<br>चलत मार अस हृदयँ बिचारा। सिव बिरोध ध्रुव मरनु हमारा॥
 
<br>तब आपन प्रभाउ बिस्तारा। निज बस कीन्ह सकल संसारा॥
 
<br>कोपेउ जबहि बारिचरकेतू। छन महुँ मिटे सकल श्रुति सेतू॥
 
<br>ब्रह्मचर्ज ब्रत संजम नाना। धीरज धरम ग्यान बिग्याना॥
 
<br>सदाचार जप जोग बिरागा। सभय बिबेक कटकु सब भागा॥
 
<br>छं0-भागेउ बिबेक सहाय सहित सो सुभट संजुग महि मुरे।
 
<br>सदग्रंथ पर्बत कंदरन्हि महुँ जाइ तेहि अवसर दुरे॥
 
<br>होनिहार का करतार को रखवार जग खरभरु परा।
 
<br>दुइ माथ केहि रतिनाथ जेहि कहुँ कोपि कर धनु सरु धरा॥
 
<br>दो0-जे सजीव जग अचर चर नारि पुरुष अस नाम।
 
<br>ते निज निज मरजाद तजि भए सकल बस काम॥84॥
 
<br>–*–*–
 
<br>सब के हृदयँ मदन अभिलाषा। लता निहारि नवहिं तरु साखा॥
 
<br>नदीं उमगि अंबुधि कहुँ धाई। संगम करहिं तलाव तलाई॥
 
<br>जहँ असि दसा जड़न्ह कै बरनी। को कहि सकइ सचेतन करनी॥
 
<br>पसु पच्छी नभ जल थलचारी। भए कामबस समय बिसारी॥
 
<br>मदन अंध ब्याकुल सब लोका। निसि दिनु नहिं अवलोकहिं कोका॥
 
<br>देव दनुज नर किंनर ब्याला। प्रेत पिसाच भूत बेताला॥
 
<br>इन्ह कै दसा न कहेउँ बखानी। सदा काम के चेरे जानी॥
 
<br>सिद्ध बिरक्त महामुनि जोगी। तेपि कामबस भए बियोगी॥
 
<br>छं0-भए कामबस जोगीस तापस पावँरन्हि की को कहै।
 
<br>देखहिं चराचर नारिमय जे ब्रह्ममय देखत रहे॥
 
<br>अबला बिलोकहिं पुरुषमय जगु पुरुष सब अबलामयं।
 
<br>दुइ दंड भरि ब्रह्मांड भीतर कामकृत कौतुक अयं॥
 
<br>सो0-धरी न काहूँ धिर सबके मन मनसिज हरे।
 
<br>जे राखे रघुबीर ते उबरे तेहि काल महुँ॥85॥
 
<br>
 
<br>उभय घरी अस कौतुक भयऊ। जौ लगि कामु संभु पहिं गयऊ॥
 
<br>सिवहि बिलोकि ससंकेउ मारू। भयउ जथाथिति सबु संसारू॥
 
<br>भए तुरत सब जीव सुखारे। जिमि मद उतरि गएँ मतवारे॥
 
<br>रुद्रहि देखि मदन भय माना। दुराधरष दुर्गम भगवाना॥
 
<br>फिरत लाज कछु करि नहिं जाई। मरनु ठानि मन रचेसि उपाई॥
 
<br>प्रगटेसि तुरत रुचिर रितुराजा। कुसुमित नव तरु राजि बिराजा॥
 
<br>बन उपबन बापिका तड़ागा। परम सुभग सब दिसा बिभागा॥
 
<br>जहँ तहँ जनु उमगत अनुरागा। देखि मुएहुँ मन मनसिज जागा॥
 
<br>छं0-जागइ मनोभव मुएहुँ मन बन सुभगता न परै कही।
 
<br>सीतल सुगंध सुमंद मारुत मदन अनल सखा सही॥
 
<br>बिकसे सरन्हि बहु कंज गुंजत पुंज मंजुल मधुकरा।
 
<br>कलहंस पिक सुक सरस रव करि गान नाचहिं अपछरा॥
 
<br>दो0-सकल कला करि कोटि बिधि हारेउ सेन समेत।
 
<br>चली न अचल समाधि सिव कोपेउ हृदयनिकेत॥86॥
 
<br>–*–*–
 
<br>देखि रसाल बिटप बर साखा। तेहि पर चढ़ेउ मदनु मन माखा॥
 
<br>सुमन चाप निज सर संधाने। अति रिस ताकि श्रवन लगि ताने॥
 
<br>छाड़े बिषम बिसिख उर लागे। छुटि समाधि संभु तब जागे॥
 
<br>भयउ ईस मन छोभु बिसेषी। नयन उघारि सकल दिसि देखी॥
 
<br>सौरभ पल्लव मदनु बिलोका। भयउ कोपु कंपेउ त्रैलोका॥
 
<br>तब सिवँ तीसर नयन उघारा। चितवत कामु भयउ जरि छारा॥
 
<br>हाहाकार भयउ जग भारी। डरपे सुर भए असुर सुखारी॥
 
<br>समुझि कामसुखु सोचहिं भोगी। भए अकंटक साधक जोगी॥
 
<br>छं0-जोगि अकंटक भए पति गति सुनत रति मुरुछित भई।
 
<br>रोदति बदति बहु भाँति करुना करति संकर पहिं गई।
 
<br>अति प्रेम करि बिनती बिबिध बिधि जोरि कर सन्मुख रही।
 
<br>प्रभु आसुतोष कृपाल सिव अबला निरखि बोले सही॥
 
<br>दो0-अब तें रति तव नाथ कर होइहि नामु अनंगु।
 
<br>बिनु बपु ब्यापिहि सबहि पुनि सुनु निज मिलन प्रसंगु॥87॥
 
<br>–*–*–
 
<br>जब जदुबंस कृष्न अवतारा। होइहि हरन महा महिभारा॥
 
<br>कृष्न तनय होइहि पति तोरा। बचनु अन्यथा होइ न मोरा॥
 
<br>रति गवनी सुनि संकर बानी। कथा अपर अब कहउँ बखानी॥
 
<br>देवन्ह समाचार सब पाए। ब्रह्मादिक बैकुंठ सिधाए॥
 
<br>सब सुर बिष्नु बिरंचि समेता। गए जहाँ सिव कृपानिकेता॥
 
<br>पृथक पृथक तिन्ह कीन्हि प्रसंसा। भए प्रसन्न चंद्र अवतंसा॥
 
<br>बोले कृपासिंधु बृषकेतू। कहहु अमर आए केहि हेतू॥
 
<br>कह बिधि तुम्ह प्रभु अंतरजामी। तदपि भगति बस बिनवउँ स्वामी॥
 
<br>दो0-सकल सुरन्ह के हृदयँ अस संकर परम उछाहु।
 
<br>निज नयनन्हि देखा चहहिं नाथ तुम्हार बिबाहु॥88॥
 
<br>–*–*–
 
<br>यह उत्सव देखिअ भरि लोचन। सोइ कछु करहु मदन मद मोचन।
 
<br>कामु जारि रति कहुँ बरु दीन्हा। कृपासिंधु यह अति भल कीन्हा॥
 
<br>सासति करि पुनि करहिं पसाऊ। नाथ प्रभुन्ह कर सहज सुभाऊ॥
 
<br>पारबतीं तपु कीन्ह अपारा। करहु तासु अब अंगीकारा॥
 
<br>सुनि बिधि बिनय समुझि प्रभु बानी। ऐसेइ होउ कहा सुखु मानी॥
 
<br>तब देवन्ह दुंदुभीं बजाईं। बरषि सुमन जय जय सुर साई॥
 
<br>अवसरु जानि सप्तरिषि आए। तुरतहिं बिधि गिरिभवन पठाए॥
 
<br>प्रथम गए जहँ रही भवानी। बोले मधुर बचन छल सानी॥
 
<br>दो0-कहा हमार न सुनेहु तब नारद कें उपदेस।
 
<br>अब भा झूठ तुम्हार पन जारेउ कामु महेस॥89॥
 
<br>मासपारायण,तीसरा विश्राम
 
<br>–*–*–
 
<br>सुनि बोलीं मुसकाइ भवानी। उचित कहेहु मुनिबर बिग्यानी॥
 
<br>तुम्हरें जान कामु अब जारा। अब लगि संभु रहे सबिकारा॥
 
<br>हमरें जान सदा सिव जोगी। अज अनवद्य अकाम अभोगी॥
 
<br>जौं मैं सिव सेये अस जानी। प्रीति समेत कर्म मन बानी॥
 
<br>तौ हमार पन सुनहु मुनीसा। करिहहिं सत्य कृपानिधि ईसा॥
 
<br>तुम्ह जो कहा हर जारेउ मारा। सोइ अति बड़ अबिबेकु तुम्हारा॥
 
<br>तात अनल कर सहज सुभाऊ। हिम तेहि निकट जाइ नहिं काऊ॥
 
<br>गएँ समीप सो अवसि नसाई। असि मन्मथ महेस की नाई॥
 
<br>दो0-हियँ हरषे मुनि बचन सुनि देखि प्रीति बिस्वास॥
 
<br>चले भवानिहि नाइ सिर गए हिमाचल पास॥90॥
 
<br>–*–*–
 
<br>सबु प्रसंगु गिरिपतिहि सुनावा। मदन दहन सुनि अति दुखु पावा॥
 
<br>बहुरि कहेउ रति कर बरदाना। सुनि हिमवंत बहुत सुखु माना॥
 
<br>हृदयँ बिचारि संभु प्रभुताई। सादर मुनिबर लिए बोलाई॥
 
<br>सुदिनु सुनखतु सुघरी सोचाई। बेगि बेदबिधि लगन धराई॥
 
<br>पत्री सप्तरिषिन्ह सोइ दीन्ही। गहि पद बिनय हिमाचल कीन्ही॥
 
<br>जाइ बिधिहि दीन्हि सो पाती। बाचत प्रीति न हृदयँ समाती॥
 
<br>लगन बाचि अज सबहि सुनाई। हरषे मुनि सब सुर समुदाई॥
 
<br>सुमन बृष्टि नभ बाजन बाजे। मंगल कलस दसहुँ दिसि साजे॥
 
<br>दो0- लगे सँवारन सकल सुर बाहन बिबिध बिमान।
 
<br>होहि सगुन मंगल सुभद करहिं अपछरा गान॥91॥
 
<br>–*–*–
 
<br>
 
<br>सिवहि संभु गन करहिं सिंगारा। जटा मुकुट अहि मौरु सँवारा॥
 
<br>कुंडल कंकन पहिरे ब्याला। तन बिभूति पट केहरि छाला॥
 
<br>ससि ललाट सुंदर सिर गंगा। नयन तीनि उपबीत भुजंगा॥
 
<br>गरल कंठ उर नर सिर माला। असिव बेष सिवधाम कृपाला॥
 
<br>कर त्रिसूल अरु डमरु बिराजा। चले बसहँ चढ़ि बाजहिं बाजा॥
 
<br>देखि सिवहि सुरत्रिय मुसुकाहीं। बर लायक दुलहिनि जग नाहीं॥
 
<br>बिष्नु बिरंचि आदि सुरब्राता। चढ़ि चढ़ि बाहन चले बराता॥
 
<br>सुर समाज सब भाँति अनूपा। नहिं बरात दूलह अनुरूपा॥
 
<br>दो0-बिष्नु कहा अस बिहसि तब बोलि सकल दिसिराज।
 
<br>बिलग बिलग होइ चलहु सब निज निज सहित समाज॥92॥
 
<br>–*–*–
 
<br>बर अनुहारि बरात न भाई। हँसी करैहहु पर पुर जाई॥
 
<br>बिष्नु बचन सुनि सुर मुसकाने। निज निज सेन सहित बिलगाने॥
 
<br>मनहीं मन महेसु मुसुकाहीं। हरि के बिंग्य बचन नहिं जाहीं॥
 
<br>अति प्रिय बचन सुनत प्रिय केरे। भृंगिहि प्रेरि सकल गन टेरे॥
 
<br>सिव अनुसासन सुनि सब आए। प्रभु पद जलज सीस तिन्ह नाए॥
 
<br>नाना बाहन नाना बेषा। बिहसे सिव समाज निज देखा॥
 
<br>कोउ मुखहीन बिपुल मुख काहू। बिनु पद कर कोउ बहु पद बाहू॥
 
<br>बिपुल नयन कोउ नयन बिहीना। रिष्टपुष्ट कोउ अति तनखीना॥
 
<br>छं0-तन खीन कोउ अति पीन पावन कोउ अपावन गति धरें।
 
<br>भूषन कराल कपाल कर सब सद्य सोनित तन भरें॥
 
<br>खर स्वान सुअर सृकाल मुख गन बेष अगनित को गनै।
 
<br>बहु जिनस प्रेत पिसाच जोगि जमात बरनत नहिं बनै॥
 
<br>सो0-नाचहिं गावहिं गीत परम तरंगी भूत सब।
 
<br>देखत अति बिपरीत बोलहिं बचन बिचित्र बिधि॥93॥
 
<br>जस दूलहु तसि बनी बराता। कौतुक बिबिध होहिं मग जाता॥
 
<br>इहाँ हिमाचल रचेउ बिताना। अति बिचित्र नहिं जाइ बखाना॥
 
<br>सैल सकल जहँ लगि जग माहीं। लघु बिसाल नहिं बरनि सिराहीं॥
 
<br>बन सागर सब नदीं तलावा। हिमगिरि सब कहुँ नेवत पठावा॥
 
<br>कामरूप सुंदर तन धारी। सहित समाज सहित बर नारी॥
 
<br>गए सकल तुहिनाचल गेहा। गावहिं मंगल सहित सनेहा॥
 
<br>प्रथमहिं गिरि बहु गृह सँवराए। जथाजोगु तहँ तहँ सब छाए॥
 
<br>पुर सोभा अवलोकि सुहाई। लागइ लघु बिरंचि निपुनाई॥
 
<br>छं0-लघु लाग बिधि की निपुनता अवलोकि पुर सोभा सही।
 
<br>बन बाग कूप तड़ाग सरिता सुभग सब सक को कही॥
 
<br>मंगल बिपुल तोरन पताका केतु गृह गृह सोहहीं॥
 
<br>बनिता पुरुष सुंदर चतुर छबि देखि मुनि मन मोहहीं॥
 
<br>दो0-जगदंबा जहँ अवतरी सो पुरु बरनि कि जाइ।
 
<br>रिद्धि सिद्धि संपत्ति सुख नित नूतन अधिकाइ॥94॥
 
<br>–*–*–
 
<br>नगर निकट बरात सुनि आई। पुर खरभरु सोभा अधिकाई॥
 
<br>करि बनाव सजि बाहन नाना। चले लेन सादर अगवाना॥
 
<br>हियँ हरषे सुर सेन निहारी। हरिहि देखि अति भए सुखारी॥
 
<br>सिव समाज जब देखन लागे। बिडरि चले बाहन सब भागे॥
 
<br>धरि धीरजु तहँ रहे सयाने। बालक सब लै जीव पराने॥
 
<br>गएँ भवन पूछहिं पितु माता। कहहिं बचन भय कंपित गाता॥
 
<br>कहिअ काह कहि जाइ न बाता। जम कर धार किधौं बरिआता॥
 
<br>बरु बौराह बसहँ असवारा। ब्याल कपाल बिभूषन छारा॥
 
<br>छं0-तन छार ब्याल कपाल भूषन नगन जटिल भयंकरा।
 
<br>सँग भूत प्रेत पिसाच जोगिनि बिकट मुख रजनीचरा॥
 
<br>जो जिअत रहिहि बरात देखत पुन्य बड़ तेहि कर सही।
 
<br>देखिहि सो उमा बिबाहु घर घर बात असि लरिकन्ह कही॥
 
<br>दो0-समुझि महेस समाज सब जननि जनक मुसुकाहिं।
 
<br>बाल बुझाए बिबिध बिधि निडर होहु डरु नाहिं॥95॥
 
<br>–*–*–
 
<br>लै अगवान बरातहि आए। दिए सबहि जनवास सुहाए॥
 
<br>मैनाँ सुभ आरती सँवारी। संग सुमंगल गावहिं नारी॥
 
<br>कंचन थार सोह बर पानी। परिछन चली हरहि हरषानी॥
 
<br>बिकट बेष रुद्रहि जब देखा। अबलन्ह उर भय भयउ बिसेषा॥
 
<br>भागि भवन पैठीं अति त्रासा। गए महेसु जहाँ जनवासा॥
 
<br>मैना हृदयँ भयउ दुखु भारी। लीन्ही बोलि गिरीसकुमारी॥
 
<br>अधिक सनेहँ गोद बैठारी। स्याम सरोज नयन भरे बारी॥
 
<br>जेहिं बिधि तुम्हहि रूपु अस दीन्हा। तेहिं जड़ बरु बाउर कस कीन्हा॥
 
<br>छं0- कस कीन्ह बरु बौराह बिधि जेहिं तुम्हहि सुंदरता दई।
 
<br>जो फलु चहिअ सुरतरुहिं सो बरबस बबूरहिं लागई॥
 
<br>तुम्ह सहित गिरि तें गिरौं पावक जरौं जलनिधि महुँ परौं॥
 
<br>घरु जाउ अपजसु होउ जग जीवत बिबाहु न हौं करौं॥
 
<br>दो0-भई बिकल अबला सकल दुखित देखि गिरिनारि।
 
<br>करि बिलापु रोदति बदति सुता सनेहु सँभारि॥96॥
 
<br>–*–*–
 
<br>नारद कर मैं काह बिगारा। भवनु मोर जिन्ह बसत उजारा॥
 
<br>अस उपदेसु उमहि जिन्ह दीन्हा। बौरे बरहि लगि तपु कीन्हा॥
 
<br>साचेहुँ उन्ह के मोह न माया। उदासीन धनु धामु न जाया॥
 
<br>पर घर घालक लाज न भीरा। बाझँ कि जान प्रसव कैं पीरा॥
 
<br>जननिहि बिकल बिलोकि भवानी। बोली जुत बिबेक मृदु बानी॥
 
<br>अस बिचारि सोचहि मति माता। सो न टरइ जो रचइ बिधाता॥
 
<br>करम लिखा जौ बाउर नाहू। तौ कत दोसु लगाइअ काहू॥
 
<br>
 
<br>तुम्ह सन मिटहिं कि बिधि के अंका। मातु ब्यर्थ जनि लेहु कलंका॥
 
<br>छं0-जनि लेहु मातु कलंकु करुना परिहरहु अवसर नहीं।
 
<br>दुखु सुखु जो लिखा लिलार हमरें जाब जहँ पाउब तहीं॥
 
<br>सुनि उमा बचन बिनीत कोमल सकल अबला सोचहीं॥
 
<br>बहु भाँति बिधिहि लगाइ दूषन नयन बारि बिमोचहीं॥
 
<br>दो0-तेहि अवसर नारद सहित अरु रिषि सप्त समेत।
 
<br>समाचार सुनि तुहिनगिरि गवने तुरत निकेत॥97॥
 
<br>–*–*–
 
<br>तब नारद सबहि समुझावा। पूरुब कथाप्रसंगु सुनावा॥
 
<br>मयना सत्य सुनहु मम बानी। जगदंबा तव सुता भवानी॥
 
<br>अजा अनादि सक्ति अबिनासिनि। सदा संभु अरधंग निवासिनि॥
 
<br>जग संभव पालन लय कारिनि। निज इच्छा लीला बपु धारिनि॥
 
<br>जनमीं प्रथम दच्छ गृह जाई। नामु सती सुंदर तनु पाई॥
 
<br>तहँहुँ सती संकरहि बिबाहीं। कथा प्रसिद्ध सकल जग माहीं॥
 
<br>एक बार आवत सिव संगा। देखेउ रघुकुल कमल पतंगा॥
 
<br>भयउ मोहु सिव कहा न कीन्हा। भ्रम बस बेषु सीय कर लीन्हा॥
 
<br>छं0-सिय बेषु सती जो कीन्ह तेहि अपराध संकर परिहरीं।
 
<br>हर बिरहँ जाइ बहोरि पितु कें जग्य जोगानल जरीं॥
 
<br>अब जनमि तुम्हरे भवन निज पति लागि दारुन तपु किया।
 
<br>अस जानि संसय तजहु गिरिजा सर्बदा संकर प्रिया॥
 
<br>दो0-सुनि नारद के बचन तब सब कर मिटा बिषाद।
 
<br>छन महुँ ब्यापेउ सकल पुर घर घर यह संबाद॥98॥
 
<br>–*–*–
 
<br>तब मयना हिमवंतु अनंदे। पुनि पुनि पारबती पद बंदे॥
 
<br>नारि पुरुष सिसु जुबा सयाने। नगर लोग सब अति हरषाने॥
 
<br>लगे होन पुर मंगलगाना। सजे सबहि हाटक घट नाना॥
 
<br>भाँति अनेक भई जेवराना। सूपसास्त्र जस कछु ब्यवहारा॥
 
<br>सो जेवनार कि जाइ बखानी। बसहिं भवन जेहिं मातु भवानी॥
 
<br>सादर बोले सकल बराती। बिष्नु बिरंचि देव सब जाती॥
 
<br>बिबिधि पाँति बैठी जेवनारा। लागे परुसन निपुन सुआरा॥
 
<br>नारिबृंद सुर जेवँत जानी। लगीं देन गारीं मृदु बानी॥
 
<br>छं0-गारीं मधुर स्वर देहिं सुंदरि बिंग्य बचन सुनावहीं।
 
<br>भोजनु करहिं सुर अति बिलंबु बिनोदु सुनि सचु पावहीं॥
 
<br>जेवँत जो बढ़्यो अनंदु सो मुख कोटिहूँ न परै कह्यो।
 
<br>अचवाँइ दीन्हे पान गवने बास जहँ जाको रह्यो॥
 
<br>दो0-बहुरि मुनिन्ह हिमवंत कहुँ लगन सुनाई आइ।
 
<br>समय बिलोकि बिबाह कर पठए देव बोलाइ॥99॥
 
<br>–*–*–
 
<br>बोलि सकल सुर सादर लीन्हे। सबहि जथोचित आसन दीन्हे॥
 
<br>बेदी बेद बिधान सँवारी। सुभग सुमंगल गावहिं नारी॥
 
<br>सिंघासनु अति दिब्य सुहावा। जाइ न बरनि बिरंचि बनावा॥
 
<br>बैठे सिव बिप्रन्ह सिरु नाई। हृदयँ सुमिरि निज प्रभु रघुराई॥
 
<br>बहुरि मुनीसन्ह उमा बोलाई। करि सिंगारु सखीं लै आई॥
 
<br>देखत रूपु सकल सुर मोहे। बरनै छबि अस जग कबि को है॥
 
<br>जगदंबिका जानि भव भामा। सुरन्ह मनहिं मन कीन्ह प्रनामा॥
 
<br>सुंदरता मरजाद भवानी। जाइ न कोटिहुँ बदन बखानी॥
 
<br>छं0-कोटिहुँ बदन नहिं बनै बरनत जग जननि सोभा महा।
 
<br>सकुचहिं कहत श्रुति सेष सारद मंदमति तुलसी कहा॥
 
<br>छबिखानि मातु भवानि गवनी मध्य मंडप सिव जहाँ॥
 
<br>अवलोकि सकहिं न सकुच पति पद कमल मनु मधुकरु तहाँ॥
 
<br>दो0-मुनि अनुसासन गनपतिहि पूजेउ संभु भवानि।
 
<br>
 
<br>कोउ सुनि संसय करै जनि सुर अनादि जियँ जानि॥100॥
 
<br>–*–*–
 
<br>
 
<br>जसि बिबाह कै बिधि श्रुति गाई। महामुनिन्ह सो सब करवाई॥
 
<br>गहि गिरीस कुस कन्या पानी। भवहि समरपीं जानि भवानी॥
 
<br>पानिग्रहन जब कीन्ह महेसा। हिंयँ हरषे तब सकल सुरेसा॥
 
<br>बेद मंत्र मुनिबर उच्चरहीं। जय जय जय संकर सुर करहीं॥
 
<br>बाजहिं बाजन बिबिध बिधाना। सुमनबृष्टि नभ भै बिधि नाना॥
 
<br>हर गिरिजा कर भयउ बिबाहू। सकल भुवन भरि रहा उछाहू॥
 
<br>दासीं दास तुरग रथ नागा। धेनु बसन मनि बस्तु बिभागा॥
 
<br>अन्न कनकभाजन भरि जाना। दाइज दीन्ह न जाइ बखाना॥
 
<br>छं0-दाइज दियो बहु भाँति पुनि कर जोरि हिमभूधर कह्यो।
 
<br>का देउँ पूरनकाम संकर चरन पंकज गहि रह्यो॥
 
<br>सिवँ कृपासागर ससुर कर संतोषु सब भाँतिहिं कियो।
 
<br>पुनि गहे पद पाथोज मयनाँ प्रेम परिपूरन हियो॥
 
<br>दो0-नाथ उमा मन प्रान सम गृहकिंकरी करेहु।
 
<br>छमेहु सकल अपराध अब होइ प्रसन्न बरु देहु॥101॥
 
<br>–*–*–
 
<br>बहु बिधि संभु सास समुझाई। गवनी भवन चरन सिरु नाई॥
 
<br>जननीं उमा बोलि तब लीन्ही। लै उछंग सुंदर सिख दीन्ही॥
 
<br>करेहु सदा संकर पद पूजा। नारिधरमु पति देउ न दूजा॥
 
<br>बचन कहत भरे लोचन बारी। बहुरि लाइ उर लीन्हि कुमारी॥
 
<br>कत बिधि सृजीं नारि जग माहीं। पराधीन सपनेहुँ सुखु नाहीं॥
 
<br>भै अति प्रेम बिकल महतारी। धीरजु कीन्ह कुसमय बिचारी॥
 
<br>पुनि पुनि मिलति परति गहि चरना। परम प्रेम कछु जाइ न बरना॥
 
<br>सब नारिन्ह मिलि भेटि भवानी। जाइ जननि उर पुनि लपटानी॥
 
<br>छं0-जननिहि बहुरि मिलि चली उचित असीस सब काहूँ दईं।
 
<br>फिरि फिरि बिलोकति मातु तन तब सखीं लै सिव पहिं गई॥
 
<br>जाचक सकल संतोषि संकरु उमा सहित भवन चले।
 
<br>सब अमर हरषे सुमन बरषि निसान नभ बाजे भले॥
 
<br>दो0-चले संग हिमवंतु तब पहुँचावन अति हेतु।
 
<br>बिबिध भाँति परितोषु करि बिदा कीन्ह बृषकेतु॥102॥
 
<br>–*–*–
 
<br>तुरत भवन आए गिरिराई। सकल सैल सर लिए बोलाई॥
 
<br>आदर दान बिनय बहुमाना। सब कर बिदा कीन्ह हिमवाना॥
 
<br>जबहिं संभु कैलासहिं आए। सुर सब निज निज लोक सिधाए॥
 
<br>जगत मातु पितु संभु भवानी। तेही सिंगारु न कहउँ बखानी॥
 
<br>करहिं बिबिध बिधि भोग बिलासा। गनन्ह समेत बसहिं कैलासा॥
 
<br>हर गिरिजा बिहार नित नयऊ। एहि बिधि बिपुल काल चलि गयऊ॥
 
<br>तब जनमेउ षटबदन कुमारा। तारकु असुर समर जेहिं मारा॥
 
<br>आगम निगम प्रसिद्ध पुराना। षन्मुख जन्मु सकल जग जाना॥
 
<br>छं0-जगु जान षन्मुख जन्मु कर्मु प्रतापु पुरुषारथु महा।
 
<br>तेहि हेतु मैं बृषकेतु सुत कर चरित संछेपहिं कहा॥
 
<br>यह उमा संगु बिबाहु जे नर नारि कहहिं जे गावहीं।
 
<br>कल्यान काज बिबाह मंगल सर्बदा सुखु पावहीं॥
 
<br>दो0-चरित सिंधु गिरिजा रमन बेद न पावहिं पारु।
 
<br>बरनै तुलसीदासु किमि अति मतिमंद गवाँरु॥103॥
 
<br>–*–*–
 
<br>
 
<br>संभु चरित सुनि सरस सुहावा। भरद्वाज मुनि अति सुख पावा॥
 
<br>बहु लालसा कथा पर बाढ़ी। नयनन्हि नीरु रोमावलि ठाढ़ी॥
 
<br>प्रेम बिबस मुख आव न बानी। दसा देखि हरषे मुनि ग्यानी॥
 
<br>अहो धन्य तव जन्मु मुनीसा। तुम्हहि प्रान सम प्रिय गौरीसा॥
 
<br>सिव पद कमल जिन्हहि रति नाहीं। रामहि ते सपनेहुँ न सोहाहीं॥
 
<br>बिनु छल बिस्वनाथ पद नेहू। राम भगत कर लच्छन एहू॥
 
<br>सिव सम को रघुपति ब्रतधारी। बिनु अघ तजी सती असि नारी॥
 
<br>पनु करि रघुपति भगति देखाई। को सिव सम रामहि प्रिय भाई॥
 
<br>दो0-प्रथमहिं मै कहि सिव चरित बूझा मरमु तुम्हार।
 
<br>सुचि सेवक तुम्ह राम के रहित समस्त बिकार॥104॥
 
<br>–*–*–
 
<br>मैं जाना तुम्हार गुन सीला। कहउँ सुनहु अब रघुपति लीला॥
 
<br>सुनु मुनि आजु समागम तोरें। कहि न जाइ जस सुखु मन मोरें॥
 
<br>राम चरित अति अमित मुनिसा। कहि न सकहिं सत कोटि अहीसा॥
 
<br>तदपि जथाश्रुत कहउँ बखानी। सुमिरि गिरापति प्रभु धनुपानी॥
 
<br>सारद दारुनारि सम स्वामी। रामु सूत्रधर अंतरजामी॥
 
<br>जेहि पर कृपा करहिं जनु जानी। कबि उर अजिर नचावहिं बानी॥
 
<br>प्रनवउँ सोइ कृपाल रघुनाथा। बरनउँ बिसद तासु गुन गाथा॥
 
<br>परम रम्य गिरिबरु कैलासू। सदा जहाँ सिव उमा निवासू॥
 
<br>दो0-सिद्ध तपोधन जोगिजन सूर किंनर मुनिबृंद।
 
<br>बसहिं तहाँ सुकृती सकल सेवहिं सिब सुखकंद॥105॥
 
<br>–*–*–
 
<br>हरि हर बिमुख धर्म रति नाहीं। ते नर तहँ सपनेहुँ नहिं जाहीं॥
 
<br>तेहि गिरि पर बट बिटप बिसाला। नित नूतन सुंदर सब काला॥
 
<br>त्रिबिध समीर सुसीतलि छाया। सिव बिश्राम बिटप श्रुति गाया॥
 
<br>एक बार तेहि तर प्रभु गयऊ। तरु बिलोकि उर अति सुखु भयऊ॥
 
<br>निज कर डासि नागरिपु छाला। बैठै सहजहिं संभु कृपाला॥
 
<br>कुंद इंदु दर गौर सरीरा। भुज प्रलंब परिधन मुनिचीरा॥
 
<br>तरुन अरुन अंबुज सम चरना। नख दुति भगत हृदय तम हरना॥
 
<br>भुजग भूति भूषन त्रिपुरारी। आननु सरद चंद छबि हारी॥
 
<br>दो0-जटा मुकुट सुरसरित सिर लोचन नलिन बिसाल।
 
<br>नीलकंठ लावन्यनिधि सोह बालबिधु भाल॥106॥
 
<br>–*–*–
 

०९:५१, ६ जुलाई २००८ के समय का अवतरण

http://www.kavitakosh.orgKkmsgchng
































CHANDER साँचा:KKPageNavigation

॥श्री गणेशाय नमः ॥
श्रीजानकीवल्लभो विजयते
श्री रामचरित मानस
प्रथम सोपान
(बालकाण्ड)
श्लोक
वर्णानामर्थसंघानां रसानां छन्दसामपि।
मङ्गलानां च कर्त्तारौ वन्दे वाणीविनायकौ॥१॥
भवानीशङ्करौ वन्दे श्रद्धाविश्वासरूपिणौ।
याभ्यां विना न पश्यन्ति सिद्धाःस्वान्तःस्थमीश्वरम्॥२॥
वन्दे बोधमयं नित्यं गुरुं शङ्कररूपिणम्।
यमाश्रितो हि वक्रोऽपि चन्द्रः सर्वत्र वन्द्यते॥३॥
सीतारामगुणग्रामपुण्यारण्यविहारिणौ।
वन्दे विशुद्धविज्ञानौ कवीश्वरकपीश्वरौ॥४॥
उद्भवस्थितिसंहारकारिणीं क्लेशहारिणीम्।
सर्वश्रेयस्करीं सीतां नतोऽहं रामवल्लभाम्॥५॥
यन्मायावशवर्तिं विश्वमखिलं ब्रह्मादिदेवासुरा
यत्सत्वादमृषैव भाति सकलं रज्जौ यथाहेर्भ्रमः।
यत्पादप्लवमेकमेव हि भवाम्भोधेस्तितीर्षावतां
वन्देऽहं तमशेषकारणपरं रामाख्यमीशं हरिम्॥६॥
नानापुराणनिगमागमसम्मतं यद्
रामायणे निगदितं क्वचिदन्यतोऽपि।
स्वान्तःसुखाय तुलसी रघुनाथगाथा-
भाषानिबन्धमतिमञ्जुलमातनोति॥७॥


सो०-जो सुमिरत सिधि होइ गन नायक करिबर बदन।
करउ अनुग्रह सोइ बुद्धि रासि सुभ गुन सदन॥१॥
मूक होइ बाचाल पंगु चढइ गिरिबर गहन।
जासु कृपाँ सो दयाल द्रवउ सकल कलि मल दहन॥२॥
नील सरोरुह स्याम तरुन अरुन बारिज नयन।
करउ सो मम उर धाम सदा छीरसागर सयन॥३॥
कुंद इंदु सम देह उमा रमन करुना अयन।
जाहि दीन पर नेह करउ कृपा मर्दन मयन॥४॥
बंदउँ गुरु पद कंज कृपा सिंधु नररूप हरि।
महामोह तम पुंज जासु बचन रबि कर निकर॥५॥


चौ०-बंदउँ गुरु पद पदुम परागा। सुरुचि सुबास सरस अनुरागा॥
अमिय मूरिमय चूरन चारू। समन सकल भव रुज परिवारू॥१॥
सुकृति संभु तन बिमल बिभूती। मंजुल मंगल मोद प्रसूती॥
जन मन मंजु मुकुर मल हरनी। किएँ तिलक गुन गन बस करनी॥२॥
श्रीगुर पद नख मनि गन जोती। सुमिरत दिब्य दृष्टि हियँ होती॥
दलन मोह तम सो सप्रकासू। बड़े भाग उर आवइ जासू॥३॥
उघरहिं बिमल बिलोचन हिय के। मिटहिं दोष दुख भव रजनी के॥
सूझहिं राम चरित मनि मानिक। गुपुत प्रगट जहँ जो जेहि खानिक॥४॥

दो०-जथा सुअंजन अंजि दृग साधक सिद्ध सुजान।
कौतुक देखत सैल बन भूतल भूरि निधान॥१॥


चौ०-गुरु पद रज मृदु मंजुल अंजन। नयन अमिय दृग दोष बिभंजन॥
तेहिं करि बिमल बिबेक बिलोचन। बरनउँ राम चरित भव मोचन॥१॥
बंदउँ प्रथम महीसुर चरना। मोह जनित संसय सब हरना॥
सुजन समाज सकल गुन खानी। करउँ प्रनाम सप्रेम सुबानी॥२॥
साधु चरित सुभ चरित कपासू। निरस बिसद गुनमय फल जासू॥
जो सहि दुख परछिद्र दुरावा। बंदनीय जेहिं जग जस पावा॥३॥
मुद मंगलमय संत समाजू। जो जग जंगम तीरथराजू॥
राम भक्ति जहँ सुरसरि धारा। सरसइ ब्रह्म बिचार प्रचारा॥४॥
बिधि निषेधमय कलि मल हरनी। करम कथा रबिनंदनि बरनी॥
हरि हर कथा बिराजति बेनी। सुनत सकल मुद मंगल देनी॥५॥
बटु बिस्वास अचल निज धरमा। तीरथराज समाज सुकरमा॥
सबहिं सुलभ सब दिन सब देसा। सेवत सादर समन कलेसा॥६॥
अकथ अलौकिक तीरथराऊ। देइ सद्य फल प्रगट प्रभाऊ॥७॥

दो0-सुनि समुझहिं जन मुदित मन मज्जहिं अति अनुराग।
लहहिं चारि फल अछत तनु साधु समाज प्रयाग॥२॥


चौ०-मज्जन फल पेखिअ ततकाला। काक होहिं पिक बकउ मराला॥
सुनि आचरज करै जनि कोई। सतसंगति महिमा नहिं गोई॥१॥
बालमीक नारद घटजोनी। निज निज मुखनि कही निज होनी॥
जलचर थलचर नभचर नाना। जे जड़ चेतन जीव जहाना॥२॥
मति कीरति गति भूति भलाई। जब जेहिं जतन जहाँ जेहिं पाई॥
सो जानब सतसंग प्रभाऊ। लोकहुँ बेद न आन उपाऊ॥ ३॥
बिनु सतसंग बिबेक न होई। राम कृपा बिनु सुलभ न सोई॥
सतसंगत मुद मंगल मूला। सोइ फल सिधि सब साधन फूला॥४॥
सठ सुधरहिं सतसंगति पाई। पारस परस कुधात सुहाई॥
बिधि बस सुजन कुसंगत परहीं। फनि मनि सम निज गुन अनुसरहीं॥५॥
बिधि हरि हर कबि कोबिद बानी। कहत साधु महिमा सकुचानी॥
सो मो सन कहि जात न कैसें। साक बनिक मनि गुन गन जैसें॥६॥

दो०-बंदउँ संत समान चित हित अनहित नहिं कोइ।
अंजलि गत सुभ सुमन जिमि सम सुगंध कर दोइ॥३(क)॥
संत सरल चित जगत हित जानि सुभाउ सनेहु।
बालबिनय सुनि करि कृपा राम चरन रति देहु॥३(ख)॥


चौ०-बहुरि बंदि खल गन सतिभाएँ। जे बिनु काज दाहिनेहु बाएँ॥
पर हित हानि लाभ जिन्ह केरें। उजरें हरष बिषाद बसेरें॥ १॥
हरि हर जस राकेस राहु से। पर अकाज भट सहसबाहु से॥
जे पर दोष लखहिं सहसाखी। पर हित घृत जिन्ह के मन माखी॥२॥
तेज कृसानु रोष महिषेसा। अघ अवगुन धन धनी धनेसा॥
उदय केत सम हित सबही के। कुंभकरन सम सोवत नीके॥३॥
पर अकाजु लगि तनु परिहरहीं। जिमि हिम उपल कृषी दलि गरहीं॥
बंदउँ खल जस सेष सरोषा। सहस बदन बरनइ पर दोषा॥४॥
पुनि प्रनवउँ पृथुराज समाना। पर अघ सुनइ सहस दस काना॥
बहुरि सक्र सम बिनवउँ तेही। संतत सुरानीक हित जेही॥५॥
बचन बज्र जेहि सदा पिआरा। सहस नयन पर दोष निहारा॥६॥

दो०-उदासीन अरि मीत हित सुनत जरहिं खल रीति।
जानि पानि जुग जोरि जन बिनती करइ सप्रीति॥४॥


चौ०-मैं अपनी दिसि कीन्ह निहोरा। तिन्ह निज ओर न लाउब भोरा॥
बायस पलिअहिं अति अनुरागा। होहिं निरामिष कबहुँ कि कागा॥१॥
बंदउँ संत असज्जन चरना। दुखप्रद उभय बीच कछु बरना॥
बिछुरत एक प्रान हरि लेहीं। मिलत एक दुख दारुन देहीं॥२॥
उपजहिं एक संग जग माहीं। जलज जोंक जिमि गुन बिलगाहीं॥
सुधा सुरा सम साधू असाधू। जनक एक जग जलधि अगाधू॥३॥
भल अनभल निज निज करतूती। लहत सुजस अपलोक बिभूती॥
सुधा सुधाकर सुरसरि साधू। गरल अनल कलिमल सरि ब्याधू॥४॥
गुन अवगुन जानत सब कोई। जो जेहि भाव नीक तेहि सोई॥५॥

दो0-भलो भलाइहि पै लहइ लहइ निचाइहि नीचु।
सुधा सराहिअ अमरताँ गरल सराहिअ मीचु॥५॥


चौ०-खल अघ अगुन साधू गुन गाहा। उभय अपार उदधि अवगाहा॥
तेहि तें कछु गुन दोष बखाने। संग्रह त्याग न बिनु पहिचाने ॥१॥
भलेउ पोच सब बिधि उपजाए। गनि गुन दोष बेद बिलगाए॥
कहहिं बेद इतिहास पुराना। बिधि प्रपंचु गुन अवगुन साना॥२॥
दुख सुख पाप पुन्य दिन राती। साधु असाधु सुजाति कुजाती॥
दानव देव ऊँच अरु नीचू। अमिअ सुजीवनु माहुरु मीचू॥३॥
माया ब्रह्म जीव जगदीसा। लच्छि अलच्छि रंक अवनीसा॥
कासी मग सुरसरि क्रमनासा। मरु मारव महिदेव गवासा॥४॥
सरग नरक अनुराग बिरागा। निगमागम गुन दोष बिभागा ॥५॥

दो०-जड़ चेतन गुन दोषमय बिस्व कीन्ह करतार।
संत हंस गुन गहहिं पय परिहरि बारि बिकार॥६॥


चौ०-अस बिबेक जब देइ बिधाता। तब तजि दोष गुनहिं मनु राता॥
काल सुभाउ करम बरिआईं। भलेउ प्रकृति बस चुकइ भलाईं॥१॥
सो सुधारि हरिजन जिमि लेहीं। दलि दुख दोष बिमल जसु देहीं॥
खलउ करहिं भल पाइ सुसंगू। मिटइ न मलिन सुभाउ अभंगू॥२॥
लखि सुबेष जग बंचक जेऊ। बेष प्रताप पूजिअहिं तेऊ॥
उधरहिं अंत न होइ निबाहू। कालनेमि जिमि रावन राहू॥३॥
किएहुँ कुबेष साधु सनमानू। जिमि जग जामवंत हनुमानू॥
हानि कुसंग सुसंगति लाहू। लोकहुँ बेद बिदित सब काहू॥४॥
गगन चढ़इ रज पवन प्रसंगा। कीचहिं मिलइ नीच जल संगा॥
साधु असाधु सदन सुक सारीं। सुमिरहिं राम देहिं गनि गारी॥५॥
धूम कुसंगति कारिख होई। लिखिअ पुरान मंजु मसि सोई॥
सोइ जल अनल अनिल संघाता। होइ जलद जग जीवन दाता॥६॥

दो०-ग्रह भेषज जल पवन पट पाइ कुजोग सुजोग।
होहि कुबस्तु सुबस्तु जग लखहिं सुलच्छन लोग॥७(क)॥
सम प्रकास तम पाख दुहुँ नाम भेद बिधि कीन्ह।
ससि सोषक पोषक समुझि जग जस अपजस दीन्ह॥७(ख)॥
जड़ चेतन जग जीव जत सकल राममय जानि।
बंदउँ सब के पद कमल सदा जोरि जुग पानि॥७(ग)॥
देव दनुज नर नाग खग प्रेत पितर गंधर्ब।
बंदउँ किंनर रजनिचर कृपा करहु अब सर्ब॥७(घ)॥


चौ०-आकर चारि लाख चौरासी। जाति जीव जल थल नभ बासी॥
सीय राममय सब जग जानी। करउँ प्रनाम जोरि जुग पानी॥१॥
जानि कृपाकर किंकर मोहू। सब मिलि करहु छाड़ि छल छोहू॥
निज बुधि बल भरोस मोहि नाहीं। तातें बिनय करउँ सब पाही॥२॥
करन चहउँ रघुपति गुन गाहा। लघु मति मोरि चरित अवगाहा॥
सूझ न एकउ अंग उपाऊ। मन मति रंक मनोरथ राऊ॥३॥
मति अति नीच ऊँचि रुचि आछी। चहिअ अमिअ जग जुरइ न छाछी॥
छमिहहिं सज्जन मोरि ढिठाई। सुनिहहिं बालबचन मन लाई॥४॥
जौं बालक कह तोतरि बाता। सुनहिं मुदित मन पितु अरु माता॥
हँसिहहिं कूर कुटिल कुबिचारी। जे पर दूषन भूषनधारी॥५॥
निज कबित्त केहि लाग न नीका। सरस होउ अथवा अति फीका॥
जे पर भनिति सुनत हरषाहीं। ते बर पुरुष बहुत जग नाहीं॥६॥
जग बहु नर सर सरि सम भाई। जे निज बाढ़ि बढ़हिं जल पाई॥
सज्जन सकृत सिंधु सम कोई। देखि पूर बिधु बाढ़इ जोई॥७॥

दो०-भाग छोट अभिलाषु बड़ करउँ एक बिस्वास।
पैहहिं सुख सुनि सुजन सब खल करिहहिं उपहास॥८॥


चौ०-खल परिहास होइ हित मोरा। काक कहहिं कलकंठ कठोरा॥
हंसहि बक दादुर चातकही। हँसहिं मलिन खल बिमल बतकही॥१॥
कबित रसिक न राम पद नेहू। तिन्ह कहँ सुखद हास रस एहू॥
भाषा भनिति भोरि मति मोरी। हँसिबे जोग हँसें नहिं खोरी॥२॥
प्रभु पद प्रीति न सामुझि नीकी। तिन्हहि कथा सुनि लागहि फीकी॥
हरि हर पद रति मति न कुतरकी। तिन्ह कहुँ मधुर कथा रघुबर की॥३॥
राम भगति भूषित जियँ जानी। सुनिहहिं सुजन सराहि सुबानी॥
कबि न होउँ नहिं बचन प्रबीनू। सकल कला सब बिद्या हीनू॥४॥
आखर अरथ अलंकृति नाना। छंद प्रबंध अनेक बिधाना॥
भाव भेद रस भेद अपारा। कबित दोष गुन बिबिध प्रकारा॥५॥
कबित बिबेक एक नहिं मोरें। सत्य कहउँ लिखि कागद कोरे॥६॥

दो०-भनिति मोरि सब गुन रहित बिस्व बिदित गुन एक।
सो बिचारि सुनिहहिं सुमति जिन्ह कें बिमल बिवेक॥९॥


चौ०-एहि महँ रघुपति नाम उदारा। अति पावन पुरान श्रुति सारा॥
मंगल भवन अमंगल हारी। उमा सहित जेहि जपत पुरारी॥१॥
भनिति बिचित्र सुकबि कृत जोऊ। राम नाम बिनु सोह न सोऊ॥
बिधुबदनी सब भाँति सँवारी। सोह न बसन बिना बर नारी॥२॥
सब गुन रहित कुकबि कृत बानी। राम नाम जस अंकित जानी॥
सादर कहहिं सुनहिं बुध ताही। मधुकर सरिस संत गुनग्राही॥३॥
जदपि कबित रस एकउ नाहीं। राम प्रताप प्रकट एहि माहीं॥
सोइ भरोस मोरें मन आवा। केहिं न सुसंग बड़प्पनु पावा॥४॥
धूमउ तजइ सहज करुआई। अगरु प्रसंग सुगंध बसाई॥
भनिति भदेस बस्तु भलि बरनी। राम कथा जग मंगल करनी॥५॥

छं०-मंगल करनि कलि मल हरनि तुलसी कथा रघुनाथ की॥
गति कूर कबिता सरित की ज्यों सरित पावन पाथ की॥
प्रभु सुजस संगति भनिति भलि होइहि सुजन मन भावनी॥
भव अंग भूति मसान की सुमिरत सुहावनि पावनी॥

दो०-प्रिय लागिहि अति सबहि मम भनिति राम जस संग।
दारु बिचारु कि करइ कोउ बंदिअ मलय प्रसंग॥१०(क)॥
स्याम सुरभि पय बिसद अति गुनद करहिं सब पान।
गिरा ग्राम्य सिय राम जस गावहिं सुनहिं सुजान॥१०(ख)॥


चौ०-मनि मानिक मुकुता छबि जैसी। अहि गिरि गज सिर सोह न तैसी॥
नृप किरीट तरुनी तनु पाई। लहहिं सकल सोभा अधिकाई॥१॥
तैसेहिं सुकबि कबित बुध कहहीं। उपजहिं अनत अनत छबि लहहीं॥
भगति हेतु बिधि भवन बिहाई। सुमिरत सारद आवति धाई॥२॥
राम चरित सर बिनु अन्हवाएँ। सो श्रम जाइ न कोटि उपाएँ॥
कबि कोबिद अस हृदयँ बिचारी। गावहिं हरि जस कलि मल हारी॥३॥
कीन्हें प्राकृत जन गुन गाना। सिर धुनि गिरा लगत पछिताना॥
हृदय सिंधु मति सीप समाना। स्वाति सारदा कहहिं सुजाना॥४॥
जौं बरषइ बर बारि बिचारू। होहिं कबित मुकुतामनि चारू॥५॥

दो०-जुगुति बेधि पुनि पोहिअहिं रामचरित बर ताग।
पहिरहिं सज्जन बिमल उर सोभा अति अनुराग॥११॥


चौ०-जे जनमे कलिकाल कराला। करतब बायस बेष मराला॥
चलत कुपंथ बेद मग छाँड़े। कपट कलेवर कलि मल भाँड़े॥१॥
बंचक भगत कहाइ राम के। किंकर कंचन कोह काम के॥
तिन्ह महँ प्रथम रेख जग मोरी। धींग धरमध्वज धंधक धोरी॥२॥
जौं अपने अवगुन सब कहऊँ। बाढ़इ कथा पार नहिं लहऊँ॥
ताते मैं अति अलप बखाने। थोरे महुँ जानिहहिं सयाने॥३॥
समुझि बिबिधि बिधि बिनती मोरी। कोउ न कथा सुनि देइहि खोरी॥
एतेहु पर करिहहिं जे असंका। मोहि ते अधिक ते जड़ मति रंका॥४॥
कबि न होउँ नहिं चतुर कहावउँ। मति अनुरूप राम गुन गावउँ॥
कहँ रघुपति के चरित अपारा। कहँ मति मोरि निरत संसारा॥५॥
जेहिं मारुत गिरि मेरु उड़ाहीं। कहहु तूल केहि लेखे माहीं॥
समुझत अमित राम प्रभुताई। करत कथा मन अति कदराई॥६॥

दो०-सारद सेस महेस बिधि आगम निगम पुरान।
नेति नेति कहि जासु गुन करहिं निरंतर गान॥१२॥


चौ०-सब जानत प्रभु प्रभुता सोई। तदपि कहें बिनु रहा न कोई॥
तहाँ बेद अस कारन राखा। भजन प्रभाउ भाँति बहु भाषा॥१॥
एक अनीह अरूप अनामा। अज सच्चिदानंद पर धामा॥
ब्यापक बिस्वरूप भगवाना। तेहिं धरि देह चरित कृत नाना॥२॥
सो केवल भगतन हित लागी। परम कृपाल प्रनत अनुरागी॥
जेहि जन पर ममता अति छोहू। जेहिं करुना करि कीन्ह न कोहू॥३॥
गई बहोर गरीब नेवाजू। सरल सबल साहिब रघुराजू॥
बुध बरनहिं हरि जस अस जानी। करहि पुनीत सुफल निज बानी॥४॥
तेहिं बल मैं रघुपति गुन गाथा। कहिहउँ नाइ राम पद माथा॥
मुनिन्ह प्रथम हरि कीरति गाई। तेहिं मग चलत सुगम मोहि भाई॥५॥

दो०-अति अपार जे सरित बर जौं नृप सेतु कराहिं।
चढि पिपीलिकउ परम लघु बिनु श्रम पारहि जाहिं॥१३॥


चौ०-एहि प्रकार बल मनहि देखाई। करिहउँ रघुपति कथा सुहाई॥
ब्यास आदि कबि पुंगव नाना। जिन्ह सादर हरि सुजस बखाना॥१॥
चरन कमल बंदउँ तिन्ह केरे। पुरवहुँ सकल मनोरथ मेरे॥
कलि के कबिन्ह करउँ परनामा। जिन्ह बरने रघुपति गुन ग्रामा॥२॥
जे प्राकृत कबि परम सयाने। भाषाँ जिन्ह हरि चरित बखाने॥
भए जे अहहिं जे होइहहिं आगें। प्रनवउँ सबहिं कपट सब त्यागें॥३॥
होहु प्रसन्न देहु बरदानू। साधु समाज भनिति सनमानू॥
जो प्रबंध बुध नहिं आदरहीं। सो श्रम बादि बाल कबि करहीं॥४॥
कीरति भनिति भूति भलि सोई। सुरसरि सम सब कहँ हित होई॥
राम सुकीरति भनिति भदेसा। असमंजस अस मोहि अँदेसा॥५॥
तुम्हरी कृपाँ सुलभ सोउ मोरे। सिअनि सुहावनि टाट पटोरे॥६॥

दो०-सरल कबित कीरति बिमल सोइ आदरहिं सुजान।
सहज बयर बिसराइ रिपु जो सुनि करहिं बखान॥१४(क)॥
सो न होइ बिनु बिमल मति मोहि मति बल अति थोर।
करहु कृपा हरि जस कहउँ पुनि पुनि करउँ निहोर॥१४(ख)॥
कबि कोबिद रघुबर चरित मानस मंजु मराल।
बाल बिनय सुनि सुरुचि लखि मो पर होहु कृपाल॥१४(ग)॥

सो०-बंदउँ मुनि पद कंजु रामायन जेहिं निरमयउ।
सखर सुकोमल मंजु दोष रहित दूषन सहित॥१४(घ)॥
बंदउँ चारिउ बेद भव बारिधि बोहित सरिस।
जिन्हहि न सपनेहुँ खेद बरनत रघुबर बिसद जसु॥१४(ङ)॥
बंदउँ बिधि पद रेनु भव सागर जेहि कीन्ह जहँ।
संत सुधा ससि धेनु प्रगटे खल बिष बारुनी॥१४(च)॥

दो०-बिबुध बिप्र बुध ग्रह चरन बंदि कहउँ कर जोरि।
होइ प्रसन्न पुरवहु सकल मंजु मनोरथ मोरि॥१४(छ)॥


चौ०-पुनि बंदउँ सारद सुरसरिता। जुगल पुनीत मनोहर चरिता॥
मज्जन पान पाप हर एका। कहत सुनत एक हर अबिबेका॥१॥
गुर पितु मातु महेस भवानी। प्रनवउँ दीनबंधु दिन दानी॥
सेवक स्वामि सखा सिय पी के। हित निरुपधि सब बिधि तुलसी के॥२॥
कलि बिलोकि जग हित हर गिरिजा। साबर मंत्र जाल जिन्ह सिरिजा॥
अनमिल आखर अरथ न जापू। प्रगट प्रभाउ महेस प्रतापू॥३॥
सो उमेस मोहि पर अनुकूला। करिहिं कथा मुद मंगल मूला॥
सुमिरि सिवा सिव पाइ पसाऊ। बरनउँ रामचरित चित चाऊ॥४॥
भनिति मोरि सिव कृपाँ बिभाती। ससि समाज मिलि मनहुँ सुराती॥
जे एहि कथहि सनेह समेता। कहिहहिं सुनिहहिं समुझि सचेता॥५॥
होइहहिं राम चरन अनुरागी। कलि मल रहित सुमंगल भागी॥६॥

दो०-सपनेहुँ साचेहुँ मोहि पर जौं हर गौरि पसाउ।
तौ फुर होउ जो कहेउँ सब भाषा भनिति प्रभाउ॥१५॥


चौ०-बंदउँ अवध पुरी अति पावनि। सरजू सरि कलि कलुष नसावनि॥
प्रनवउँ पुर नर नारि बहोरी। ममता जिन्ह पर प्रभुहि न थोरी॥१॥
सिय निंदक अघ ओघ नसाए। लोक बिसोक बनाइ बसाए॥
बंदउँ कौसल्या दिसि प्राची। कीरति जासु सकल जग माची॥२॥
प्रगटेउ जहँ रघुपति ससि चारू। बिस्व सुखद खल कमल तुसारू॥
दसरथ राउ सहित सब रानी। सुकृत सुमंगल मूरति मानी॥३॥
करउँ प्रनाम करम मन बानी। करहु कृपा सुत सेवक जानी॥
जिन्हहि बिरचि बड़ भयउ बिधाता। महिमा अवधि राम पितु माता॥४॥

सो०-बंदउँ अवध भुआल सत्य प्रेम जेहि राम पद।
बिछुरत दीनदयाल प्रिय तनु तृन इव परिहरेउ॥१६॥


चौ०-प्रनवउँ परिजन सहित बिदेहू। जाहि राम पद गूढ़ सनेहू॥
जोग भोग महँ राखेउ गोई। राम बिलोकत प्रगटेउ सोई॥१॥
प्रनवउँ प्रथम भरत के चरना। जासु नेम ब्रत जाइ न बरना॥
राम चरन पंकज मन जासू। लुबुध मधुप इव तजइ न पासू॥२॥
बंदउँ लछिमन पद जलजाता। सीतल सुभग भगत सुख दाता॥
रघुपति कीरति बिमल पताका। दंड समान भयउ जस जाका॥३॥
सेष सहस्त्रसीस जग कारन। जो अवतरेउ भूमि भय टारन॥
सदा सो सानुकूल रह मो पर। कृपासिंधु सौमित्रि गुनाकर॥४॥
रिपुसूदन पद कमल नमामी। सूर सुसील भरत अनुगामी॥
महाबीर बिनवउँ हनुमाना। राम जासु जस आप बखाना॥५॥

सो०-प्रनवउँ पवनकुमार खल बन पावक ग्यानघन।
जासु हृदय आगार बसहिं राम सर चाप धर॥१७॥


चौ०-कपिपति रीछ निसाचर राजा। अंगदादि जे कीस समाजा॥
बंदउँ सब के चरन सुहाए। अधम सरीर राम जिन्ह पाए॥१॥
रघुपति चरन उपासक जेते। खग मृग सुर नर असुर समेते॥
बंदउँ पद सरोज सब केरे। जे बिनु काम राम के चेरे॥२॥
सुक सनकादि भगत मुनि नारद। जे मुनिबर बिग्यान बिसारद॥
प्रनवउँ सबहिं धरनि धरि सीसा। करहु कृपा जन जानि मुनीसा॥३॥
जनकसुता जग जननि जानकी। अतिसय प्रिय करुनानिधान की॥
ताके जुग पद कमल मनावउँ। जासु कृपाँ निरमल मति पावउँ॥४॥
पुनि मन बचन कर्म रघुनायक। चरन कमल बंदउँ सब लायक॥
राजिवनयन धरें धनु सायक। भगत बिपति भंजन सुख दायक॥५॥

दो०-गिरा अरथ जल बीचि सम कहिअत भिन्न न भिन्न।
बंदउँ सीता राम पद जिन्हहि परम प्रिय खिन्न॥१८॥


चौ०-बंदउँ नाम राम रघुवर को। हेतु कृसानु भानु हिमकर को॥
बिधि हरि हरमय बेद प्रान सो। अगुन अनूपम गुन निधान सो॥१॥
महामंत्र जोइ जपत महेसू। कासीं मुकुति हेतु उपदेसू॥
महिमा जासु जान गनराउ। प्रथम पूजिअत नाम प्रभाऊ॥२॥
जान आदिकबि नाम प्रतापू। भयउ सुद्ध करि उलटा जापू॥
सहस नाम सम सुनि सिव बानी। जपि जेईं पिय संग भवानी॥३॥
हरषे हेतु हेरि हर ही को। किय भूषन तिय भूषन ती को॥
नाम प्रभाउ जान सिव नीको। कालकूट फलु दीन्ह अमी को॥४॥

दो०-बरषा रितु रघुपति भगति तुलसी सालि सुदास॥
राम नाम बर बरन जुग सावन भादव मास॥१९॥


चौ०-आखर मधुर मनोहर दोऊ। बरन बिलोचन जन जिय जोऊ॥
सुमिरत सुलभ सुखद सब काहू। लोक लाहु परलोक निबाहू॥१॥
कहत सुनत सुमिरत सुठि नीके। राम लखन सम प्रिय तुलसी के॥
बरनत बरन प्रीति बिलगाती। ब्रह्म जीव सम सहज सँघाती॥२॥
नर नारायन सरिस सुभ्राता। जग पालक बिसेषि जन त्राता॥
भगति सुतिय कल करन बिभूषन। जग हित हेतु बिमल बिधु पूषन॥३॥
स्वाद तोष सम सुगति सुधा के। कमठ सेष सम धर बसुधा के॥
जन मन मंजु कंज मधुकर से। जीह जसोमति हरि हलधर से॥४॥

दो०--एकु छत्रु एकु मुकुटमनि सब बरननि पर जोउ।
तुलसी रघुबर नाम के बरन बिराजत दोउ॥२०॥


चौ०-समुझत सरिस नाम अरु नामी। प्रीति परसपर प्रभु अनुगामी॥
नाम रूप दुइ ईस उपाधी। अकथ अनादि सुसामुझि साधी॥१॥
को बड़ छोट कहत अपराधू। सुनि गुन भेद समुझिहहिं साधू॥
देखिअहिं रूप नाम आधीना। रूप ग्यान नहिं नाम बिहीना॥२॥
रूप बिसेष नाम बिनु जानें। करतल गत न परहिं पहिचानें॥
सुमिरिअ नाम रूप बिनु देखें। आवत हृदयँ सनेह बिसेषें॥३॥
नाम रूप गति अकथ कहानी। समुझत सुखद न परति बखानी॥
अगुन सगुन बिच नाम सुसाखी। उभय प्रबोधक चतुर दुभाषी॥४॥

दो०-राम नाम मनिदीप धरु जीह देहरी द्वार।
तुलसी भीतर बाहेरहुँ जौं चाहसि उजिआर॥२१॥


चौ०-नाम जीहँ जपि जागहिं जोगी। बिरति बिरंचि प्रपंच बियोगी॥
ब्रह्मसुखहि अनुभवहिं अनूपा। अकथ अनामय नाम न रूपा॥१॥
जाना चहहिं गूढ़ गति जेऊ। नाम जीहँ जपि जानहिं तेऊ॥
साधक नाम जपहिं लय लाएँ। होहिं सिद्ध अनिमादिक पाएँ॥२॥
जपहिं नामु जन आरत भारी। मिटहिं कुसंकट होहिं सुखारी॥
राम भगत जग चारि प्रकारा। सुकृती चारिउ अनघ उदारा॥३॥
चहू चतुर कहुँ नाम अधारा। ग्यानी प्रभुहि बिसेषि पिआरा॥
चहुँ जुग चहुँ श्रुति नाम प्रभाऊ। कलि बिसेषि नहिं आन उपाऊ॥४॥

दो०-सकल कामना हीन जे राम भगति रस लीन।
नाम सुप्रेम पियूष हद तिन्हहुँ किए मन मीन॥२२॥


चौ०-अगुन सगुन दुइ ब्रह्म सरूपा। अकथ अगाध अनादि अनूपा॥
मोरें मत बड़ नामु दुहू तें। किए जेहिं जुग निज बस निज बूतें॥१॥
प्रौढ़ि सुजन जनि जानहिं जन की। कहउँ प्रतीति प्रीति रुचि मन की॥
एकु दारुगत देखिअ एकू। पावक सम जुग ब्रह्म बिबेकू॥२॥
उभय अगम जुग सुगम नाम तें। कहेउँ नामु बड़ ब्रह्म राम तें॥
ब्यापकु एकु ब्रह्म अबिनासी। सत चेतन घन आनँद रासी॥३॥
अस प्रभु हृदयँ अछत अबिकारी। सकल जीव जग दीन दुखारी॥
नाम निरूपन नाम जतन तें। सोउ प्रगटत जिमि मोल रतन तें॥४॥

दो०-निरगुन तें एहि भाँति बड़ नाम प्रभाउ अपार।
कहउँ नामु बड़ राम तें निज बिचार अनुसार॥२३॥


चौ०-राम भगत हित नर तनु धारी। सहि संकट किए साधु सुखारी॥
नामु सप्रेम जपत अनयासा। भगत होहिं मुद मंगल बासा॥१॥
राम एक तापस तिय तारी। नाम कोटि खल कुमति सुधारी॥
रिषि हित राम सुकेतुसुता की। सहित सेन सुत कीन्ह बिबाकी॥२॥
सहित दोष दुख दास दुरासा। दलइ नामु जिमि रबि निसि नासा॥
भंजेउ राम आपु भव चापू। भव भय भंजन नाम प्रतापू॥३॥
दंडक बनु प्रभु कीन्ह सुहावन। जन मन अमित नाम किए पावन॥।
निसिचर निकर दले रघुनंदन। नामु सकल कलि कलुष निकंदन॥४॥

दो०-सबरी गीध सुसेवकनि सुगति दीन्हि रघुनाथ।
नाम उधारे अमित खल बेद बिदित गुन गाथ॥२४॥


चौ०-राम सुकंठ बिभीषन दोऊ। राखे सरन जान सबु कोऊ॥
नाम गरीब अनेक नेवाजे। लोक बेद बर बिरिद बिराजे॥१॥
राम भालु कपि कटकु बटोरा। सेतु हेतु श्रमु कीन्ह न थोरा॥
नामु लेत भवसिंधु सुखाहीं। करहु बिचारु सुजन मन माहीं॥२॥
राम सकुल रन रावनु मारा। सीय सहित निज पुर पगु धारा॥
राजा रामु अवध रजधानी। गावत गुन सुर मुनि बर बानी॥३॥
सेवक सुमिरत नामु सप्रीती। बिनु श्रम प्रबल मोह दलु जीती॥
फिरत सनेहँ मगन सुख अपनें। नाम प्रसाद सोच नहिं सपनें॥४॥

दो०-ब्रह्म राम तें नामु बड़ बर दायक बर दानि।
रामचरित सत कोटि महँ लिय महेस जियँ जानि॥२५॥

मासपारायण, पहला विश्राम

चौ०-नाम प्रसाद संभु अबिनासी। साजु अमंगल मंगल रासी॥
सुक सनकादि सिद्ध मुनि जोगी। नाम प्रसाद ब्रह्मसुख भोगी॥१॥
नारद जानेउ नाम प्रतापू। जग प्रिय हरि हरि हर प्रिय आपू॥
नामु जपत प्रभु कीन्ह प्रसादू। भगत सिरोमनि भे प्रहलादू॥२॥
ध्रुवँ सगलानि जपेउ हरि नाऊँ। पायउ अचल अनूपम ठाऊँ॥
सुमिरि पवनसुत पावन नामू। अपने बस करि राखे रामू॥३॥
अपतु अजामिलु गजु गनिकाऊ। भए मुकुत हरि नाम प्रभाऊ॥
कहौं कहाँ लगि नाम बड़ाई। रामु न सकहिं नाम गुन गाई॥४॥

दो०-नामु राम को कलपतरु कलि कल्यान निवासु।
जो सुमिरत भयो भाँग तें तुलसी तुलसीदासु॥२६॥


चौ०-चहुँ जुग तीनि काल तिहुँ लोका। भए नाम जपि जीव बिसोका॥
बेद पुरान संत मत एहू। सकल सुकृत फल राम सनेहू॥१॥
ध्यानु प्रथम जुग मख बिधि दूजें। द्वापर परितोषत प्रभु पूजें॥
कलि केवल मल मूल मलीना। पाप पयोनिधि जन मन मीना॥२॥
नाम कामतरु काल कराला। सुमिरत समन सकल जग जाला॥
राम नाम कलि अभिमत दाता। हित परलोक लोक पितु माता॥३॥
नहिं कलि करम न भगति बिबेकू। राम नाम अवलंबन एकू॥
कालनेमि कलि कपट निधानू। नाम सुमति समरथ हनुमानू॥४॥

दो०-राम नाम नरकेसरी कनककसिपु कलिकाल।
जापक जन प्रहलाद जिमि पालिहि दलि सुरसाल॥२७॥


चौ०-भायँ कुभायँ अनख आलसहूँ। नाम जपत मंगल दिसि दसहूँ॥
सुमिरि सो नाम राम गुन गाथा। करउँ नाइ रघुनाथहि माथा॥१॥
मोरि सुधारिहि सो सब भाँती। जासु कृपा नहिं कृपाँ अघाती॥
राम सुस्वामि कुसेवकु मोसो। निज दिसि देखि दयानिधि पोसो॥२॥
लोकहुँ बेद सुसाहिब रीतीं। बिनय सुनत पहिचानत प्रीती॥
गनी गरीब ग्राम नर नागर। पंडित मूढ़ मलीन उजागर॥३॥
सुकबि कुकबि निज मति अनुहारी। नृपहि सराहत सब नर नारी॥
साधु सुजान सुसील नृपाला। ईस अंस भव परम कृपाला॥४॥
सुनि सनमानहिं सबहि सुबानी। भनिति भगति नति गति पहिचानी॥
यह प्राकृत महिपाल सुभाऊ। जान सिरोमनि कोसलराऊ॥५॥
रीझत राम सनेह निसोतें। को जग मंद मलिनमति मोतें॥६॥

दो०-सठ सेवक की प्रीति रुचि रखिहहिं राम कृपालु।
उपल किए जलजान जेहिं सचिव सुमति कपि भालु॥२८(क)॥
हौंहु कहावत सबु कहत राम सहत उपहास।
साहिब सीतानाथ सो सेवक तुलसीदास॥२८(ख)॥


चौ०-अति बड़ि मोरि ढिठाई खोरी। सुनि अघ नरकहुँ नाक सकोरी॥
समुझि सहम मोहि अपडर अपनें। सो सुधि राम कीन्हि नहिं सपनें॥१॥
सुनि अवलोकि सुचित चख चाही। भगति मोरि मति स्वामि सराही॥
कहत नसाइ होइ हियँ नीकी। रीझत राम जानि जन जी की॥२॥
रहति न प्रभु चित चूक किए की। करत सुरति सय बार हिए की॥
जेहिं अघ बधेउ ब्याध जिमि बाली। फिरि सुकंठ सोइ कीन्ह कुचाली॥३॥
सोइ करतूति बिभीषन केरी। सपनेहुँ सो न राम हियँ हेरी॥
ते भरतहि भेंटत सनमाने। राजसभाँ रघुबीर बखाने॥४॥

दो0-प्रभु तरु तर कपि डार पर ते किए आपु समान॥
तुलसी कहूँ न राम से साहिब सीलनिधान॥२९(क)॥
राम निकाईं रावरी है सबही को नीक।
जों यह साँची है सदा तौ नीको तुलसीक॥२९(ख)॥
एहि बिधि निज गुन दोष कहि सबहि बहुरि सिरु नाइ।
बरनउँ रघुबर बिसद जसु सुनि कलि कलुष नसाइ॥२९(ग)॥


चौ०-जागबलिक जो कथा सुहाई। भरद्वाज मुनिबरहि सुनाई॥
कहिहउँ सोइ संबाद बखानी। सुनहुँ सकल सज्जन सुखु मानी॥१॥
संभु कीन्ह यह चरित सुहावा। बहुरि कृपा करि उमहि सुनावा॥
सोइ सिव कागभुसुंडिहि दीन्हा। राम भगत अधिकारी चीन्हा॥२॥
तेहि सन जागबलिक पुनि पावा। तिन्ह पुनि भरद्वाज प्रति गावा॥
ते श्रोता बकता समसीला। सवँदरसी जानहिं हरिलीला॥३॥
जानहिं तीनि काल निज ग्याना। करतल गत आमलक समाना॥
औरउ जे हरिभगत सुजाना। कहहिं सुनहिं समुझहिं बिधि नाना॥४॥

दो०-मैं पुनि निज गुर सन सुनी कथा सो सूकरखेत।
समुझी नहिं तसि बालपन तब अति रहेउँ अचेत॥३०(क)॥
श्रोता बकता ग्याननिधि कथा राम कै गूढ़।
किमि समुझौं मैं जीव जड़ कलि मल ग्रसित बिमूढ़॥३०(ख)॥


चौ०-तदपि कही गुर बारहिं बारा। समुझि परी कछु मति अनुसारा॥
भाषाबद्ध करबि मैं सोई। मोरें मन प्रबोध जेहिं होई॥१॥
जस कछु बुधि बिबेक बल मेरें। तस कहिहउँ हियँ हरि के प्रेरें॥
निज संदेह मोह भ्रम हरनी। करउँ कथा भव सरिता तरनी॥२॥
बुध बिश्राम सकल जन रंजनि। रामकथा कलि कलुष बिभंजनि॥
रामकथा कलि पंनग भरनी। पुनि बिबेक पावक कहुँ अरनी॥३॥
रामकथा कलि कामद गाई। सुजन सजीवनि मूरि सुहाई॥
सोइ बसुधातल सुधा तरंगिनि। भय भंजनि भ्रम भेक भुअंगिनि॥४॥
असुर सेन सम नरक निकंदिनि। साधु बिबुध कुल हित गिरिनंदिनि॥
संत समाज पयोधि रमा सी। बिस्व भार भर अचल छमा सी॥५॥
जम गन मुहँ मसि जग जमुना सी। जीवन मुकुति हेतु जनु कासी॥
रामहि प्रिय पावनि तुलसी सी। तुलसिदास हित हियँ हुलसी सी॥६॥
सिवप्रिय मेकल सैल सुता सी। सकल सिद्धि सुख संपति रासी॥
सदगुन सुरगन अंब अदिति सी। रघुबर भगति प्रेम परमिति सी॥७॥

दो०- राम कथा मंदाकिनी चित्रकूट चित चारु।
तुलसी सुभग सनेह बन सिय रघुबीर बिहारु॥३१॥


चौ०-राम चरित चिंतामनि चारू। संत सुमति तिय सुभग सिंगारू॥
जग मंगल गुनग्राम राम के। दानि मुकुति धन धरम धाम के॥१॥
सदगुर ग्यान बिराग जोग के। बिबुध बैद भव भीम रोग के॥
जननि जनक सिय राम प्रेम के। बीज सकल ब्रत धरम नेम के॥२॥
समन पाप संताप सोक के। प्रिय पालक परलोक लोक के॥
सचिव सुभट भूपति बिचार के। कुंभज लोभ उदधि अपार के॥३॥
काम कोह कलिमल करिगन के। केहरि सावक जन मन बन के॥
अतिथि पूज्य प्रियतम पुरारि के। कामद घन दारिद दवारि के॥४॥
मंत्र महामनि बिषय ब्याल के। मेटत कठिन कुअंक भाल के॥
हरन मोह तम दिनकर कर से। सेवक सालि पाल जलधर से॥५॥
अभिमत दानि देवतरु बर से। सेवत सुलभ सुखद हरि हर से॥
सुकबि सरद नभ मन उडगन से। रामभगत जन जीवन धन से॥६॥
सकल सुकृत फल भूरि भोग से। जग हित निरुपधि साधु लोग से॥
सेवक मन मानस मराल से। पावन गंग तंरग माल से॥७॥

दो०-कुपथ कुतरक कुचालि कलि कपट दंभ पाषंड।
दहन राम गुन ग्राम जिमि इंधन अनल प्रचंड॥३२(क)॥
रामचरित राकेस कर सरिस सुखद सब काहु।
सज्जन कुमुद चकोर चित हित बिसेषि बड़ लाहु॥३२(ख)॥


चौ०-कीन्हि प्रस्न जेहि भाँति भवानी। जेहि बिधि संकर कहा बखानी॥
सो सब हेतु कहब मैं गाई। कथा प्रबंध बिचित्र बनाई॥१॥
जेहि यह कथा सुनी नहिं होई। जनि आचरजु करैं सुनि सोई॥
कथा अलौकिक सुनहिं जे ग्यानी। नहिं आचरजु करहिं अस जानी॥२॥
रामकथा कै मिति जग नाहीं। असि प्रतीति तिन्ह के मन माहीं॥
नाना भाँति राम अवतारा। रामायन सत कोटि अपारा॥३॥
कलप भेद हरिचरित सुहाए। भाँति अनेक मुनीसन्ह गाए॥
करिअ न संसय अस उर आनी। सुनिअ कथा सादर रति मानी॥४॥

दो०-राम अनंत अनंत गुन अमित कथा बिस्तार।
सुनि आचरजु न मानिहहिं जिन्ह कें बिमल बिचार॥३३॥


चौ०-एहि बिधि सब संसय करि दूरी। सिर धरि गुर पद पंकज धूरी॥
पुनि सबही बिनवउँ कर जोरी। करत कथा जेहिं लाग न खोरी॥१॥
सादर सिवहि नाइ अब माथा। बरनउँ बिसद राम गुन गाथा॥
संबत सोरह सै एकतीसा। करउँ कथा हरि पद धरि सीसा॥२॥
नौमी भौम बार मधु मासा। अवधपुरीं यह चरित प्रकासा॥
जेहि दिन राम जनम श्रुति गावहिं। तीरथ सकल तहाँ चलि आवहिं॥३॥
असुर नाग खग नर मुनि देवा। आइ करहिं रघुनायक सेवा॥
जन्म महोत्सव रचहिं सुजाना। करहिं राम कल कीरति गाना॥४॥

दो०-मज्जहिं सज्जन बृंद बहु पावन सरजू नीर।
जपहिं राम धरि ध्यान उर सुंदर स्याम सरीर॥३४॥


चौ०-दरस परस मज्जन अरु पाना। हरइ पाप कह बेद पुराना॥
नदी पुनीत अमित महिमा अति। कहि न सकइ सारद बिमल मति॥१॥
राम धामदा पुरी सुहावनि। लोक समस्त बिदित अति पावनि॥
चारि खानि जग जीव अपारा। अवध तजें तनु नहिं संसारा॥२॥
सब बिधि पुरी मनोहर जानी। सकल सिद्धिप्रद मंगल खानी॥
बिमल कथा कर कीन्ह अरंभा। सुनत नसाहिं काम मद दंभा॥३॥
रामचरितमानस एहि नामा। सुनत श्रवन पाइअ बिश्रामा॥
मन करि विषय अनल बन जरई। होइ सुखी जौ एहिं सर परई॥४॥
रामचरितमानस मुनि भावन। बिरचेउ संभु सुहावन पावन॥
त्रिबिध दोष दुख दारिद दावन। कलि कुचालि कुलि कलुष नसावन॥५॥
रचि महेस निज मानस राखा। पाइ सुसमउ सिवा सन भाषा॥
तातें रामचरितमानस बर। धरेउ नाम हियँ हेरि हरषि हर॥६॥
कहउँ कथा सोइ सुखद सुहाई। सादर सुनहु सुजन मन लाई॥७॥

दो०-जस मानस जेहि बिधि भयउ जग प्रचार जेहि हेतु।
अब सोइ कहउँ प्रसंग सब सुमिरि उमा बृषकेतु॥३५॥


चौ०-संभु प्रसाद सुमति हियँ हुलसी। रामचरितमानस कबि तुलसी॥
करइ मनोहर मति अनुहारी। सुजन सुचित सुनि लेहु सुधारी॥१॥
सुमति भूमि थल हृदय अगाधू। बेद पुरान उदधि घन साधू॥
बरषहिं राम सुजस बर बारी। मधुर मनोहर मंगलकारी॥२॥
लीला सगुन जो कहहिं बखानी। सोइ स्वच्छता करइ मल हानी॥
प्रेम भगति जो बरनि न जाई। सोइ मधुरता सुसीतलताई॥३॥
सो जल सुकृत सालि हित होई। राम भगत जन जीवन सोई॥
मेधा महि गत सो जल पावन। सकिलि श्रवन मग चलेउ सुहावन॥४॥
भरेउ सुमानस सुथल थिराना। सुखद सीत रुचि चारु चिराना॥५॥

दो०-सुठि सुंदर संबाद बर बिरचे बुद्धि बिचारि।
तेइ एहि पावन सुभग सर घाट मनोहर चारि॥३६॥


चौ०-सप्त प्रबन्ध सुभग सोपाना। ग्यान नयन निरखत मन माना॥
रघुपति महिमा अगुन अबाधा। बरनब सोइ बर बारि अगाधा॥१॥
राम सीय जस सलिल सुधासम। उपमा बीचि बिलास मनोरम॥
पुरइनि सघन चारु चौपाई। जुगुति मंजु मनि सीप सुहाई॥२॥
छंद सोरठा सुंदर दोहा। सोइ बहुरंग कमल कुल सोहा॥
अरथ अनूप सुभाव सुभासा। सोइ पराग मकरंद सुबासा॥३॥
सुकृत पुंज मंजुल अलि माला। ग्यान बिराग बिचार मराला॥
धुनि अवरेब कबित गुन जाती। मीन मनोहर ते बहुभाँती॥४॥
अरथ धरम कामादिक चारी। कहब ग्यान बिग्यान बिचारी॥
नव रस जप तप जोग बिरागा। ते सब जलचर चारु तड़ागा॥५॥
सुकृती साधु नाम गुन गाना। ते बिचित्र जल बिहग समाना॥
संतसभा चहुँ दिसि अवँराई। श्रद्धा रितु बसंत सम गाई॥६॥
भगति निरुपन बिबिध बिधाना। छमा दया दम लता बिताना॥
सम जम नियम फूल फल ग्याना। हरि पत रति रस बेद बखाना॥७॥
औरउ कथा अनेक प्रसंगा। तेइ सुक पिक बहुबरन बिहंगा॥८॥

दो०-पुलक बाटिका बाग बन सुख सुबिहंग बिहारु।
माली सुमन सनेह जल सींचत लोचन चारु॥३७॥


चौ०-जे गावहिं यह चरित सँभारे। तेइ एहि ताल चतुर रखवारे॥
सदा सुनहिं सादर नर नारी। तेइ सुरबर मानस अधिकारी॥१॥
अति खल जे बिषई बग कागा। एहिं सर निकट न जाहिं अभागा॥
संबुक भेक सेवार समाना। इहाँ न बिषय कथा रस नाना॥२॥
तेहि कारन आवत हियँ हारे। कामी काक बलाक बिचारे॥
आवत एहिं सर अति कठिनाई। राम कृपा बिनु आइ न जाई॥३॥
कठिन कुसंग कुपंथ कराला। तिन्ह के बचन बाघ हरि ब्याला॥
गृह कारज नाना जंजाला। ते अति दुर्गम सैल बिसाला॥४॥
बन बहु बिषम मोह मद माना। नदीं कुतर्क भयंकर नाना॥५॥

दो०-जे श्रद्धा संबल रहित नहि संतन्ह कर साथ।
तिन्ह कहुँ मानस अगम अति जिन्हहि न प्रिय रघुनाथ॥३८॥


चौ०-जौं करि कष्ट जाइ पुनि कोई। जातहिं नींद जुड़ाई होई॥
जड़ता जाड़ बिषम उर लागा। गएहुँ न मज्जन पाव अभागा॥१॥
करि न जाइ सर मज्जन पाना। फिरि आवइ समेत अभिमाना॥
जौं बहोरि कोउ पूछन आवा। सर निंदा करि ताहि बुझावा॥२॥
सकल बिघ्न ब्यापहि नहिं तेही। राम सुकृपाँ बिलोकहिं जेही॥
सोइ सादर सर मज्जनु करई। महा घोर त्रयताप न जरई॥३॥
ते नर यह सर तजहिं न काऊ। जिन्ह के राम चरन भल भाऊ॥
जो नहाइ चह एहिं सर भाई। सो सतसंग करउ मन लाई॥४॥
अस मानस मानस चख चाही। भइ कबि बुद्धि बिमल अवगाही॥
भयउ हृदयँ आनंद उछाहू। उमगेउ प्रेम प्रमोद प्रबाहू॥५॥
चली सुभग कबिता सरिता सो। राम बिमल जस जल भरिता सो॥
सरजू नाम सुमंगल मूला। लोक बेद मत मंजुल कूला॥६॥
नदी पुनीत सुमानस नंदिनि। कलिमल तृन तरु मूल निकंदिनि॥७॥

दो०-श्रोता त्रिबिध समाज पुर ग्राम नगर दुहुँ कूल।
संतसभा अनुपम अवध सकल सुमंगल मूल॥३९॥


चौ०-रामभगति सुरसरितहि जाई। मिली सुकीरति सरजु सुहाई॥
सानुज राम समर जसु पावन। मिलेउ महानदु सोन सुहावन॥१॥
जुग बिच भगति देवधुनि धारा। सोहति सहित सुबिरति बिचारा॥
त्रिबिध ताप त्रासक तिमुहानी। राम सरुप सिंधु समुहानी॥२॥
मानस मूल मिली सुरसरिही। सुनत सुजन मन पावन करिही॥
बिच बिच कथा बिचित्र बिभागा। जनु सरि तीर तीर बन बागा॥३॥
उमा महेस बिबाह बराती। ते जलचर अगनित बहुभाँती॥
रघुबर जनम अनंद बधाई। भवँर तरंग मनोहरताई॥४॥

दो०-बालचरित चहु बंधु के बनज बिपुल बहुरंग।
नृप रानी परिजन सुकृत मधुकर बारिबिहंग॥४०॥


चौ०-सीय स्वयंबर कथा सुहाई। सरित सुहावनि सो छबि छाई॥
नदी नाव पटु प्रस्न अनेका। केवट कुसल उतर सबिबेका॥१॥
सुनि अनुकथन परस्पर होई। पथिक समाज सोह सरि सोई॥
घोर धार भृगुनाथ रिसानी। घाट सुबद्ध राम बर बानी॥२॥
सानुज राम बिबाह उछाहू। सो सुभ उमग सुखद सब काहू॥
कहत सुनत हरषहिं पुलकाहीं। ते सुकृती मन मुदित नहाहीं॥३॥
राम तिलक हित मंगल साजा। परब जोग जनु जुरे समाजा॥
काई कुमति केकई केरी। परी जासु फल बिपति घनेरी॥४॥

दो०-समन अमित उतपात सब भरतचरित जपजाग।
कलि अघ खल अवगुन कथन ते जलमल बग काग॥४१॥


चौ०-कीरति सरित छहूँ रितु रूरी। समय सुहावनि पावनि भूरी॥
हिम हिमसैलसुता सिव ब्याहू। सिसिर सुखद प्रभु जनम उछाहू॥१॥
बरनब राम बिबाह समाजू। सो मुद मंगलमय रितुराजू॥
ग्रीषम दुसह राम बनगवनू। पंथकथा खर आतप पवनू॥२॥
बरषा घोर निसाचर रारी। सुरकुल सालि सुमंगलकारी॥
राम राज सुख बिनय बड़ाई। बिसद सुखद सोइ सरद सुहाई॥३॥
सती सिरोमनि सिय गुनगाथा। सोइ गुन अमल अनूपम पाथा॥
भरत सुभाउ सुसीतलताई। सदा एकरस बरनि न जाई॥४॥

दो०- अवलोकनि बोलनि मिलनि प्रीति परसपर हास।
भायप भलि चहु बंधु की जल माधुरी सुबास॥४२॥


चौ०-आरति बिनय दीनता मोरी। लघुता ललित सुबारि न थोरी॥
अदभुत सलिल सुनत गुनकारी। आस पिआस मनोमल हारी॥१॥
राम सुप्रेमहि पोषत पानी। हरत सकल कलि कलुष गलानी॥
भव श्रम सोषक तोषक तोषा। समन दुरित दुख दारिद दोषा॥२॥
काम कोह मद मोह नसावन। बिमल बिबेक बिराग बढ़ावन॥
सादर मज्जन पान किए तें। मिटहिं पाप परिताप हिए तें॥३॥
जिन्ह एहिं बारि न मानस धोए। ते कायर कलिकाल बिगोए॥
तृषित निरखि रबि कर भव बारी। फिरिहहि मृग जिमि जीव दुखारी॥४॥

दो०-मति अनुहारि सुबारि गुन गनि मन अन्हवाइ।
सुमिरि भवानी संकरहि कह कबि कथा सुहाइ॥४३(क)॥
अब रघुपति पद पंकरुह हियँ धरि पाइ प्रसाद ।
कहउँ जुगल मुनिबर्ज कर मिलन सुभग संबाद॥४३(ख)॥


चौ०-भरद्वाज मुनि बसहिं प्रयागा। तिन्हहि राम पद अति अनुरागा॥
तापस सम दम दया निधाना। परमारथ पथ परम सुजाना॥१॥
माघ मकरगत रबि जब होई। तीरथपतिहिं आव सब कोई॥
देव दनुज किंनर नर श्रेनीं। सादर मज्जहिं सकल त्रिबेनीं॥२॥
पूजहि माधव पद जलजाता। परसि अखय बटु हरषहिं गाता॥
भरद्वाज आश्रम अति पावन। परम रम्य मुनिबर मन भावन॥३॥
तहाँ होइ मुनि रिषय समाजा। जाहिं जे मज्जन तीरथराजा॥
मज्जहिं प्रात समेत उछाहा। कहहिं परसपर हरि गुन गाहा॥४॥

दो०-ब्रह्म निरूपम धरम बिधि बरनहिं तत्त्व बिभाग।
कहहिं भगति भगवंत कै संजुत ग्यान बिराग॥४४॥


चौ०-एहि प्रकार भरि माघ नहाहीं। पुनि सब निज निज आश्रम जाहीं॥
प्रति संबत अति होइ अनंदा। मकर मज्जि गवनहिं मुनिबृंदा॥१॥
एक बार भरि मकर नहाए। सब मुनीस आश्रमन्ह सिधाए॥
जागबलिक मुनि परम बिबेकी। भरव्दाज राखे पद टेकी॥२॥
सादर चरन सरोज पखारे। अति पुनीत आसन बैठारे॥
करि पूजा मुनि सुजस बखानी। बोले अति पुनीत मृदु बानी॥३॥
नाथ एक संसउ बड़ मोरें। करगत बेदतत्त्व सबु तोरें॥
कहत सो मोहि लागत भय लाजा। जौ न कहउँ बड़ होइ अकाजा॥४॥

दो०-संत कहहि असि नीति प्रभु श्रुति पुरान मुनि गाव।
होइ न बिमल बिबेक उर गुर सन किएँ दुराव॥४५॥


चौ०-अस बिचारि प्रगटउँ निज मोहू। हरहु नाथ करि जन पर छोहू॥
राम नाम कर अमित प्रभावा। संत पुरान उपनिषद गावा॥१॥
संतत जपत संभु अबिनासी। सिव भगवान ग्यान गुन रासी॥
आकर चारि जीव जग अहहीं। कासीं मरत परम पद लहहीं॥२॥
सोपि राम महिमा मुनिराया। सिव उपदेसु करत करि दाया॥
रामु कवन प्रभु पूछउँ तोही । कहिअ बुझाइ कृपानिधि मोही॥३॥
एक राम अवधेस कुमारा। तिन्ह कर चरित बिदित संसारा॥
नारि बिरहँ दुखु लहेउ अपारा। भयहु रोषु रन रावनु मारा॥४॥

दो०-प्रभु सोइ राम कि अपर कोउ जाहि जपत त्रिपुरारि।
सत्यधाम सर्बग्य तुम्ह कहहु बिबेकु बिचारि॥४६॥


चौ०-जैसे मिटै मोर भ्रम भारी। कहहु सो कथा नाथ बिस्तारी॥
जागबलिक बोले मुसुकाई। तुम्हहि बिदित रघुपति प्रभुताई॥१॥
राममगत तुम्ह मन क्रम बानी। चतुराई तुम्हारि मैं जानी॥
चाहहु सुनै राम गुन गूढ़ा। कीन्हिहु प्रस्न मनहुँ अति मूढ़ा॥२॥
तात सुनहु सादर मनु लाई। कहउँ राम कै कथा सुहाई॥
महामोहु महिषेसु बिसाला। रामकथा कालिका कराला॥३॥
रामकथा ससि किरन समाना। संत चकोर करहिं जेहि पाना॥
ऐसेइ संसय कीन्ह भवानी। महादेव तब कहा बखानी॥४॥

दो०-कहउँ सो मति अनुहारि अब उमा संभु संबाद।
भयउ समय जेहि हेतु जेहि सुनु मुनि मिटिहि बिषाद॥४७॥


चौ०-एक बार त्रेता जुग माहीं। संभु गए कुंभज रिषि पाहीं॥
संग सती जगजननि भवानी। पूजे रिषि अखिलेस्वर जानी॥१॥
रामकथा मुनिबर्ज बखानी। सुनी महेस परम सुखु मानी॥
रिषि पूछी हरिभगति सुहाई। कही संभु अधिकारी पाई॥२॥
कहत सुनत रघुपति गुन गाथा। कछु दिन तहाँ रहे गिरिनाथा॥
मुनि सन बिदा मागि त्रिपुरारी। चले भवन सँग दच्छकुमारी॥३॥
तेहि अवसर भंजन महिभारा। हरि रघुबंस लीन्ह अवतारा॥
पिता बचन तजि राजु उदासी। दंडक बन बिचरत अबिनासी॥४॥

दो०-ह्दयँ बिचारत जात हर केहि बिधि दरसनु होइ।
गुप्त रुप अवतरेउ प्रभु गएँ जान सबु कोइ॥४८(क)॥


सो०-संकर उर अति छोभु सती न जानहिं मरमु सोइ॥
तुलसी दरसन लोभु मन डरु लोचन लालची॥४८(ख)॥


चौ०-रावन मरन मनुज कर जाचा। प्रभु बिधि बचनु कीन्ह चह साचा॥
जौं नहिं जाउँ रहइ पछितावा। करत बिचारु न बनत बनावा॥१॥
एहि बिधि भए सोचबस ईसा। तेहि समय जाइ दससीसा॥
लीन्ह नीच मारीचहि संगा। भयउ तुरत सोइ कपट कुरंगा॥२॥
करि छलु मूढ़ हरी बैदेही। प्रभु प्रभाउ तस बिदित न तेही॥
मृग बधि बन्धु सहित हरि आए। आश्रमु देखि नयन जल छाए॥३॥
बिरह बिकल नर इव रघुराई। खोजत बिपिन फिरत दोउ भाई॥
कबहूँ जोग बियोग न जाकें। देखा प्रगट बिरह दुख ताकें॥४॥

दो०-अति विचित्र रघुपति चरित जानहिं परम सुजान।
जे मतिमंद बिमोह बस हृदयँ धरहिं कछु आन॥४९॥


चौ०-संभु समय तेहि रामहि देखा। उपजा हियँ अति हरषु बिसेषा॥
भरि लोचन छबिसिंधु निहारी। कुसमय जानि न कीन्हि चिन्हारी॥१॥
जय सच्चिदानंद जग पावन। अस कहि चलेउ मनोज नसावन॥
चले जात सिव सती समेता। पुनि पुनि पुलकत कृपानिकेता॥२॥
सतीं सो दसा संभु कै देखी। उर उपजा संदेहु बिसेषी॥
संकरु जगतबंद्य जगदीसा। सुर नर मुनि सब नावत सीसा॥३॥
तिन्ह नृपसुतहि कीन्ह परनामा। कहि सच्चिदानंद परधामा॥
भए मगन छबि तासु बिलोकी। अजहुँ प्रीति उर रहति न रोकी॥४॥

दो०-ब्रह्म जो व्यापक बिरज अज अकल अनीह अभेद।
सो कि देह धरि होइ नर जाहि न जानत बेद॥५०॥