CHANDER<poem>मेरे घर में पाँच जोड़ी आँखें हैं
माँ की आँखें
पड़ाव से पहले ही
तीर्थ-यात्रा की बस के
दो पंचर पहिये हैं।
पिता की आँखें... लोहसाँय-सी ठंडी शलाखें हैं। बेटी की आँखें... मंदिर में दीवट पर जलते घी के दो दिये हैं।
पत्नी की आँखें, आँखें नहीं हाथ हैं, जो मुझे थामे हुए हैं। वैसे हम स्वजन हैं, करीब हैं बीच की दीवार के दोनों ओर क्योंकि हम पेशेवर गरीब हैं। रिश्ते हैं, लेकिन खुलते नहीं हैं। और हम अपने खून में इतना भी लोहा नहीं पाते कि हम उससे एक ताली बनाते और भाषा के भुन्नासी ताले को खोलते रिश्तों को सोचते हुए आपस मे प्यार से बोलते
कहते कि ये पिता हैं यह प्यारी माँ है, यह मेरी बेटी है पत्नी को थोड़ा अलग करते...तू मेरी हमबिस्तर नहीं...मेरी हमसफ़र है
हम थोड़ा जोखिम उठाते दीवार पर हाथ रखते और कहते... यह मेरा घर है