Hindi Literature
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रचनाकार: केदारनाथ सिंह

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उठता हाहाकार जिधर है

उसी तरफ अपना भी घर है


खुश हूं -- आती है रह-रहकर

जीने की सुगन्ध बह-बहकर


उसी ओर कुछ झुका-झुका-सा

सोच रहा हूं रुका -रुका-सा


गोली दगे न हाथापाई

अपनी है यह अजब लड़ाई


रोज़ उसी दर्ज़ी के घर तक

एक प्रश्न से सौ उत्तर तक


रोज़ कहीं टांके पड़ते हैं

रोज़ उधड़ जाती है सीवन


'दुखता रहता है अब जीवन'


('अकाल में सारस'नामक कविता-संग्रह से )

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