Hindi Literature
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CHANDER

और तुम इतना आहिस्ते मुझे बांधती हो

जैसे तुम कोई इस्तरी हो और मैं कोई भीगी सलवटों भरी कमीज़

तुम आहिस्त-आहिस्ते मुझे दबाती सहला रही हो

और भाप उठ रही है और सलवटें सुलट-खुल रही हैं

इतने मरोड़ों की झुर्रियाँ-

तुम मुझ में कितनी पुकारें उठा रही हो

कितनी बेशियाँ डाल रही हो मेरे जल में

मैं जल चुका काग़ज़ जिस पर दौड़ती जा रही आख़िरी लाल चिंगारी

मैं तुम्हारे जाल को भर रहा हूँ मैं पानी ।