
CHANDER
<poem>
शरद के
एकांत शुभ्र प्रभात में
हरसिंगार के
सहस्रों झरते फूल
उस आनंद सौन्दर्य का
आभास न दे सके
जो
तुम्हारे अज्ञात स्पर्श से असंख्य स्वर्गिक अनुभूतियों में मेरे भीतर बरस पड़ता है !
CHANDER
<poem>
शरद के
एकांत शुभ्र प्रभात में
हरसिंगार के
सहस्रों झरते फूल
उस आनंद सौन्दर्य का
आभास न दे सके
जो
तुम्हारे अज्ञात स्पर्श से असंख्य स्वर्गिक अनुभूतियों में मेरे भीतर बरस पड़ता है !