Hindi Literature
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CHANDER <poem>

मुझको मिली कब हार है !

तुम रोकते हो क्यों मुझे ? तुम टोकते हो क्यों मुझे ? धधका निराशा का अनल तुम झोंकते हो क्यों मुझे ?

हैं अमर मेरे प्राण
मेरा अमर हर उद्गार है !

रुकना मुझे भाता नहीं, थकना मुझे आता नहीं, सह लक्ष-लक्ष प्रहार भी झुकना मुझे आता नहीं,

प्रत्येक क्षण गतिवान जीवन
शक्ति का संसार है !

मैं बढ़ रहा तूफ़ान में, ले क्रांति-ज्वाला प्राण में, वरदान मुझको मिल रहा प्रतिपद अभय बलिदान में,

नौका भँवर में हो फँसी
साहस अथक पतवार है !