
CHANDER
<poem>
मुझको मिली कब हार है !
तुम रोकते हो क्यों मुझे ? तुम टोकते हो क्यों मुझे ? धधका निराशा का अनल तुम झोंकते हो क्यों मुझे ?
- हैं अमर मेरे प्राण
- मेरा अमर हर उद्गार है !
रुकना मुझे भाता नहीं, थकना मुझे आता नहीं, सह लक्ष-लक्ष प्रहार भी झुकना मुझे आता नहीं,
- प्रत्येक क्षण गतिवान जीवन
- शक्ति का संसार है !
मैं बढ़ रहा तूफ़ान में, ले क्रांति-ज्वाला प्राण में, वरदान मुझको मिल रहा प्रतिपद अभय बलिदान में,
- नौका भँवर में हो फँसी
- साहस अथक पतवार है !