Hindi Literature
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CHANDER

कितना कुछ अब भी बचा है उसमें

मृत्यु के लिए

कितना अपमान कितनी उदासी

कितने शब्द क्रोध में पनपे


कितना कुछ समाप्त कर गईं ख़ुशियाँ

अपने स्वागत में

जीवन का सारा मोह ही जैसे रिस गया

स्वाभिमान में ऎंठी इच्छा निराशा में डूबी आख़िर


न प्यार न ख़ुशी

उसने इन्तज़ार किया

बस इन्तज़ार

अजीब इन्तज़ार

आह ! मगर किसका