Hindi Literature
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CHANDER

सार्वजनिक तौर पर
कम ही मिलते हम
भाषा के एक छोर पर
बहुत कम बोलते हुए
अक्सर
बगलें झाँकते
भाषा के तंतुओं से
एक दूसरे को टटोलते
दूरी का व्यवहार दिखाते

क्षण भर को छूते नोंक भर
एक-दूसरे को और
पा जाते संपूर्ण

हमारे उसके बीच समय
एक समुद्र-सा होता
असंभव दूरियों के

स्वप्निल क्षणों में जिसे
उड़ते बादलों से
पार कर जाते हम
धीरे धीरे

अगले मौसमों के लिए
अलविदा कहते हुए ...