Hindi Literature
http://www.kavitakosh.org
































CHANDER

ग़लती की शुरुआत यहीं से होती है

जब तुम उनके नज़दीक जाते हो

और कबाड़ी से ख़रीदे अपने कोट को

किसी विदेशी दोस्त का भेजा हुआ तोहफ़ा बतलाते हो.

लेकिन वे बहुत शातिर हैं

तुम्हारे कोट की असलियत को पहचानते हैं

वे सिर्फ़ चाहते हैं

कि तुम उसी तरह अपनी असलियत को छिपाते जाओ

और कभी कपड़े उतार कर नंगे न हो जाओ.

वे नंगे आदमी से बहुत डरते हैं

क्योंकि नंगा आदमी बहुत ख़तरनाक होता है.

इसलिए वे तुम्हारी ओर—

दोस्ती के दस्तानों वाले अपने पंजे बढ़ाते है

और तुम—

दोस्ती के लालच में उनके पंजों के नाखूनों को नज़रअंदाज़ कर देते हो

क्योंकि उस वक़्त तुम्हारी नज़रें

डाक्टर लाल के बंगले के आमों पर होती हैं

और त्रिपाठी जी के नाश्ते के बादामों पर होती हैं

और वे कुटिलता से मुस्कुरा रहे होते हैं

कि तुम्हारी आँखों में लालच है

और मुँह में पानी है

वे जानते है,कमज़ोर आदमी की यही निशानी है.

वे जानते हैं तुम्हारी क़ीमत थोड़ी —सी शराब है

और एक टुकड़ा क़बाब है;

कि तुम्हें उनकी गाड़ियाँ अच्छी लगती हैं

कि उनकी बीवियों की साड़ियाँ अच्छी लगती हैं

कि तुम अपना ग़ुस्सा कविता में उतार कर ठंडे हो जाओगे

लेकिन ज़िंदगी में कभी नंगे नहीं हो पाओगे

यहाँ तक कि अपने जिस्म की खरोंचें भी छिपाओगे.


इसी लिए मौक़ा लगते ही वे

अपने पंजों से दोस्ती के दस्ताने उतार कर

तेज़ नाखून तुम्हारे जिस्म में गाड़ देते हैं.


और उस रात

जब तुम हताश होकर

अपने बिस्तर में छटपटाते हो

तो बूढ़े पिता की याद कर के बहुत रोते हो

तुमें अपने मज़दूर भाई की बहुत याद आती है

और गाँव —घर की बातें बहुत सताती हैं.


उस घड़ी तुम

आँसुओं की कमज़ोर भाषा में

कुछ मज़बूत फ़ैसले करते हो

और अपनी कायरता के नर्म तकिए में

मुँह रख कर सो जाते हो.


अगली ग़लती की शुरुआत

यहीं से होती है.