Hindi Literature

अगर दौलत से ही सब क़द का अंदाज़ा लगाते हैं

तो फिर ऐ मुफ़लिसी हम दाँव पर कासा लगाते हैं

उन्हीं को सर बुलन्दी भी अता होती है दुनिया में

जो अपने सर के नीचे हाथ का तकिया लगाते हैं

हमारा सानहा है ये कि इस दौरे हुकूमत में

शिकारी के लिए जंगल में हम हाँका लगाते हैं

वो शायर हों कि आलिम हों कि ताजिर या लुटेरे हों

सियासत वो जुआ है जिसमें सब पैसा लगाते हैं

उगा रक्खे हैं जंगल नफ़रतों के सारी बस्ती में

मगर गमले में मीठी नीम का पौधा लगाते हैं

ज़ियादा देर तक मुर्दे कभी रक्खे नहीं जाते

शराफ़त के जनाज़े को चलो काँधा लगाते हैं

ग़ज़ल की सल्तनत पर आजतक क़ब्ज़ा हमारा है

हम अपने नाम के आगे अभी राना लगाते हैं