Hindi Literature
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CHANDER <poem> अखि लखि लै नहीं का कहि पंडित, कोई न कहै समझाई। अबरन बरन रूप नहीं जाके, सु कहाँ ल्यौ लाइ समाई।। टेक।। चंद सूर नहीं राति दिवस नहीं, धरनि अकास न भाई। करम अकरम नहीं सुभ असुभ नहीं, का कहि देहु बड़ाई।।१।। सीत बाइ उश्न नहीं सरवत, कांम कुटिल नहीं होई। जोग न भोग रोग नहीं जाकै, कहौ नांव सति सोई।।२।। निरंजन निराकार निरलेपहि, निरबिकार निरासी। काम कुटिल ताही कहि गावत, हर हर आवै हासी।।३।। गगन धूर धूसर नहीं जाकै, पवन पूर नहीं पांनी। गुन बिगुन कहियत नहीं जाकै, कहौ तुम्ह बात सयांनीं।।४।। याही सूँ तुम्ह जोग कहते हौ, जब लग आस की पासी। छूटै तब हीं जब मिलै एक ही, भणै रैदास उदासी।।५।।