
CHANDER
तू अभी अकेला है जो बात न ये समझे
हैं लोग करोड़ों इसी देश में तुझ जैसे
- धरती मिट्टी का ढेर नहीं है अबे गधे
- दाना पानी देती है वह कल्याणी है
- गुटरू-गूँ कबूतरों की, नारियल का जल
- पहिए की गति, कपास के हृदय का पानी है
तू यही सोचना शुरू करे तो बात बने
पीड़ा की कठिन अर्गला को तोड़ें कैसे !