Hindi Literature
Register
Advertisement
http://www.kavitakosh.orgKkmsgchng
































CHANDER

तू तभी अकेला है जो बात न ये समझे
हैं लोग करोडों इसी देश में तुझ जैसे

धरती मिट्टी का ढेर नहीं है अबे गधे
दाना पानी देती है वह कल्याणी है
गुटरू-गूँ कबूतरों की, नारियल का जल
पहिये की गति, कपास के ह्रदय का पानी है

तू यही सोचना शुरू करे तो बात बने
पीडा की कठिन अर्गला को तोडें कैसे!

Advertisement