Hindi Literature
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CHANDER


अकाल

जब आता है

अपने साथ लाता है

अड़ियल बैल से बुरे दिन


अकाल भेद नहीं करता

खेत, पेड़, पशु और आदमी में


बाज की तरह आकाश से उतरता है

हरे-भरे खेतों की छाती पर

फसल को जकड़ता है पंजों में

खेत से खलिहान तक सरकता है


अँधेरे की तरह छा जाता है

लचीली शांत हरी टहनियों पर

पत्तियों की नन्ही हथेलियों पर

बेख़ौफ़ जम जाता है

जड़ तक पहुँचने का मौका ढूँढ़ता है


बोझ की तरह लद जाता है

पुट्ठेदार गठियाए शरीर पर

खिंचते हैं नथुने, फूलता है दम

धीरे-धीरे दिखाता है हाथ, उस्ताद


धुंध की तरह गिरता है

थके हुए उदास पीले चेहरों पर

लोगों की आँखों में उतर आता है

पेट पर हल्ला बोलता है, शैतान


जब भी आता है

लाता है बुरे दिन

कल बन जाता है अकाल


1981 में रचित