Hindi Literature
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CHANDER

अन्दाज़ा ही बहक न गया था निशाँ के पार

थी सैद की निगाह भी तीरो-कमाँ के पार!


आज़ादियाँ हैं खित्तए-बहम-ओ-गुमाँ के पार

आओ बसाएँ एक जहाँ इस जहाँ के पार!


ख़ामोशिए-दुआ हूँ, मुझे कुछ ख़बर नहीं

जाती हैं क्या सदाएँ तेरे आस्ताँ के पार!


सात आसमान झुक के उठाते हैं किसके नाज़?

किसकी झलक-सी है चमने-कहकशाँ के पार?


इतना उदास आपका दिल किसलिए हुआ?

हर दर्द की दवा है, ज़मानो मकाँ के पार!


क़ायम महाज़ अम्न के हिन्दोस्ताँ से हो!

फ़ौजें न जाएँ सरहदे-हिन्दोस्ताँ के पार!


शब्दार्थ :

सैद=शिकार; खित्तए-वहम-ओ-गुमाँ=वहम और गुमान का घेरा; चमने-कहकशाँ=आकाशगंगा का उपवन; अम्न के=शान्तिक्षेत्र