Hindi Literature
http://www.kavitakosh.org
































CHANDER

मीठापन जो लाया था मैं गाँव से

कुछ दिन शहर रहा

अब कड़वी ककड़ी है।


तब तो नंगे पाँव धूप में ठंडे थे

अब जूतों में रहकर भी जल जाते हैं

तब आया करती थी महक पसीने से

आज इत्र भी कपड़ों को छल जाते हैं

मुक्त हँसी जो लाया था मैं गाँव से

अब अनाम जंजीरों ने

आ जकड़ी है।


तालाबों में झाँक,सँवर जाते थे हम

अब दर्पण भी हमको नहीं सजा पाते

हाथों में लेकर जो फूल चले थे हम

शहरों में आते ही बने बहीखाते

नन्हा तिल जो लाया था मैं गाँव से

चेहरे पर अब

जाल-पूरती मकड़ी है।


तब गाली भी लोकगीत-सी लगती थी

अब यक़ीन भी धोखेबाज़ नज़र आया

तब तो घूँघट तक का मौन समझते थे

अब न शोर भी अपना अर्थ बता पाया

सिंह-गर्जना लाया था मैं गाँव से

अब वह केवल

पात-चबाती बकरी है।

-- यह कविता Dr.Bhawna Kunwar द्वारा कविता कोश में डाली गयी है।