Hindi Literature
http://www.kavitakosh.org
































CHANDER

आजकल विचार

अंतरिक्ष में लटक रहे हैं

जूतों की तरह

विश्वासों की अंधता से बंधे

और हम कुछ नहीं कर पा रहे

सिवाए इसके

कि उन जूतों की टक-टक

अपनी खोपड़ी पर महसूस करें

और एक बुसी हँसी हँसें

जैसी कि

युवा कवि हँसते हैं इन दिनों

मंचों पर अकेला पड़ते ही


कुछ भी खुला नहीं है आज

सिवा मुँह के

कुछ परचूनिए

उसे भी दबा रहे हैं

अपनी घुटी मुस्कराहटों को

बाहर करने की कोशिश में


नहीं

कोई समस्या नहीं

बस देश है, पार्टियाँ हैं, सीमाएँ हैं

और राष्ट्रमंडल के ग़ुलाम देशों का खेल

किरकेट

और उसमें ली गई दलाली है, सट्टे हैं

कहीं कोई प्रतिरोध नहीं


अन्नदाताओं को ओढ़ा दी गई है रामनामी

या तो भरपेटा भजन कर रहे वे

या रामजी-सीता जी की राह पकड़

अपना रामनाम सत कर रहे


इतिहास की प्लास्टिक सर्जरी

की जा चुकी है

मोहक बनाया जा चुका है

उसके छल-कदमों को इरेज करके

द्वारिका ढंढ़ ली है उन्होंने

और अब द्रौपदी का पात्र ढूंढ़ रहे हैं

जिसमें कृष्ण को खिलाया गया था

साग का एक पत्ता

और उसके मिलते ही

जनदुर्वासाओं की मिट्टी

पलीद कर दी जाएगी।