Hindi Literature
http://www.kavitakosh.org
































CHANDER अंग—अंग में रूप रंग है,सोज़ो—साज़ है, मौसीक़ी है

तेरा सरापा है कि ख़ुदा ने एक मुरस्सा नज़्म कही है


अपने ज़िह्न के हर गोशे में तुझको पया है नूर—अफ़शाँ

अपने दिल की हर धड़कन में मैंने तिरी आवाज़ सुनी है


तन्हा रहने पर भी मैंने तन्हाई महसूस नहीं की

मेरे साथ हमेशा तेरी यादों की ही बज़्म रही है


सूरज ढलता है तो तेरी याद के दीपक जल उठते हैं

मेरे दिल के शहर की हर शब दीवाली की शब होती है


सोये अरमाँ जाग उठते हैं ,कितने तूफ़ाँ जाग उठते हैं

सावन भादों की रिम—झिम तन—मन में आग लगा जाती है


ज़िक्र करूँ क्या तेरे ग़म का ,तेरे ग़म को क्या ग़म समझूँ

तेरा ग़म वो नेमत है जो क़िस्मत वालों को मिलती है


आओ ऐसे में खुल जाएँ , एक दूसरे में घुल जाएँ

फ़स्ल—ए—गुल है जाम—ए—मुल है, तुम हो मैं हूँ, तन्हाई है


शौक़ बारहा सोचा उनसे जो कहना है कह ही डालूँ

लेकिन वो जब भी मिलते हैं दिल की दिल में रह जाती है.



मौसीक़ी=संगीत कला;सरापा=बदन;मुरस्सा; श्रंगारित; ज़िह्न=बुद्धि;

गोशे=कोने;नूर अफ़शाँ=रौशनी बिखेरते हुए;नेमत=बख़्शिश;फ़स्ले—गुल=बहार;जाम—ए—मुल=मदिरा का प्याला