
"धुंध से घिर जा तू आज भी आसमान
हूँ "नदी "मै आज भी उन्मुक्त , पास आ
है "विशाल "पहाडियों "से भी मेरा ह्रदय
समाहित इनमे भी है ,मेरा ही "नेह"
तेरा तुझमे क्या था ?ये तू बता ?
ये बादल भी सदियों से मेरे ही थे
ये कोहरों को क्या है पता ?
ऐ "तप "मेरे मुझको ही गले लगा
सुषमा (प्रकृति )करती है दूरियोंको ,
कुछ इस तरह ही बयां
है ,सब कुछ अलग -अलग यहाँ
यही दुनिया है ,धुंध मै कर लो ख़ुद को समां "